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कारागार:
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परोपकारैकविचारहारात्काराणियाराध्य गुणाधिकाराम्। (जयो० १/८६) ३. तुम्बी गर्दन / ग्रीव का निम्न भाग । ४. पीड़ा, व्याधि दुःख ।
कारागार: (पुं०) कारावास, बन्दीगृह । 'अपराध-कारिजनरोधनार्थं ' (जयो०] १५/२६)
कारागृहं (नपुं० ) बन्दीगृह कारावास ।
काराधिकार ( पं०) करने का अधिकार ( सम्य० २९० ) कारायण (नपुं०) बन्दीगृह कारावास (दयो० ४२ ) कारावेश्मन् (नपुं०) बन्दीगृह, कारावास ।
कारिः (स्त्री०) [कृ+इञ्] कार्य, कर्म, कलाकार, शिल्पकार । कारिका (स्त्री० [कृष्टाप्] १. श्लोक व्याख्या, विवरण, व्याख्यानकरण । (जयो० वृ० ५/९५) २. सूत्र - (दयो० (२५) ३. कारिका- कारागृह कारावास, सूत्रशिक्षा (जयो० | वृ० १ / ८६ )
कारित (वि०) दूसरे से कराया जाने वाला। (जयो० ११/११) 'कारिताभिधानं परप्रयोगापेक्षम् (१० वा० ६/८. स० स०६/८) 'परस्य प्रयोगमपेक्ष्य सिद्धिमापद्यमानं' कारितमिति कथ्यते। (त० वा० ६/८) कारिन् (वि०) करने वाला। (जयो० १/४) कारीपं (नपुं०) करोप / कंडे का ढेर, सूखे गोवर का ढेर । कारु (वि० ) ( कृ+अण्] कर्ता, अभिकर्ता, शिल्पी, कलाकार, निर्माता क्रिया। (१) कला, विज्ञान विधि। चारुर्विधो कारुरुतामृतात्मा' (जयो० ११/९२) कारु-क्रिया विभ्राजते (जयो० वृ० ११/९२) कारु-कुशीलन - कर्मणि रतेषु संस्कारधारा' (जयो० २ / १११ ) कारुणिक (वि० [करुणा-ठक्] कृपा युक्त, कृपालु, दयावान् दयालु।
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कारुण्यं (नपुं० ) [ करुणाप्यम्] दया कृपा, करुणाभाव, अनुकम्पा सहृदयता, आत्मीयता अनुग्रहात्मक परिणाम. अनुग्रहमति। कारुण्यमौदार्यमियद्दा (समु० ८ / २९ ) सौहार्दमङ्गमात्रे तु किल्प्टं कारुण्यमुत्सवम्। (सुद० ४ / ३५ ) 'कारुण्यमनुकम्पा दीनानुग्रह इत्यनर्थान्तरम्' (२०४०७/६) 'दीनानुग्रहभावः कारुण्यम्' (स०सि०७/११) अनुग्रहमति : संयं करुणेति प्रकीर्तिता (ज्ञाना०२७)
कारुण्य - जनित (वि०) करुणा से भरा हुआ। कारुण्यपूर्ण (वि०) अनुकम्पा युक्त, दयाभाव युक्त। 'कारुण्यपूर्णमिव पूत्कुरुते द्विजाली' (जयो० १८/६९) कार्कश्यं (नपुं०) (कर्कश प्यञ्] कठोरता, कर्कशता, दृढ़ता।
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कार्मण
कार्तज्ञता (वि०) कृतज्ञता, प्रत्युपकार (जयो० २०/६४ ) कार्तवीर्यः (पुं० ) [ कृतवीर्य+अण्] कृतवीर्य का पुत्र । कार्तस्वरं (नपुं०) (कृतस्वर+अण्] सोना, शयन । कार्तन्तिकः (पुं०) [कृतान्त-ठक्] ज्योतिषी, नैमित्तिक, भविष्य
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वक्ता ।
कार्तिक (वि०) (कृत्तिका+अण्] कार्तिक मास से सम्बन्धित कार्तिकः (पुं०) कार्तिक मास । कार्तिकाचितिः (स्त्री०) कार्तिक मास का आश्रय (जयो० ४/६६) आश्विनोपलपनेन हि निष्ठा कार्तिकावितिरितोऽवशिष्ठा। कार्तितकृष्णाब्धीन्दुः (स्त्री०) चतुर्दशी (वीरो० २१ / २० ) कार्तिकी (स्त्री०) कार्तिक की पूर्णिमा । कार्तिकेय (पुं०) १. अनुत्तरोपादिक देव, जो राजा क्रौंच के
उपसर्ग द्वारा स्वर्ग प्राप्त हुआ। २. स्वामी कार्तिकेय, जिन्होंने कार्तिकेयानुप्रेक्षा नामक प्राकृत ग्रन्थ की रचना की। (वीरो० १७/२०) ३. शिव पुत्र शिवनन्दन । कार्तिकेयानुप्रेक्षा (स्त्री०) कुमार कार्तिकेय की रचना ( ई०१००८) इसमें कुल ४९१ गाथाएं हैं, ये सभी शौरसेनी प्राकृत में अनुप्रेक्षा/ भावना के विषय को प्रतिपादित करने वाली है, इसमें वैराग्य विषय का समावेश है। इस पर आचार्य शुभचन्द्र ने (१५१६- १५५) में संस्कृत टीका लिखी। इस पर जयचन्द छाबड़ा की भाषा वचनिका है। कार्यं (नपुं० ) [ कृत्स्न+ ष्यञ् ] पूर्णता, समग्रता । कार्दम (वि० ) [ कर्दम+अण्] कीचड़ से भरा हुआ, कर्दम युक्त ।
कार्पट (वि० ) [ कर्पट+अण्] आवेदक, अभियोक्ता, अभ्यर्थी । कार्पट: (पुं०) चिथड़ा, कथा, लत्ता, चिन्दी। कार्यटिक (पुं०) कर्पट ठक्] तीर्थयात्री
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कार्पण्यं (नपुं०) (कृपण ध्यम्] १. दरिद्रता, निर्धनता, २. कंजूसी, ३. लघुता, हल्कापन
कर्पास (पुं०) कपास (जयो० ३/३९ )
कर्पासतन्तु (स्त्री०) सूती धागा। (जयो० वृ० ३/३६ ) कार्पास् (वि०) (कर्पास+अण्] कपास से निर्मित, रूई से बना। (समु० १/१७)
कार्पात्सव (वि०) कपास से बना हुआ। कार्पासिक (वि० ) [ कपास क] कपास से बना हुआ, रूई से तैयार किया गया।
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कार्मण (वि० ) [ कर्मन्+अण्] १. कार्य करने वाला, काम