SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केकितापन्न ३१४ केवल केकितापन्न (वि०) मयूर रूपता को प्राप्त। 'चातकेन च । केन्द्र (नपुं०) १. मध्य बिन्दु, आधार आश्रय। २.जन्म कुण्डली वरेण केकितापन्नजन्यमनुना प्रतीक्षिता।' (जयो० १०/११२) का स्थान, चतुर्थ, सप्तम एवं दसमा केकी (पुं०) भुजङ्गभुक्, मयूर, मोर। (जयो० वृ० १३/८६) केयूरः (पुं०) एक आभूषण, जो हस्त के बाजू पर धारण केचन (अव्य०) कोई कोई। (सम्य० १०७) किया जाता है। जिसे बाजूवन्द, बिजायठ, टाड कहते हैं। केणिका (स्त्री०) [के मूर्ध्नि कुत्सितः अणक:+टाप्] तम्बू, (जयो० वृ० १५/८४) 'कङ्कण-केयूर-नूपुरादिषु' (जयो० प्रतिवारण। वृ० ५/६१) केतः (पुं०) [कित्+घञ्] १. गृह, स्थान, आवास, निवास। केरलः (पुं०) दक्षिण भारत का प्रान्त। २. ध्वज, ३. इच्छा। केल् (सक०) हिलाना, खेलना। २. लोकप्रिय होना, परायण केतकः (पुं०) [कित+ण्वुल] एक पादप, पौधा। २. ध्वज। होना। केतकं (नपुं०) केतकी पुष्प। केलकः (पुं०) [केल्+ण्वुल्] नर्तक, नट, कलाबाज। केतकी (स्त्री०) केवड़ा। (जयो० वृ० २०/४०) केला (स्त्री०) क्रीडा, खेल। केतनं (नपुं०) [कित्+ल्युट्] १. गृह, घर, आवास, स्थान। २. केलासः (पुं०) [केला विलासः सीदत्यस्मिन् केला+सद्+ड:] ध्वज, ध्वजा, झण्डा, पताका। ३. चिह्न, प्रतीक। स्फटिका केतनाञ्चलं (नपुं०) ध्वज वस्त्र (जयो० १३/२७) ध्वज प्रान्त। केलिः (पुं०/स्त्री०) क्रीड़ा, खेल, आमोद-प्रमोद। (जयो० (जयो० ७/११८) २२/७१) स्वार्थ क प्रत्यय (वीरो० ४/२१) मनोविनोद। २. केतित (वि०) [केत+इतच्] आमन्त्रित, निमन्त्रित, आह्वान परिहास, हास। युक्त, बुलाया गया। केलिकः (पुं०) अशोक वृक्षा केतुः (पुं०) १. ध्वजा, पताका। (जयो० ८/२१) २. प्रधान, केलिकला (स्त्री०) कामक्रीड़ा। प्रमुख, मुख्य, विशिष्ट। ३. चिह्न, प्रतीक, अंक। (वीरो० केलिकुशेशय (नपुं०) क्रीड़ाकमल। मृदु-मालुदलभ्रमान्मुखे २/३५) ४. प्रकाश, प्रभा। ५. एक नक्षत्र विशेष। केतुक्षेत्र (नपुं०) विशिष्ट क्षेत्र, जिस खेत में पानी से ही अन्न दधति केलिकुशेशयं तु खे।' (जयो० १०/६३) उगाया जाता है। 'केतु क्षेत्रमाकाशोदकपात निष्पाद्य-सस्यम्' केलिकूटः (पुं०) क्रीड़ा पर्वत। (वीरो० २/१७) (जैन०ल०३६८) केलिकोषः (पुं०) नर्तक, नट, नाचने वाला। केतुपक्तिः (स्त्री०) ध्वज श्रेणी। (जयो०३/११२) केलिगृहं (नपुं०) क्रीडा भवन, आमोद भवन। केदारः (पुं०) [के शिरसि दारोऽस्य] १. चरागाह, जल युक्त केलिनिकेतनं (नपुं०) क्रीडा भवन। क्षेत्र/खेत। थावला, आलवाल, क्यारी। २. शिव का नाम, केलिमंदिरं (नपुं०) क्रीडा भवन। ३. पर्वत भाग। केलिमुखं (नपुं०) परिहास, मनोरंजन। केदारखण्डं (नपुं०) मिट्टी से बंधा बांध। केलिसदनं (नपुं०) क्रीडा भवन, आमोदगृह। केदारनाथः (पुं०) शिव नाम। केलिरतरः (पुं०) क्रीडास्थल, केलि सरोवर। 'रणश्रियः केलिसरः केन (सर्व०) तृ०ए०-किससे, किसके द्वारा। केयं केनान्विताऽनेन सवर्णा' (जयो०८/४१) मौक्तिकेनेन शुक्तिका' (सुद० ८४) केवल (वि०) [केव् सेवने वृषा कल] १. अकेला, एकमात्र, केनचित् (अव्य०) उसमें से कोई, बहुत में एक। 'केनचिद् 'स केवलं स्यात् परिफुल्लगण्डः' (सुद० १/७) 'घृणास्पदं गदिगमस्मदधीशः' (जयो० ४/५१) केवलमस्य तूलम्' (सुद० वृ०१०२) २. पूर्ण, सम्पूर्ण, केनारः (पुं०) [के मूनि नार:] १. सिर, कपाल, खोपड़ी। २. गाल। समस्त, परम, उत्कृष्ट विशेष, ०असाधारण। (सुद० केनापि (अव्य०) किसी के द्वारा भी। 'यस्या न केनापि वृ०९७) 'सगलं संपुण्णं असवत्तं' (ष०ख०३४५) ३. रहस्यभावः' (सुद० २/२१) विमल, निर्मल, पवित्र। ४. अतीन्द्रिय ज्ञान, परमज्ञान। के-निपातः (पुं०) [के जले निपात्यतेऽसौ-के-नि-पत्+ (जयो० १८/५५) अखण्डज्ञान-'बाह्येनाभ्यन्तरेण च तपसा गिच्+ अच्] पतवार, चम्पू, डांड, नाव चलाने के डांड, यदर्थमर्थिन: मार्ग केवन्ते सेवन्ते तत्केवलं, असहायमिति जो आगे से चौड़े हाथ की तरह दण्ड युक्त होते हैं। वा। (स०सि०१/९) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy