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कालिक्युपदेशजात
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काश्
स्थिति। समयात् स महायशाः स्थितिं करसंयोजन
कालिकीमिति। (जयो० १०/५) कालिक्युपदेशजात (वि०) दीर्घकालिक उपदेश को प्राप्त। कालिङ्गग (वि०) [कलिङ्ग+अण्] कलिंग देश में उत्पन्न। कालिङ्गगः (पुं०) कलिंग देश का राजा। कालिङ्गगम् (नपुं०) तरबूज। कालिन्द (वि०) [कलिन्द+अण] यमुना नदी में प्राप्त। कालिन्दी (स्त्री०) यमुना नदी। द्विडकीर्तिः कालिन्दी,
सुरसरिदस्याथ कीर्तिरुदयन्ती (जयो०६/४३) कालिन्दीजलं (नपुं०) यमुना जल। 'कालिन्दीजलमपि __ श्यामलमिति प्रसिद्धम्' (जयो० वृ० ६/१०७) कालिमन् (पुं०) [काल+इमनिच्] कालापन, कालिमा। कालिय (वि०) कालिका नाम। काली (स्त्री०) [काल+ङीप्] कालिमा, मसी, स्याई। कालीकः (पुं०) [के जले अलति पर्याप्नोति-क-अल-इकन्]
क्रौञ्चपक्षी। कालीनः (पुं०) समयगत, समय से सम्बन्धित। कालीयं (नपुं०) चन्दन लकड़ी। कालुष्यं (नपुं०) [कलुष+ष्यञ्] १. कालिमा, मलिनता, पंक
युक्तता। २. कषायों से उत्पन्न भाव, क्षुभित चित्त, चित्त की व्याकुलता। 'कषायैः क्षुभितं चित्तं कालुष्यम्' (नियन्टी०
६६) कालेय (वि०) [कलि+ ढक] कलिकाल से सम्बन्धित। कालेयकः (पुं०) १. श्वान, कुत्ता, कुक्कर। २. चन्दन। कालोज्झित (वि०) वर्षादि ऋतु में त्यागने योग्य। कालोत्तरः (पुं०) उत्तरोत्तर वृद्धि।। कालोपक्रमः (पुं०) काल का बोध। कालोपयोगः (पुं०) काल का संयोग। कालोपयोगेन हि मांसवृद्धी
(सुद०१०२) कालोपयोग-वर्गणा (स्त्री०) उपयोग काल में निरन्तर अवस्थित। काल्पनिक (वि०) [कल्पना+ठक्] कल्पना, युक्त, खोटा,
विचार शून्य। काल्याणकं (नपुं०) (कल्याण+वुञ्) मांगलिक कार्य, शुभ
प्रसंग का उत्सव। गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष रूप
कल्याणक। काव: (पुं०) कंकर, कणा (जयो० २/१७) कावचिक (वि०) [कवच ठञ्] कवचधारी, बख्तरबंद। कावूकः (पुं०) १. मुर्गा, कुक्कुट। २. चक्रवाक पक्षी।
कावेरं (नपुं०) केसर, जाफरान। कावेरी (स्त्री०) एक नदी, जो दक्षिण भारत में बहती है। काविलः (पुं०) १. एक राजा का नाम। (जयो०६/४१) २.
सुख से धनीभूत। काविलदेशः (पुं०) काविलदेश। काविलराज (पुं०) काविलदेश का राजा। (जयो० ६/४२)
पुनरनु काविल राजं जनीकया तर्जनीकया कृत्वा। (जयो०
६/४१) 'अयि काविलराजोऽयं' (जयो०६/४२) काव्य (वि०) [कवि+ ण्यत्] कवि के गुणों से युक्त, छन्दोबद्ध,
रचनाकर्म, बन्ध संग्रथित। 'विरोधिता पञ्जर एव भातु
निरौष्ठ्यकाव्येष्वपवादिता तु।' (सुद० १/३३) काव्यकृतिः (स्त्री०) काव्यरचना, छन्दोबद्ध रचना। (वीरो० २२/३४) काव्य-खण्डः (पुं०) छन्दोबद्धता का अंश। काव्यगतकला (स्त्री०) काव्य से प्राप्त कला। (वीरो० २२/३५) काव्यचोरः (पुं०) कविकर्म का चोर। काव्यतुला (स्त्री०) काव्यतुलना। (वीरो० २/२६) काव्यपथः (पुं०) काव्य रचना, कविता मार्ग। (समु० १/१२)
नाहं कविर्मय॑भवी तु अस्मि सरस्वती संग्रहणाय तस्मिन्। ममाप्यतः काव्यपथेऽधिकारः समस्तु पित्री ननु बालचारः। (समु० १/१२) गतिर्ममैतस्मरणैक हस्तावलम्बिनः काव्यपथे
प्रशस्ता।' (सुद० १/३) काव्यमीमांसा (स्त्री०) साहित्यशास्त्र, काव्यगत विशेषताओं
को निरूपण करने वाला शास्त्र। काव्यमीमांसावलम्बी (वि०) साहित्यशास्त्री। काव्यरचना (स्त्री०) काव्यकृति, काव्यपथ काव्यमार्ग,
छन्दोबद्धमार्ग। (वीरो२२/३४) काव्यरसिक (वि०) काव्य-सौन्दर्य के इच्छुक, काव्यपथ
रसज्ञ, छन्दोबद्ध रचना में तल्लीन होने वाले। काव्यलिङ्गं (नपुं०) काव्यलिङ्गमलंकार हेतु वाक्य में पदार्थ
का आभास। सदसि यदपि भूभुजां च मान्यः, सेवक इव खलु भुवो भवान्यः। आत्मानं पश्यतोऽपि तस्य नान्यः, कोऽपि बभूव दृशि ज्ञस्य।। (जयो० २२/२६) उस ज्ञानी राजा की दृष्टि में कोई दूसरा नहीं रहता, सबको समान
देखता। 'काव्यलिङ्गं हेतुर्वाक्यपदार्थता' काव्यशास्त्रं (नपुं०) १. वृद्धसमय। २. कविकृतशास्त्र/रचना।
(जयो० वृ० २/५४) काव्योद्धरणं (नपुं०) काव्य रचना, काव्य बनाना। (समु०१/६) काश् (अक०) चमकना, रमणीय होना, दिखाई देना, आभास होना।
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