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काश्यपः
२९०
काहलं
काश्यपः (पु०) [कश्यप+अण] कणादऋषि। काश्यपी (स्त्री०) [काश्यप+ ङीष्] भूमि, भू, धरा, पृथ्वी। काषः (पु०) [कष्+घञ्] रगड़ना, खुरचना। काषाय (वि०) (कषाय+अण्] गेरुआ, लाल रंग में रंगा
हुआ। काष्ठं (नपुं०) लकड़ी. ईंधन की लकड़ी। (जयो० ६/२९) १.
लट्ठा, लट्ठ, २. माप विशेष। (वीरो० २। ३. दिशा
(जयोc ६/२९) काष्ठ-कदली (स्त्री०) जंगली केला। काष्ठकर्मः (पुं०) काष्ठ सम्बन्धी क्रियाएं, काष्ठ की प्रतिमा।
आदिकर्म काष्ठे क्रियन्ते इति निष्पत्तेः' कट्ठेसु जाओ पडिमाओ घडिदाओ दुवय-चउप्पय-अपाद-पाद-संकुलाणं
ताओ कट्ठकम्माणि णाम (धव० १३/२०२) काष्ठकीट: (पु०) घुग, एक क्षुद्र जन्तु, जो लकड़ी को घुण
करता है। काष्ठ-कूटः (पु०) खुटबढ़ई, कटफोड़वा। काष्ठ-कुट्टः (पुं०) कटफोड़वा एक पक्षी। काष्ठ-कुदालः (पुं०) लकड़ी के कुदाल। काष्ठतक्ष (पु०) बढ़ई, सुथार, विश्वकर्मा। काष्ठतक्षकः ( पु०) बढ़ई, सुनार, विश्वकर्मा। काष्ठतन्तुः (पुं०) शहतूत का कीट! काष्ठदारुः (पुं०) देवदारू। काष्ठद्गुः (पु०) ढाकवृक्ष, पलाश तरु। काष्ठनिचयः (पुं०) दारुसम्भर, लकड़ी समूह। (जयो० ४/५१) काष्ठपुत्तलिका (स्त्री०) कठपुतली। काष्ठफलकः (पुं०) लकड़ी का तख्ता। (दयो० २/१३) काष्ठभारिकः (पुं०) लकड़हारा। काष्ठभारिका (स्त्री०) लकड़हारिन्। काष्ठमठी (स्त्री०) चिता। काष्ठमल्लः (पुं०) अर्थी। काष्ठलेखकः (पुं०) धुण, लकड़ी का कीट। काष्ठलोहिन् (पुं०) लोह युक्त दण्ड. बांस के दण्ड में जड़ा
जाने वाला लोह। काष्ठवारः (पुं०) लकड़ी की दीवार। काष्ठसंघः (पुं०) दिगम्बर साधुओं का संघ। (सुद० ४/२६) काष्ठा (स्त्री०) [काश्+कथन-टाप्] १. दिशा, प्रदेश, भाग,
हिस्सा, २. प्रमाण विशेष-'पञ्चदशाक्षिनिमेषा काष्ठा' (धव० ६/६३) 'पञ्चदशनिमिषैः काष्ठा' (पंचा०वृ०२५)
काष्ठागत (वि०) सम्पूर्ण दिशाओं स्थित। (जयो० ६/२९)
काष्ठासु दिक्षु गतानां स्थितानाम् (जयो० ७० ६/२९)
काष्ठाद् इन्धनागत उपलब्धो य' (जयो० वृ० ६/२९) काष्ठांगारः (पुं०) एक धूर्त मंत्री, जिसने जीवंधर कुमार के
पिता का विनाश किया। काष्ठागारः (पुं०) काष्ठनिर्मित गृह, लकड़ी का घेरा। काष्ठाभ्यन्तरः (पुं०) काष्ठा का भीतरी भाग। (दयो० ३२) काष्ठाम्बुवाहिनी (स्त्री०) लकड़ी का ढोल। काष्ठासंघः (गुं०) दिगम्बर साधुओं की एक प्राचीन परम्परा
का संघ। काष्ठिकः (पुं०) [काष्ट ठन्] लकड़हारा। काष्ठिका (स्त्री०) पाटा, लकड़ी का टुकड़ा। काष्ठी (स्त्री०) एक ग्रह। काष्ठीला (स्त्री०) [कुत्सिता ईषत् वा आष्ठीलेव] केल-तरु, ___ कदली पादप। काष्ठोलूखलः (पुं०) काष्ठ का ऊखल। (जयो० वृ०२/८०) काष्ठोदयः (पुं०) समिधा समूह, काष्ठसंग्रह। (जयो० १५/६७) कास् (अक०) १. चमकना, स्फुरित होना, खांसना। कासः (पुं०) [कास्+घञ्] खांसी, जुकाम, कफ की प्रवृत्ति
बढ़ना। (जयो० १०/६२) णमो कुट्ठबुद्धीणं मंत्र जाप से
भी यह रोग शांत होता है। कासकुष्ठ (वि०) कफ से पीड़ित, खांसी से व्याकुल। काष्ठहृत (वि०) खांसी दूर करने वाला। कासरः (पुं०) [के जले आसरति- क+आ+ऋ+अच्] भैंसा। कासरी (स्त्री०) भैंसा। कासारः (पुं०) [कास्+आरन् कस्य जलस्य आसारो यत्र]
जोहड़, तालाब, सरोवर। (वीरो० १२/१००) कासीर-तीरः (पुं०) सरोवर के निकट, सरोवर तट। (वीरो०
१२/१) कासू (स्त्री०) ०कुन्तल, भाला, ०एक नुकीला अस्त्र। ०शक्ति।
(जयो०८/३) कासृतिः (स्त्री०) [कुत्सिता सरणि:] पगडंडी, गुप्तमार्ग। काहल (वि०) [कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र] शुष्क, मुरझाया,
उदासीन, खिन्न। काहल: (पुं०) विडाल, विलाव, मुर्गा, कौवा। काहलं (नपुं०) वाचाल वचन, अस्पष्टवाणी, अव्यक्त वर्ण,
असत्य भाषण।
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