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गणितशास्त्र
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गतप्रेम
गण्डिकानुयोगः (पुं०) अर्थ कथन की विधि। गण्डीरः (पुं०) [गण्ड्+ईख] नायक, योद्धा। गण्डूः (पुं० स्त्री०) [गण्ड्+ड ऊङ्] १. तकिया, २. जोड़,
गांठ।
गणितशास्त्रं (नपुं०) करणानुयोगशास्त्र। (जयो० वृ० १/३४) गणितिन् (पुं०) [गणित+इनि] गणितज्ञ।. गणिनी (स्त्री०) संघ प्रमुखा, (मुनि०२८) धर्मसंघ नायिका।
२. गणनाकत्री, अधिकारिणी। (जयो० २२/६०) गणी (पुं०) गणधर, द्वादशांग ज्ञाता। (जयो० ९/८२)
गच्छाधिपोगणी। गौतम नाम 'गणी यथा गौतमनाधेयः' (वीरो० १४/१) 'गणी बभूवाऽचल एवमन्यः प्रभो
सकाशान्निजनामधन्यः' गणीश: (पुं०) गणधर। (वीरो० १४/१९) गणेय (वि०) गिनने योग्य। गणेरू (स्त्री०) [गण+एरू] १. कर्णिका वृक्षा २. वेश्या, ३. हथिनी। गणेरुका (स्त्री०) [गणेरू+कै नप] दूती, सेविका, कुटिनी। गण्डः (पुं०) गाल, कपोल, गण्डस्थल। गणेशः (पुं०) वीरोक्तमनुवदति गणेश विश्वहेतवे (वीरो०
१५/९) गणधर, साधुसंघ स्वामी। (भक्ति०१०) १. आचार्य 'अर्हन्नथो सिद्धरतो गणेशश्चाध्यापकः' साधुरनन्यनेश:'
(भक्ति०१९)२. लम्बोदर, गजानन (दयो० ५३) गण्डकः (पुं०) १. गेंडा, २. रूकावट चिह्न, धब्बा। गण्डकूसुमं (नपुं०) हस्तिमद। गण्डकूपः (पुं०) कूट कूप। गण्डग्रामः (पुं०० बड़ा ग्राम। गण्डजलं (नपुं०) मद जल (जयो० १५/२८) गण्डदेश: (पुं०) कपोल, गाल। गण्डफलकं (नपुं०) विस्तीर्ण कपोल। गण्डभित्तिः (स्त्री०) गण्डस्थल, छिद्र। गण्डमण्डल: (पुं०) कपोल, गाल (जयो० १०/१०५) गण्डमालः (पुं०) कंठ रोग। (जयो० १९/८०) गण्डमूर्खः (पुं०) मूढ, पूर्ण मूर्ख। गण्डशिला (स्त्री०) विशाल चट्टान। गण्डशैलः (पुं०) विशाल चट्टान। गण्डस्थलं (नपुं०) हस्ति कपोल, गजकुम्भ। (जयो०६/५९) गण्डस्थलाग्रभागः (पुं०) कपोलपालि, गलभाग। (जयो० १३/७१) गण्डस्थली (स्त्री०) कपोल, कनपटी। गण्डकी (स्त्री०) नदी। गण्डलिन् (पुं०) शिव। गण्डिः (पुं०) (गण्ड+इनि] वृक्ष तना। गण्डिका (स्त्री०) [गण्डक+टाप्] १. पिण्ड, पीठी। २. वाक्य
पद्धति। ३. एक प्रकार का पेय पदार्थ।
गण्डूः (स्त्री०) हड्डी। गण्डूपदः (पुं०) एक कीट, केंचुआ। गण्डूभवं (नपुं०) सीसा। गण्डूपदी (स्त्री०) छोटा केंचुआ। गण्डूषः (पुं०) [गण्ड्-ऊषन्] कुरलक, कुल्ला (जयो० १९/६)
मुट्ठीभर, हस्ति सुंड नोंक। गण्डूषनिरुक्तिः (स्त्री०) कुरलक प्रवृत्ति (जयो० १९/६)
गण्डूषाणां कुरलकानां निरुक्ति प्रवृत्तिः। गण्डोलः (पुं०) [गंड्+ओलच्] कच्ची खांड। गण्य (वि०) सर्वोत्तम, अग्रगण्य शुचि। रुचिरमग्रतो गण्यम्।
(जयो० ६/९४) गत (भू०क०कृ०) [गम्+क्त] व्यतीत, समाप्त, गया हुआ
बीता, पहुंचा, सम्मिलित, अन्तर्निहित, समाहित, गतश्चतुर्वर्गबहिर्भवत्वं पुमान् समूहो न किलाप सत्त्वम्। (जयो० १/२४) श्री चक्रपाणे: स गतः प्रतिष्ठाम्। (जयो० १/१६) सकाशात् प्रतिष्ठां गतः प्राप्तः सन्' (जयो० वृ० १/१६) 'कौमाल्यगुणं गतः स वा। (सुद० ३/२९) विस्तृत 'श्रुतिप्रान्तगतो विलासः' (सुद० २४८) कानों के समीप तक विस्तृत। अतिलगित-'वनभूमिरूपागता गता
जनभूमिर्ननु जानता नता।' (जयो० १३/४२) गतकर्म (वि०) कर्म रहित। गतकलष (वि०) पाप मुक्त। गतकषाय (वि०) कषाय रहित। गतक्लम (वि०) क्लेश रहित। गतचेतन (वि०) मूर्छित, चेतनाशून्य। गतदिनं (वि०) बीता हुआ कल। गतधी (वि०) बुद्धिहीन। गतधियापि मया समयः श्रियाम्।
(जयो० २५/७५) गतप्रत्यागत (वि०) जाकर आया हुआ। वृत्तिपरिसंख्यान तप। गतप्रभ (वि०) कान्तिहीन, यश रहित। गतप्रमाद (वि०) प्रमाद रहित, अप्रमादी। गतप्राण (वि०) प्राण रहित। गतप्राय (वि०) प्रायः गया हुआ। गतप्रेम (वि०) प्रेमशून्य।
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