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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यदूतः २८५ कालकुट: कार्यदूतः (पुं०) कार्य संवाहक, कार्य कराने वाला। 'न | कार्या रूचिः (स्त्री०) निसर्ग या अधिगम के कारण से उत्पन्न ___ कश्चिद्भुवि कार्यदूतः' (वीरो० १८/२) होने वाली श्रद्धा। कार्यनिर्णयः (पुं०) कार्य का निर्णय, कार्य का अन्वेषण। कार्यासनं (नपुं०) गद्दी, आसन, स्थान। कार्यनीतिः (स्त्री०) कर्त्तव्य नीति। कार्येक्षणं (नपुं०) कार्यावलोकन, कार्य निरीक्षण। कार्यपरमाणु (स्त्री०) अन्त रहित भाग। कार्योत्पत्तिः (स्त्री०) कार्य की उत्पत्ति, पूर्व पर्याय के कार्य कार्य-परायणः (पुं०) कर्त्तव्य परायण, कार्य के प्रति सजग, की उत्पत्ति। (जयो० वृ० २६/८७) कार्यस्य उत्पत्तिः उद्यमशील, परोपकारी। (जयो० वृ० ३/३) कार्योत्पत्तिः। कार्यपात्रं (पुं०) भृत्यादि कार्य, नौकर-चाकर के कार्य, भृत्यादि कार्ये (नपुं०) [कृश्+ष्यञ्] दुर्बलता, अल्पता, कृशता। की आवश्यकता। (जयो०) कार्षः (पुं०) [कृषि+ण] कृषक, किसान, खेतीहर, कृषिकार। कार्यपुटः (पुं०) निरर्थक व्यक्ति. विक्षिप्त मनुष्य। २. कार्य के कार्षापणिक (वि०) [कार्षापण+ट्ठन्] एक मूल्य विशेष प्रति संलग्न। वाला। कार्यप्रद्वेषः (पुं०) कार्य के प्रति अरुचि, आलस, उदासीनता। | कार्ण (वि०) [कृष्ण+अण] कृष्णता युक्त, कृष्ण से सम्बंधित। कार्यप्रेष्यः (पुं०) दूत, संदेशवाहक। कार्णायस (वि०) [कृष्णायस्+अण्] कृष्ण अयस्क से निर्मित। कार्य-लेशः (पुं०) कर्त्तव्यमात्र, कार्य के प्रति सजग। 'कोऽसीह कर्ष्णिः (पुं०) कामदेव। ते कः खलु कार्यलेशः' कालः (पुं०) [कु ईषत् कृष्णत्वं लाति, ला+क, को, कादेश:] कार्यवशः (पुं०) कार्य के कारण। (दयो० १५) (वीरो० १४/३४) १. काल, समय, अवसर, अवधि, अंश, भाग। २. काला कार्यवस्तु (नपुं०) कार्य का उद्देश्य, लक्ष्य, प्रयोजन। रंग का। ३. काल एवं भोग भूमि-कर्मभूमि। (जयो० कार्यविपत्तिः (स्त्री०) असफला, प्रतिकूलता, दुर्भाग्य। २/७९) ४. वर्तमान काल-सुद० १/६। कार्यशेषः (पु०) कार्य से मुक्त, सही कार्य से शेष/अवशिष्ट। श्यामल, कृष्णता-'काला हि बाला खलु कज्जलस्य' कार्यसम्पत्तिः (स्त्री०) प्रयोजन सिद्धि। (जयो० ११/६९) ज्ञानाचार के आठ भेदों में एक भेद कार्यसाधनं (नपुं०) प्रयोजन रूप साधक। कालाचार। (भक्ति०८) 'कालः परावर्तन कृत्तकेभ्यः' कार्यसिद्धिः (स्त्री०) कार्य की सफलता, उद्देश्यपूर्ति। (जयो० (वीरो०७/३८) काल वर्तना है-वट्टणालक्खणो कालो। २/३९) कार्यसिद्धिमुपयात्वसौ गृही नो सदाचरणतो व्रजन् कालस्स वट्टणा (प्रव०२१/४२) बहिः। (जयो० २/३५) कार्यसिद्धि-कर्मसाफल्यम्' (जयो० कालद्रव्य विशेष-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश वृ० २/३५) और काल ये छह द्रव्य हैं। इनसे विश्व है। काल द्रव्य कार्यहेतु (स्त्री०) एक दूसरे का बाधक कार्य। अन्तिम द्रव्य है, जो कल्पित होता है, फेंकता है या कार्याकी (वि०) प्रयोजन के लिए। प्रेरित/परावर्तन करता है वह काल/कालद्रव्य है। 'कल्पते कार्यानपेक्षि (वि०) स्वाभाविक कार्य की उपेक्षा करने वाला। क्षिप्यते प्रेर्यते येन क्रियावद्रव्यं स कालः।' (त० वा० 'कार्यमनपेक्षत इति कार्यनपेक्षि'। (जयो० १६/४४) ५/२२) समय, अद्धासमय काल: समयः अद्धा इत्येकोऽर्थः। कार्यानुबन्धिन् (वि०) कार्य सम्पादन करने वाला, दृढ़ संकल्पी, (धव० ४/३१७) 'कालः श्रीमान यं क्लृप्ति कला रसाल:' कार्यशील। (दयो० ९५) 'यथेच्छमनुतिष्ठन्ति स्व- (समु०८/३) चेत्युद्गलार्द्धः परिवर्तकालोऽव शिष्यतेऽस्वकार्यानुबन्धिनः। (दयो० ९५) नादितयाशयालोः। (सम्य० ४७) कार्याभिरत (वि०) कार्यपरायण, कार्य में तत्पर। यतः प्रातः काल-अभिग्रहः (पुं०) काल सम्बंधी नियम, भिक्षा विषयक कार्यमुताद्यैव कार्यमद्यापि शीघ्रतः। नर्गतेऽवसरे पश्चात् । अभिग्रह/नियम। कुतश्च न भवेदतः।। (दयो० वृ०७०) पितुराज्ञा शिरोधार्या कालंतकि (वि०) काल बिताने वाले, समय व्यर्थ करने वाले। कार्याऽस्माभिरतो द्रुतम्। (दयो० ७०) (सुद० ४/४७) कार्यारम्भः (पुं०) प्रक्रम, प्रारम्भ, उद्यत। (जयो० २/३५, कालकझं (नपुं०) नीलकमल, अरविंद। (जयो०३/१४)। कालकुटः (पुं०) शिव। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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