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क्षेमहेतः
३३४
खगता
क्षेमहेतुः (स्त्री०) शान्ति हेतु। भलाई के लिए। वक्तुः श्रोतुः क्षौद्रलेशः (पुं०) १. क्षुद्रभावांश मधुविन्दु। (जयो० ३/१३) ___हेमहेतवे सम्भूयात् पठितो जवंजवे। (समु० ९/३१) क्षौदातिग (वि०) शहदरहित, मधु रहित। (मुनि० ) क्षेमिका (स्त्री०) हल्दी।
क्षौदेयं (नपुं०) [क्षौद्र ढञ्] मोम। क्षेमिन् (वि०) [क्षेम इनि] सुरक्षित, प्रसन्न, आनंदित। क्षौमः (पुं०) [क्षु+मन्+अण] रेशमी वस्त्र, ऊनी वस्त्र। क्षै (अक०) क्षीण होना, नष्ट होना, कृश होना, हीन होना, क्षौम्म् (वि०) हजामत। ह्रास होना।
क्षौरिकः (पुं०) [और ठन्] नाई। क्षण्यं (नपुं०) [क्षीण+ष्यञ्] १. विनाश। २. सुकुमारना। क्ष्णु (सक०) पैना कन्ना, तेज करना। क्षैत्र (नपुं०) [क्षेत्र+अण्] खेत, खेतों का समूह।
क्ष्मा (स्त्री०) पृथ्वी, भूमि। क्षैरेय (वि०) [क्षीर+ढञ्] दुग्ध सदृश, दूधिया, दूध से निर्मित, क्ष्माजः (पुं०) मंगलग्रह। धवलता युक्त।
क्ष्मापः (पुं०) नृपति, राजा। क्षोडः (पुं०) [क्षोड्+घञ्] हस्ति बंधन वाला स्तम्भ।
मापतिः (पुं०) नृपति। क्षोण (पुं०) स्थान, भू-भाग। हलन-चलन युक्त स्थान। क्ष्मालीकः (पुं०) भूमि सम्बंधी आसत्य। क्षोणिः (स्त्री०) [ डीनि] पृथ्वी, भूमि। २. गणितीय अंक। । क्ष्माय् (सक०) हिलाना, कांपना। क्षोणी देखो क्षोणिः।
क्ष्माकलयं (नपुं०) भूमण्डल। (जयो० ६/१०५) क्षोत्तृ (पुं०) [क्षुद्+तृच्] मूसली, सिल बट्टा।
क्ष्विड् (अक०) गीला होना। क्षोदः (पुं०) [क्षुद्+वञ्] पीसना, चूर्ण करना। २. धूल, कण, । क्ष्वेङः (पुं०) शब्द। सिंह गर्जना
सूक्ष्मकण। (जयो० वृ० ४/६७) क्षोदकर (वि०) विप्लवल, अर्जन करने वाले, निकालने वाले।
(जयो० वृ० ४/६७) क्षोदनं (नपु०) कूर्चन, खुरचना, खोदना। (जयो० वृ० २/१५६) खः (पुं०) कवर्ग का द्वितीय व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान क्षोदित (वि०) क्षुण्ण, खोदने वाला, खोदी गई। 'आजिषु | कण्ठ है।
तत्करवालेहर्य-क्षुर-क्षोदितास्तु संपतितम्। (जयो० ६/८०) खं (पुं०) १. आकाश, २. खाली स्थन, गगन (जया०८/४) क्षोभः (पुं० [शुभ+घञ्] क्षुब्ध, उत्तेजना, संवेग, विनाशक ३. छिद्र, बिल, ४. शून्य, बिन्दु, ५. स्वर्ग ६. अभ्रक, ७.
वृत्ति। 'केन वा प्रलयजेन सिन्धुवत् क्षोभमाप। (जयो० ब्रह्मा। 'खं न भवतीति नखमाहुर्जगुः। नभस्तु पुन शून्यतया ७/७४) २. डोलना, हिलना।
निष्प्रभतया च खमिति ख्यातिमाख्यां श्रीपूज्यपादतो क्षोभणं (नपुं०) क्षुब्ध करना, व्याकुल करना, संवेग उत्पन्न मुनिनयकाल्लेभे' (जयो० वृ० ३/४५) करना।
खकारः (पुं०) ख वर्ण। (जयो० ११/७१) क्षोभणः (पुं०) कामदेव का एक बाण।
खक्खट (वि०) कठोर, ठोस। क्षोमः (पुं०) [क्षु+मन्] ऊपर का कमरा, छत के ऊपर का खगङ्गा (स्त्री०) आकाश गंगा। कमरा।
खगः (पुं०) पक्षी। क्षौत्रः (पुं०) छुरा, छुरिका।
गखकन्या (स्त्री०) विद्याधर कन्या। (समु० २/७) क्षौणिः (स्त्री०) पृथ्वी, भू, धरा, अवनि।
खगकेतु (पुं०) गरुड़। क्षौणिप्राचीरः (पुं०) समुद्र, सागर, उदधि, रत्नाकर। खगखानः (पुं०) वृक्ष कोटर। क्षौणिभुज् (पुं०) नृप, राजा।
खगचर: (पुं०) विद्याधर। क्षौणिभृत् (पुं०) पर्वत, पहाड़।
खगगणः (पुं०) पक्षी समूह (सुद० ५/२) क्षौद्रः (पुं०) [क्षुद्र+अण्] चम्पक वृक्ष।
खगगतिः (स्त्री०) पक्षी का गमन। क्षौदं (नपुं०) क्षुद्रता, ओछापन। १. शहद। (जयो० ३/१३) खगति (स्त्री०) हवा की गति। क्षौदकः (पुं०) मधु, शहद।
खगता (वि०) आकाशगामिता। (जयो० २२/४०)
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