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कुत्सित
२९८
कुपात्रं
कुत्सित (वि०) [कुत्स्+क्त] ०घृणित, निन्दनीय, ०खोटी, | कुन्ती (स्त्री०) १. कर्ण की माता।
अपवित्र, पापी। वाढं चेत्त्वमिहासि कुत्सितमतिर्युक्ता कुन्दकः (पुं०) कुन्द पुष्प। क्षतिस्ते तदा' (मुनि० २४) 'कुत्सितेषु सुगतादिषु क्रमाद्धा' कुन्दकारकः (पुं०) कुन्दकलिका। (वीरो० १/४२) (जयो० २/२६)
कुन्थुः (स्त्री०) राशि विशेष, पृथिवी में स्थित। ‘क पृथ्वी, कुत्सित-तलं (नपुं०) कुतल, घृणित भाग। (जयो० वृ० __ तस्यां स्थितवानिति निसकात् कुन्थः। (जैन०ल०वृ०३५९) ३/३३)
कुबीजभृ (वि०) मिथ्या बीज युक्त। (वीरो० ११/३७) कत्सितप्रज्ञ (वि०) कुधी, कुबुद्धिशाली, मतिहीन। (जयो० कन्थु (सक०) कष्ट सहना। वृ०७/४८)
कुन्थु (पुं०) कुन्थुनाथ, सत्तरहवें तीर्थंकर। (भक्ति०व०१९) कुत्सितमतिः (स्त्री०) कुमति, प्रज्ञाहीन। (मुनि० १४) कुन्थु जिनः देखां ऊपर। कुत्सितसंस्कारः (पुं०) कुवासना, कदाचरण। (जयो० १९/९५) कुन्थुनाथः देखां ऊपर। कुत्सिताचारणं (नपुं०) निन्दित व्यभिचारादिकार्य, कदाचरण, कुन्थुप्रभुः देखां ऊपर।
भ्रष्टाचारी, कदाचारक (जयो० वृ० २/१३१) कुन्थुस्वामी देखां ऊपर।
'कुत्सिताचरण- केष्वशङ्किताकारिता' (जयो०२/१२६) कुन्दं (नपुं०) १. कुन्द नामक पुष्पा चमेली पुण्य। (दयो० कुथः (पुं०) [कु+थक्] कुथा नामक घास।
८६) 'कुन्दं च शीर्षे दरिणां हितत्त्वम्' (जयो० १/२९) कुत्ती (स्त्री०) शुनी, कुतिया। (वीरो० १७/३२)
'कुं शब्दं ददतीति कुन्ददत्यः संलापकर्य:' (जयो० वृ० कुदेवः (पुं०) मुक्ति के कारण से रहित देव, राग-द्वेषादि से ६/९५) 'कमलानि च कुन्दस्य च जाते:' (सुद० वृ०७१) विभूषित देवा
२. कुन्द नामक आयुध-(जयो० वृ० १/२९) कुनरेशः (पुं०) क्रूर राजा। (वीरो० २१/१२)
कुन्दकुन्दः (पु०) आचार्य कुन्द कुन्द। (जया० वृ० १२/१) कुदृष्टिः (स्त्री०) १. स्वच्छन्द कथन, दर्पोक्त वचन। २. समयसार, प्रवचनसार नियमसार आदि पाहुड ग्रन्थों के
कुदर्शन (सम्य० १३६) सच्छंद बोलए जिणुत्तमिदि' रचनाकार। मांगलिक स्मरण के रूप में भी आचार्य (रयणसार०३)
कुन्दकुन्द का नाम विशेष आदर के साथ लिया जाता है। कुधी (स्त्री०) कुत्सितप्रज्ञा। (जयो० ७/४८)
कुन्दकुसुमं (नपुं०) कुन्दपुष्प, कमल पुष्प। (जयो० वृ० कुधर्मः (पुं०) कुत्सित धर्म, संसार परिभ्रमण कारक धर्म। १६/२९) कुधर्मकांक्षा (स्त्री०) अन्य तीथिर्यकों की इच्छा।
कुन्ददती (स्त्री०) चन्द्रमा, शशि, कुमुसबन्धु। (जयो०६/९५) रत्तवड-चरग-तावस-परिहत्तादीण मण्णतित्थीणं। कुन्दबन्धुं (नपुं०) कुन्दपुष्प। (जयो० वृ० ३/५१) धम्मम्हि य अहिलासो कुधम्मकंखा हवदि एसा।। कुन्दमः (पुं०) [कुन्द+मा+क] बिल्ली। (मूला ०५/५४)
कुन्दारविंदं (नपुं०) कुन्द कुसुम। कुन्दनामक कमल, सफेद कुदेशः (पुं०) पृथ्वीतल। (जयो० ११/२७)
कमल। (जयो० १६/२४) कुद्दारः (पुं०) कुदाली, खुी।
कुन्दिनी (स्त्री०) [कुन्द इनि+ ङीप्] कमल समूह। कुद्रङ्कगः (पुं०) ऊपर स्थित गृह, कूटस्थ घर।
कुन्दुः (स्त्री०) चूहा, मूसा। [कु+ट्ट] कुनरुः (पुं०) बिम्बफल। (जयो० ११/९९)
कुप् (अक०) क्रोधित होना, उत्तेजित होना। कुन्तः (पुं०) १. भाला, बाण, २. बीं। ३. तुच्छजंतु, कृमि, | कुपलः (पुं०) किसलय, कोपल, (जयो० ११/४१) (१२/१०६) कीड़ा।
कुपलाख्य (वि०) कु-कुत्सित-पल-उन्माद। (जयो० ११/४१) कुन्तलः (पुं०) [कुन्त ला+क] बाल, घुघराले बाल, सिर के अनर्थ वचन, अनिष्ट शब्द।
बाल। (जयो० ८/४१) श्रीकुन्तलैः शैवलसावतीर्णा (जयो० कुपात्रं (नपुं०) मिथ्यात्व युक्त, जं रयणत्तय-रहियं मिच्छामय८/४१)
कहियधम्मअणुलग्गं। जइवि हु तवइ सुघोरं तहावि तं कुन्तयः (पुं०) एक देश।
कुच्छियं पत्तं।। कुपात्राय सम्यक्त्व-रहित-व्रततपोयुक्ताय' कुन्तिः (पुं०) एक नृपति विशेष।
(सा०ध०टी० २/६७) ० अधम/नीच पुरुष।
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