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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकैकश २३५ एतावन्तक (वीरो० १९/३५७) (सुद० १२७) (जयो० ८४८४) 'एकैकया एत् (अक०) प्राप्त होना-एतुः (सुद० ४/३४) एति (सुद० कपर्दिकया खलु वित्तं बहु निचितम्' (जयो० २३/५९) (जया० २३/५९) १/४६) एकैकश (वि.) एक साथ एक। 'एकैशशो मुक्त इयान्न रोधः' | एत (वि०) कान्तिमान, रंगों से युक्त। (वीरो० २०/१२) एतद् (वि०) यह, यहां। १. पूर्वकथन के रूप में प्रयोग। २. एकोनविंशति (स्त्री०) उन्नीस। (दयो० २४) समास में प्रयुक्त। ३. सम्बोधन के बाद प्रयुक्त होने वाला। एकोनविंशसर्गः (पु०) उन्नीसवां सर्ग। (पुं०) एषः, (स्त्री) एषा, (नपुं०) एतद्। (सम्य०९४) एकोन्यत (वि०) एक दूसरे से युक्त। (सम्य० २३) 'इक्षुयष्टिरिवैषाऽस्ति' (जयो० ३/४०) 'एषा बाला सुलोचना' एक्य (वि०) एकमात्र। 'पुनरञ्चति चैक्यं स्वस्य' (सुद०७०) (जयो० वृ० ३/४०) एषा बाला, चञ्चले' (जयो० वृ० एज् (अक०) १. कांपना, हिलना। २. चमकना। ३/४२) ये दोनों प्रयोग पूर्वकथन के रूप में हैं। 'स्म न एजक (वि०) कांपने वाला, हिलता हुआ। शेते पुनरेष शायित:' (सुद० ३/२६) एतस्य-(सुद० ३/३३) एजनं (नपुं०) [एज्+ ल्युट] कांपना, हितना, चलायमान होना। षष्ठी एकवचन, तनये मन एतस्मिन् (जयो० ६/७७) एट् (सक०) छेदना. रोकना, विरोध करना। सप्तमी एकवचन। एतन्नगरं समन्तात् (सुद० १/२९) एड (वि०) [इल अन्-डलयोरभेद:] बहरा, नहीं सुनने वाला। (नपुं० एकवचन) तमेनं विधुमालोक्य। (सुद० ३/४४) एडः (पुं०) भेड, मेप, एक विशेष भेड। एतक (वि०) पूर्वोक्त। (जयो० २/५०) एडकः (पुं०) भेटु, मेष। एतदीय (वि०) [एतद् छ] इसका, इसकी। (समु०८/४) एडका (स्त्री०) भेड़ी, मेषी। ऐसा, ऐसी। एतदीय चरितं खलु शिक्षा वा। (जयो० एणः (पुं०) [एति द्रुतं गच्छति इति, इ+ण] हरिण, बारासिंघा, ५/४०) 'एतदीयकबरीति नाम दिक्' (जयो० ११/९६) मृग। (दयो० ९६) 'छायासु एणः खलु यत्र जिह्वानिलीढ- विशेष प्रकार की केश रचना। 'एतदीय-रदनच्छदसारौ' कान्तामुख एप शेते।' (वीरो० १२/९, ९/४९) 'विपद्य वटै (जयो० ५/४८) उसके दोनों औंठ। चमरेणदेहितामवाप' (समु० ४/१४) समीप के वन में एतदीयत् (वि०) ऐसा, ऐसी। 'भुजङ्गतो भीषण एतदीयद्विष' पाप के कारण चमर मृग हुआ। (जयो०८/५८) एणकः (पुं०) [इ+ ण+कन्] मृग, हिरण। एतन: (पुं०) [आ+इ+तम्] श्वास, सांस, उच्छवास। एणगण: (पुं०) हिरण समूह, मृग समुदाय। (वीरो० २१/१०) एतल्लोक (पुं०) यह संसार। (जयो० २७/६४) एणतिकल: (पुं०) चन्द्र। एतर्हि (अव्य०) अब, इस समय। एणनाथः (पं०) मृगराज। (सुद० १/३१) 'समग्रं भू- | एदशी (वि०) ऐसी। (सुद० पृ० ८४) सम्भवदेशनाथ:' (सुद० १/३१) । एतादृक् (वि०) ऐसा, इस प्रकार का। (जयो० १/५, सम्यक एणमदः (पुं०) कस्तुरी। (जयो० ५/६१) 'दृशि चैणमदः ४५) इतना, इससे अधिक, इतनी दूर। (सुद० ९६) कपोलम' (जयो० १०/५९) (जयो० २३/८४) इस समय ऐसा प्रयत्न होना चाहिए। एणमदकः (पुं०) हिरण, एणस्य मदक। (जया० २०८२) एतादृशी (वि.) ऐसी, इस तरह की, इतनी। (जयो० ५/१०१ एणशावः (पुं०) १. मृग पुत्र, २. चन्द्रमृग। 'जीवति किलैणशावोऽसावोजस्के तदङ्गगत:' (जयो० ६/४५) 'नामैतदृशी पुण्यपाकतः' (जयो० ३/५६) एतादृक्षी (वि०) ऐसी, इस तरह की, इतनी। एणशावदृक् (वि०) मृगलोचन, मृगाक्षी। (जयो० ११/५) एणा (स्त्री०) मृगी, हिरणी। (सुद०८८) एतावत् (वि०) [एतद्+वतुप्] ऐसा, इतना, इससे अधिक, एणाक्षी (वि०) मृगनवनी, मृग के नेत्रों वाली। 'वस्तु मेणाक्षीणां इतनी दूर। 'समुन्मत्ते किमेतावत्' (सुद० वृ०८४) मनस्युदारे' (सुद० ८८) एतावती (वि०) इतनी, ऐसी, इससे अधिक। (जयो० २७/४५) एणी (स्त्री०) काली हिरणी. कृष्ण हिरणी। एतावन्तक (वि०) इतना मात्र ही, ऐसा ही, इस तरह का ही। एणीदृक् (वि०) मृगाक्षी, मृगीनेत्र वाली, मृगनयना। (जयो० 'एतावन्तकदे शिलाविव गतौ' (जयो० २३/५५) एतौ ३/५५) 'वेणीयमेणीदृश एव भायाच्छ्रेणी' (जयो० ११/७०) कपोतजम्पती किलान्तकेनयमेन देशितो-संकेतिताविव' एणीहक् (पुं०) मकरराशि। (जयो० २३/५५) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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