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उपबृंहणं
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उपमानं
उपबृंहणं (नपुं०) उपगूहन, छिपाना, समीचीन गुणों की
प्रशंसा, श्रद्धावर्धन, ०धर्मपरिवृद्धिकर 'उत्तमक्षमादिभावनयाऽत्मनो धर्मपरिवृद्धिकरणमुपबृंहणम्' (त० वा० ६/२४) 'आत्मनि श्रद्धास्थिरीकरणम्' (भ०मा०टी० ४५) 'परदोषनिगृहनमपि
विधेयमुपबृंहणगुणार्थम्' (पुरुषार्थ सिध्युपाय)। उपबर्हः (पुं०) [उपबह+घञ्] तकिया, उपधान। उपबहु (वि०) बहुत कम, स्वल्प। उपबाहुः (पुं०) कोहनी के नीचे का भाग। उपभङ्ग (पुं०) [उप+भं+घञ्] १. पश्चगमन, २. काव्य का
एक चरण, पाद। उपभा (अक०) ०शोभित होना, सुन्दर लगना। उपभाति-लसति
(जयो० ३७) उपभाषा (स्त्री०) जनसाधारण की भाषा, व्यवहार की भाषा। उपभृत् (स्त्री०) [उप+भृ+क्विप्] उपभोक्तृ, भरण पात्र। उपभोक्ता (वि०) उपभोग करने वाला। (वीरो० १८/२६)
(जयो० ११/३) उपभोगः (पुं०) [उप+भुं+घञ्] १. भोजन करना, आहार
ग्रहण करना, खाना, भोग लगाना। २. उपयोग, प्रयोग, उपलब्धि। ३. रति इच्छा। ४. आनन्द, सुख, संतृप्ति। ५. जो वस्तु बार-बार भोगी जा सके-'उपभुज्यत इत्युपभोगः. अशनादिः, उपशब्दस्य सकृदर्थस्याद्, सकृत्, भुज्यत इत्यर्थः।' (श्रावक प्रज्ञप्ति०२६) 'इन्द्रियनिमित्त-शब्दाधुपलब्धि
रूपभोगः' (त० वा० २/४४) उपभोगकालः (पु) विषयों का भोग समय।
'एकान्ततोऽसावुपभोगकाल:' (सुद० १२०) उपभोग-परिभोगपरिमाणवतं (नपुं०) उपभोग और परिभोग
की वस्तुओं का परिमाण करना। (त० वा० ७/२१) 'उपेत्य भुज्यते इत्युपभोगः' परित्यज्य भुज्यत इति परिभोगः' उपभोगश्च परिभोगश्च उपभोग-परिभोगो, उपभोगपरिभोगयोः परिमाणं: उपभोग परिभोग परिमाणम्' (त० वा० ७/२१, ९/१०) 'परिमाणं तयोर्यत्र यथाशक्ति यथायथम्'
(हरिवंश पुराण ५८/१५५) उपभोग-परिभोगव्रतं (नपुं०) उपभोग और परिभोग सम्बंधी
वस्तुओं का प्रमाण करना। उपभोग-परिभोगानर्थक्यः (वि०) उपभोग और परिभोग के
व्यर्थ संग्रहण। 'न विद्यतेऽर्थः प्रयोजनं ययोस्तो अनर्थको. अनर्थकयोर्भाव: कर्म वा आनर्थक्यम्' उपभोगपरिभोगद्योरानर्थक्यम्' (त०७० ७/३२)
उपभोगपात्री (वि०) अनुभवन योग्य। (जयो० १७/५) उपभोगाधिकत्व (वि०) उपभोग-परिभोग की वस्तुओं का
निष्प्रयोजन संग्रह। उपभोगान्तरायः (पुं०) उपभोग सामग्री में विघ्न/बाधा
उपभोगविग्घयरं उपभोगतराइयं' (धव० १५/१४) उपभोग्यः (पुं०) उपभोग के योग्य। 'केन सन्मणिरसावपभोग्य:।'
(जयो० ४/४३) उपभुज्य (सं०कृ०) उपभोगकर. भोजनकर। 'सदन्नमातृप्ति
तथोपभुज्य' (सुद० १३०) उपमन्त्रणं (नपुं०) [उप मन्त्र ल्युट्] आमंत्रण, आह्वान, बुलाना। उपमर्दः (पुं०) १. लेप, मालिश, घर्षण, २. आघात, विनाश,
नाश, हानि। ३. रतिसुख।। उपमर्दनं (नपुं०) उत्पीडन, आलिंगन। उपमत्व (वि०) प्रशंसत्व (जयो० वृ० ३/६२) (जयो० वृ०
१२/१२७) उपमा (स्त्री०) [उप+मा+अङ्ग+टाप्] समानता, सादृश्यता,
एकरूपता, तुलना समरूपता। 'यदिव कोकरुतेन दिनश्रियः समदुयः कृतनक्तलयक्रियः' (जयो० ९/२०) २. प्रशंसा (जयो० वृ० ३/६२) 'प्रयोगार्थं सुन्दर्युपमा यस्य' ३. तुल्यस्वभावः -'सुंदरं-तुल्यस्वभावेन सुन्दरेणोपमीयत' (जयो० वृ०३/४०) अङ्गान्यनङ्गरम्याणि क्वास्य यान्तृपमा ततः।' (जयो० ३/४०) ४. उपमालङ्कार- उपमानेन सादृश्यमुपमेयस्य यत्र सा। प्रत्ययाव्यय - तुल्यार्थ-समासैरूपमा मता।। ( वागभटालङ्कार ४/५०) जहां 'वति', इव. तुल्य आदि अव्यय तथा कर्मधारय समास के प्रयोग से अप्रस्तुत (उपमान) के साथ प्रस्तुत (उपमेय) में सादृश्य दिखाया जाता है वहां उपमालङ्कार होता है-यह पूर्णोपमा, लुप्तोपमा के भेद से दो प्रकार भी है। अथासौ चन्द्रलेखन, जगदाह्लाद कारिणी। नित्यनूत्नां श्रियं भाति विभ्राणा स्मरसारिणी।। (जयो० ३/४१) (जयो० ८/३८, ७/१०३, १०४, सुद०
२८) उपमीयते-उपमा की जाती है। (जयो० ३/४१) उपमातृ (स्त्री०) धाई मा, दूसरी मां, निकटवर्ती स्त्री। उपमानं (नपुं०) [उप+मान ल्युट्] १. समरूपता, सादृश्यता,
तुलना, एकरूपता। २. समानता का पक्ष, यथार्थ ज्ञान का आभासक। प्रसिद्ध अर्थ की समानता। ३. साध्य धर्म से साधन की सिद्धि। 'उपमानं प्रसिद्धार्थ-साधात्साध्यसाधनम्' (न्यायविनिश्चिक-३/८५) 'उपमीयतेऽनेन दार्टान्तिकोऽर्थ सास्नारहित: इत्यपमानम्' (जैन०ल० २७४)
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