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करनेवालोंकी निन्दा करते हुए एक बात बड़े मा की कहीं है, जो अन्यत्र देखनेमें नहीं आई। लिखा है
लोकमें मरे हुए प्राणियोंके कलेवर को शव कहते हैं । और जहां ये शव जलाये जाते हैं, उसे श्मशान कहते हैं।
___ अतः जो मांस खाते हैं वे शवभक्षी हैं और उनका घर, जहां मांस पकाया जाता है, इमशान है। (श्लोक ५०)
. इस प्रकार ११६ पद्योंतक कुदेवोंकी समीक्षा करनेके पश्चात् समन्तभद्र आदि तार्किकोंका अनुसरण करते हुए दार्शनिक शैलीसे सच्चे देवका स्वरूप बतलाया है, जो बहुतही मनोरम हैऔर संक्षेपमें तर्क और श्रद्धाके सुन्दर समन्वयको लिए हुवे है। पद्य २१ में तीर्थङ्करका अर्थ करते हुए लिखा है-'सन्मार्ग को दिखानेवाले वचनों को तीर्थ कहते हैं क्योंकि वे वचन संसाररूपी समुद्रसे पार उतारते हैं और उन वचनोंके कर्ताको तीर्थङ्कर कहते हैं।' ___आप्तके स्वरूप वर्णनके पश्चात् जिनवाणीका. माहात्म्य बतलाते हुए एक एक पद्यसे सातों तत्त्वोंका स्वरूप भी दिखलाया है । तत्पश्वात् सम्यग्दर्शनका वर्णन है। उसका वर्णन करते हुए तीन मूढता, आठ मद और आठ अंगोंका स्वरूपभी दर्शाया है। तत्पश्चात् सम्यग्दर्शनका माहात्म्य बतलाकर-सज्जाति आदि सात परमस्थानों का स्वरूपभी एक एक पद्यसे बतलाया है। श्रावकाचारोंमें अन्य सब वर्णन तो मिलते हैं। किन्तु सप्त परमस्थानोंका स्वरूप नहीं पाया जाता है। अस्तु; जो अन्तमें दो दो पद्यों से सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चरित्रका स्वरूप दर्शाकर मोक्षमार्गको बतलाते हुए पंचपरमेष्ठीका स्वरूपभी बतलाया है।
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