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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षुता ३३१ क्षेत्रं क्षुता (स्त्री०) [क्षुत+टाप्] छींक। क्षुद् (सक०) १. कुचलना, मसलना, रगड़ना, पीसना। २. उत्तेजित करना। क्षद् विजय (वि०) भूख जीतने वाला, क्षुधाजयी। क्षुद्र (वि०) [क्षुद्+रक्] १. तुच्छ, नीच, अधम, २. दुष्ट, ३.. कर, ४. कृपण, निर्धण, ५. संकीर्ण। (जयो० २४/८७) क्षुद्रकम्बुः (पुं०) छोटा शंख। क्षुद्रकुष्ठ (नपुं०) निम्न कोढ। क्षुदकण्टिका (स्त्री०) धुंघरु। क्षुद्रचंदनं (नपुं०) लाल चन्दन। क्षुदजन्तुः (पुं०) छोटा जीव, लघु प्राणि। क्षुद्रजन्मन्: (नपुं०) तुच्छ जन्म। (वीरो० १०/३४) क्षुददंसिका (स्त्री०) गो मक्षिका। क्षुद्रबुद्धिः (स्त्री०) निम्न मति, बुद्धिहीन। कम बुद्धि वाला। क्षुद्ररसः (पुं०) शहद। क्षुद्ररोगः (पुं०) सूक्ष्म रोग, छोटी बीमारी। क्षुद्रलु (वि०) सूक्ष्म, छोटा। क्षदशंखः (पुं०) घोंघा, सीपी, छोटा शंख जीव। क्षुध् (नपुं०) [क्षुध्+क्विप्] भूख, छुधा, ०क्षुधा। क्षुधा (स्त्री०) [क्षुध्+टाप्] क्षुध, भूख। 'असातावेदनीय तीव्र-मन्द-क्लेशकरी क्षुधा' (नि०प०साल्टी०६) क्षुधाजनित (वि०) क्षुधा पीड़ित, भूख से व्याकुल। क्षुधा पिपासित (वि०) भूखा प्यासा। क्षुधालु (वि०) भूखा।। क्षुधाशांत (वि०) भूख शांत वाला। क्षुधित (वि०) भूखा, बुभुक्षित। (जयो०६/१२१) क्षुपः (पु०) [क्षुप्+क] झाड़ी, छोटी जड़ों का वृक्ष। क्षुभ् (सक०) हिलाना, कंपित करना, क्षुब्ध करना, आंदोलित करना। क्षुभित (वि०) आंदोलित, क्षुब्ध हुआ। जगतां त्रितयस्य सम्पदा क्षुभितोऽभूत्प्रमदाम्बुधिस्तदा। क्षुब्ध (वि०) [क्षुभ्+क्त] आन्दोलित, अस्थिर, चंचल, कंपित, __चलायमान। क्षुमा [क्षु+मक्] अलसी, एक सन विशेष। क्षुर् (सक०) काटना, खुरचना, कतरना। क्षुरः (पुं०) [क्षुर्क ] क्षुरा, उस्तरा, कचापहारि। क्षुरेण कचापहारि शस्त्रेण (जयो० वृ० २७/४०) । क्षुरप्रमुदा (स्त्री०) एक प्रकार की आसन, कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से दबाकर शेष अंगुलियों के फैलाने पर क्षुरप्रमुद्रा होती है। 'कनिष्ठिकामगुष्ठेन संपीड्य शेषाङ गुली प्रसारयेदिति क्षुरप्रमुद्रा' (निर्वाणकाण्ड ५/वृ० ५१) क्षुरिका (स्त्री०) [क्ष+कन्+टाप्] छुरी, चाकू, उस्तरा। क्षुरिणी (स्त्री०) [क्षुर्-इनि+ ङीष्] नाई की पत्नी, नाइन। क्षुरिन् (पुं०) [क्षुर्+इनि] नाई, क्षौरकर्मी। क्षुरी (स्त्री०) [क्षुर्+ङीष्] छुरी, चाकू। क्षुल्ल (वि०) [क्षुदं लाति गृह्णाति क्षुद्+ला+क] छोटा, लघु, स्वल्प। क्षुल्लक (वि०) [क्षुल्ल+कन्] १. सूक्ष्म, लघु, छोटा, स्वल्प। २. निम्न, क्षुद्र, अधम, नीच। ३. दुष्ट, निर्धन। ४. जैन सिद्धान्त की दृष्टि में यह उत्कृष्ट श्रावक का एक रूप है। जो ग्यारह प्रतिमाधारी होता है, वह एक वस्त्र, एक लंगोटी, पीछी और कमण्डलु रखता है, वह कचोपहारी तथा एक बार भोजन करने वाला उत्कृष्ट श्रावक होता है। 'क्षुल्लक: कोमलाचारः शिखा सूत्राङ्कितो भवेत्। एकवस्त्रं सकौपीनं वस्त्र-पिच्छ-कमण्डलुम्।। (लाटी०सं०७/६) क्षुल्लिका (स्त्री०) उत्कृष्ट श्राविका, ग्यारह प्रतिमाधारी श्राविका। क्षुल्लिकात्व (वि०) क्षुल्लिका पद वाली। तत्रास्याः पुण्य योगेनाप्यार्यिकासंघसङ्गमात्। बभूव क्षुल्लिकात्वेन परिणामः सुखावहः।। (सुद० ४/२९) शाटकं चोत्तरीयं च वस्त्रयुग्ममुवाह सा। कमण्डलुं भुक्तिपात्रमित्येतद् द्वितयं पुनः।। (सुद० ४/३१) शाटीव समभूदेषा गुणानमाधिककारिणी। सदारम्भादनारम्भादघादप्यतिवर्तिनी।। (सुद० ४/३२) सत्यमेवोप युज्जाना सन्तोषामृधारिणी। (सुद० ४/३३) पर्वण्युपोषिता कालत्रये सामायिक श्रिता।। सौहार्दमङ्गिमात्रे तु किल्ष्टे कारुण्यमुत्सवम्। गुणिवर्गमुदीक्ष्याऽगान्माध्यस्थ्यं च विरोधिषु।। (सुद० ४/३५) क्षेत्रं (नपुं०) [क्षि+ष्टुन्] १. स्थान, स्थल (जयो० वृ० ३/९३) २. आवास, भूमि, ३. निवास, गृह, भू-भाग। ४. खेत, भूमि, धान्य क्षेत्र। (वीरो० वृ० २/१३) 'शस्यपूर्ण क्षेत्रं दर्शितवान्।' (दयो० ९६) ५. कार्यस्थान, कार्यशाला, श्रेष्ठस्थान। ६. शरीर (जयो० वृ० ५/१३) 'क्षेत्रं निवासो वर्तमानकालविषयः' (स०सि० १/८) क्षेत्रं सस्याधिकरणं' (त० वा० ७/२९) ७. अवगाह-'यत्रावगाहस्तत् क्षेत्रम्' (जैन० ल० ३९५) ८. जनपदवाची-विषयवाची। ९. आधारआधेय वाची-'क्षियत्सतैषीत् क्षेष्यत्यस्मिन् द्रव्यागमो भावागमो वेति त्रिविधमपि शरीरं क्षेत्रम्, आधारे आधेयोपचाराद्वा' (धव० ४/६) १०. आकाश-खेत्त खलु आगास। ११. षड्द्रव्यस्थान ‘षड्द्रव्याणि क्षियन्ति निवसन्ति यस्मिन् तत्क्षेत्रम्।' (धव० ९/२२१) १२. त्रिभुवनस्थिति (महा० १/१२३) त्रैलोक्यविन्यास-महापु० २/२९) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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