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अंशी
अ
(झ) कृदन्त प्रयोगों के साथ 'अ' होने पर नहीं अर्थ होता अ देवनागरी लिपि का प्रथम अक्षर। प्रथम स्वर। इसका
(ट) 'अ' अव्यय संज्ञा में प्रयुक्त होने पर कभी-कभी उच्चारण स्थान कण्ठ है। 'अ' को अकार, अवर्ण भी
उत्तरपद की प्रधानता को भी प्राप्त होता है। कहते हैं।
(ठ) विस्मयादि बोधक के रूप में भी 'अ' का प्रयोग अ: पु० [अव्+ड] महादेव, विष्णु, पवित्र। अकारो महादेवः
होता है। (जयो० १/२), 'अ' अर्थात् विष्णु। (वीरो० १/५)
(ड) सम्बोधन में भी 'अ' का प्रयोग होता है। अ (अव्यय) यह कई अर्थों में प्रयुक्त होता है। निषेधात्मक अर्थ के लिए इसका प्रयोग संज्ञा शब्दों से पूर्व किया जाता
(ढ) भूतकाल के लङ, लुङ् और लङ्लकार में भी 'अ' है। वैधव्य-दानादयशोऽप्यनूनम् (जयो० १/६०) 'न
का प्रयोग होता है। स शुचेव शुक्लत्वमवाप शेषः। नूनमनूनम्' (जयो० वृ० १/६०)
(जयो० १/२५) (क) सादृश्यवाची-समानता, सरूपता या सादृश्यता
अऋणिन् (वि०) ऋण रहित, कर्ज से मुक्त नास्ति ऋणं यस्य व्यक्त करने के लिए, संज्ञा से पूर्व 'अ' अव्यय का
जहां 'ऋ' व्यञ्जन ध्वनि माना गया है। ऋणमुक्त। प्रयोग किया जाता है। विद्याऽऽनवद्याऽऽप न
अंनिन् (नपु०) चरण, पाद, पैर। (वीरो० ३/१०) वालसत्त्वम्। (जयो० १/६)
अंश [चुरादि उभयादि अशंयति ते] हिस्सा करना, वितरित (ख) अभाव-वाची-जहाँ निषेध, अविद्यमानता, अभाव,
करना। प्रतिषेध, रहित आदि को व्यक्त किया जाता है वहाँ अंश [अंश्+अच्] भिन्न संख्या, लव। (वीरो० हि० २/१४) 'संज्ञा शब्दों से पूर्व 'अ' अव्यय का प्रयोग किया अंशः [अंश् अच्] हिस्सा, भाग, टुकड़ा। करिष्णवो दुग्ध जाता है। अहीनलम्बे भुजम दण्डे। जयो० १/२५
मिवार्णसोंऽशात्। (भक्ति, पृ० ७) पानी के अंश से दुग्ध रूपं प्रभोरप्रतिमं वदन्ति। वीरो० (१२/४४) केनाप्यजेयं की तरह। भुवि मोहमल्लम्। (वीरो० १२/४५) उपद्रुतः | अंश: [अंश्न-अच्] तदरूप। सृष्टिर्यस्य समन्तात् सर्वस्तस्यात्स्वयमित्ययुक्तिर्यस्य (वीरो० १२/४७)
दंशरूपतापन्नो भवेत्। (जयो० २६/८८) (ग) भिन्नता-अन्तर, भेद, विभिन्नता. अयोग्य। कैर्देहिभिः | अंशकः [अंश्+ण्वुण] लग्न, शुभलग्न। मृदु मौहूर्तिक
पुनरमानि न योग्ययोगः (वीरो० २२/१३ जो युक्तियुक्त संसदोंशकम् (जयो० १०/२०) ज्योतिर्विद गोष्ठी से निर्दोष कहते हैं, उनका यह कथन युक्ति संगत नहीं है। लग्न प्रस्तुत करते। सहेत विद्वान्पदे कुतो रतम् (जयो० २/१४०) विद्वान् | अंशकः [अंश+ण्वण] निर्मित, रचित, जटित। रत्नांशकैः अयोग्य पद पर कैसे स्थित हो सकता?
पञ्चविधैर्विचित्रः। वीरो० १३/५। पांच प्रकार के रत्नों से (घ) अल्पता लघुता, न्यूता, कृश आदि अल्पार्थवाची निर्मित। हिस्सेदार, भागीदार, सम्बंधी. सहभागी सहयोगी अव्यय के रूप में प्रयुक्त होता है। अनल्पपीताम्बर
(सम्य० १०८) धाम-रम्याः (वीरो०२/१०)।
अंशकिन् (वि०) विचारशील, चिंतन युक्ता पश्यांशनिन्दारुणमाशुगेव। (च) अप्राशस्त्य् बुराई, अयोग्यता, लघुकरण, अनुपयुक्त, (वीरो०४/१९) अकार्य, आदि में इस अव्यय का प्रयोग होता है।
अंशनम् (अंश-ल्यट) बांटने का कार्य, विभाजन का कार्य। कायोऽप्यकायो जगते जनस्य (वीरो० १/३८)
अंशभाज (वि०) [अंशभाज] अंशधारी, सहभागी। (छ) विरोध-वाचक-विरोध, प्रतिक्रिया. विपरीतता,
अंशयित (पु०) [अंश्+णिच्+तुच्] विभाजक, हिस्सेदार। अनीति आदि के रूप में इस तरह के अव्ययों का
अंशल (वि०) [अंशं लाति ला+क] हिस्सेदार, सांझेदार, प्रयोग होता है। वर्णेषु पञ्चत्वमपश्यतस्तु, कुतः
विभाजक, सहभागी। कदाचिच्चपलत्वमस्तु। (जयो०१/४८) अनीतिमत्यत्र
अंशि [क्रि०वि०] सहभागी, सहयोगी। जन: सुनीतिस्तया। (सुद० १/२३)
अंशिन् [अंश्+इनि] सहभागी, सहयोगी, विभाजक, हिस्सेदार। (ज) क्रिया एवं विशेषण में भी अव्यय का प्रयोग होता
अंशी (वि०) [अंश्+इनि] अंशी, यह एक दार्शनिक शब्द है।
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