SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 998
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाका नाइक-संज्ञा, पु० दे० (सं० नायक) नायक, चढ़ना (चढ़ाना)-रोष या क्रोध पाना स्वामी । स्त्री० (दे०) नाइका-नायिका। (करना ), स्योरी चढ़ना । नाक लम्बी नाइत्तफाको संज्ञा, स्त्री. (फा० ) फूट, होना (करना)-बड़ी शान या प्रतिष्ठा विरोध, मतभेद। होना । नाकों चने चबवाना (चबाना) नाइन-संज्ञा, स्त्री० (हि. नाई) नाई या नाई। बहुत ही तंग या हैरान करना ( होना )। जाति की स्त्री, नायनि, नाउनि (ग्रा.)। । नाक-भौं चढ़ाना या सिकोड़ना-क्रोध नाइब --संज्ञा, पु० दे० (म० नायव) नायब । या अप्रसन्नता प्रगट करना, धिनाना,चिढ़ना, नाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० न्याय ) तरह, ना पसंद करना । नाक में दम करना समान, तुल्य । " उमा दारु योषित की या लाना ( होना, रहना)-बहुत तंग नाई"-रामा०। या हैरान करना ( होना) बहुत सताना । नाई-संज्ञा, पु० दे० (सं० नापित ) नाऊ " नाक दम रहै जौ लौ नाक दम रहै तो नउघा, नौवा (ग्रा०) बाल बनाने वाला। लौ" ।नाक रगड़ना ( रगड़ाना)नाउँ*-संज्ञा, पु० दे० (सं० नाम ) नाम, बहुत बिनती करना ( कराना ) या गिड़ नाँव (ग्रा०)। गिड़ाना, मिन्नत करना । नाकों दम पाना नाउ*-संज्ञा, स्त्री० (सं० नौ) नाव, नौका। (होना)-बहुत तंग या परेशान होना। नाउन, नाना -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. नाक सिकोड़ना-घिनाना, अरुचि नाऊ ) नाइन, नउनिया (ग्रा.)। प्रगट करना । दिमाग़ का मल जो नाक नाउम्मेद-वि० (फ़ा०) निराश ' संज्ञा, स्त्री० से निकलता है, रेंट, नेटा (ग्रा० प्रान्ती०)। (फा०) नाउमेदी। यौ०-नाक सिनकना (छिनकना)नाऊो-संज्ञा, पु० दे० (सं० नापित) नाई। नाक कामल सान करना। शोभा या प्रतिष्ठा नाकद-वि० दे० (फा० ना+वंदः) बिना ___ की चीज़, मान, प्रतिष्ठा । मुहा०-नाक निकाला हुआ बैल या घोड़ा धादि. रख लेना-प्रतिष्टा या इज्जत रख लेना। अशिक्षित, बिना सिखाया, बिना काढ़ा, संज्ञा, पु० दे० (सं० नक) मगर, घड़ियाल | अल्हड़। "नाक-उरग-झष व्याकुल मरता"।-संज्ञा, नाक-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नक ) नासिका, पु. (सं०) स्वर्ग, वैकुंठ, आकाश, हथियार नासा, "लछिमन तेहि छिन तामह, नाक- की एक चोट। कान बिन कीन्ह"- रामा० । “ नाक-कान नाकडा-संज्ञा, पु० दे० (हि. नाक+डाबिनु गई विकराला"-रामा० । मर्यादा, प्रत्य० ) नाक पक जाने का एक रोग, प्रतिष्ठा । यो०-नाक घिसनी-बिनती, नाका (दे०)। गिड़गिड़ाहट । नाक रगड़ना-बड़ी नाकदर-वि० (फा० ना+अ. द्र) प्रतिष्ठा विनय के साथ आग्रह या प्रयत्न करना, या इज्जत-रहित । संज्ञा, स्त्री० नाकदरी। दीनतादिखाना. आधीन होना । महा- नाकना*--स. क्रि० दे० (सं० लंघन) नाक कटना–प्रतिष्ठा या इज्जत मिटना। फाँदना, उलंघन करना, लाँधना, बढ़ जाना, नाक रहना (जाना)-प्रतिष्ठा या मर्यादा हरा देना, डोकना (ग्रा०)। रहना ( जाना )। नाक-कान काटना- नाकबुद्धि-वि. यौ० (हि. नाक+बुद्धिकठिन सज़ा या दंड देना । किसी की सं०) कमसमझ, मंदमति । नाक का बाल-निष्ठ मित्र या बड़ा नाका-सज्ञा, पु० दे० ( हि ताकना ) रास्ते मंत्री, सलाही, सदा का साथी । नाक का पाखीर, मार्ग का छोर, घुसने का द्वार, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy