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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमनि की "-जौक । मुहा०-नज स्टोलना- पालित-पोषित होना या दिया हुआ खाना । भीतरी भेद या इरादा जानना । नब्ज । नमक-मिर्च मिलाना या लगानाचलना-नाड़ी चलना । न ज छूटना- किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना । नमक नाड़ी बंद हाना। फूट फूट कर निकलना कृतन्नता का नभ-सज्ञा, पु० (सं० नभस् ) श्राकाश, व्योम, दंड या सजा मिलना, नमकहरामी का दंड शून्य, गंगन, सावन या भादों माल, निकट, । मिलना । (जले या कटे पर ) नमक शिव, मेव, जल वर्षा । छिडकना (लगाना)-दुखिया को और नभगामी-सज्ञा, पु. (सं० नभोगामिन् ) अधिक दुख देना । दुख पर दुख या बुराई चन्द्रमा, पती, देवता, सूर्य, तारागण. पर बुराई करना । लुनाई या सुन्दरता जो बादल, विमान । मनोहर और प्रिय हो, लावण्य, लुनाई(दे०)। नभगेश-सज्ञा, पु० यौ० (सं०) गरुड़, चंद्रमा। नभवर-नभचारी-सज्ञा, पु. (सं० नभश्वर) नमकवार - वि० (फ़ा०) नमक खाने वाला, आकाशचारी, देवता, विमान, बादल, तारा पाला जाने वाला, नौकर, सेवक, दास । गण, सूर्य, चन्द्रमा। नमकसार-संज्ञा, पु० (फा०) नमक निकलने नभधुज* --संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० नभ- या बनने की जगह या स्थान । ध्वज) बादल । नमकहराम-संज्ञा, पु०, वि० यौ० (फा. नभभाषित-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राकाश- नमक + हराम अ.) कृतन, जिसका धन भाषित-एक प्रकार का नाटकीय कथन । खावे उभी का बिगाड़ करे। संज्ञा, पु०, वि. नभश्चर-संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा, पही, नमकहरामी । “भरि भरि पेट विषय को बादल, सूर्य, तारागण, विमान, देवता । धावत ऐपो नमकहरामी "—सूर० । वि. श्राकाश में चलने वाला। नमकहलाल-~-संज्ञा, पु० यौ०, वि०, ( फ़ा० नभस्थल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पासमान, (स०) श्रासमान, नमक-+ हलाल अ०) जो पुरुष अपने अन्नप्राकाश | स्त्री० नभस्थली। । दाता का कार्य तन-मन-धन से करे, कृतज्ञ, नभस्थित-वि० यौ० (सं०) श्राकाश में स्थित। स्वामिभक्त । संज्ञा, स्त्री० नमकहनाली । नभस्थिर। नमकीन-वि० (फा०) नमक पड़ा पदार्थ, नभस्य - संज्ञा, पु० (सं०) भादों का महीना। नभस्वान-संज्ञा, पु० यो० (सं०) पवन, वायु । नमक के स्वाद वाला पदार्थ, सुन्दर, स्वरूपनभोगति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) आकाश वान । संज्ञा, पु० (फा०) जिस पदार्थ में गमन । संज्ञा, पु० (सं०) आकाशचारी, देवता, नमक पड़ा हो। विमानादि। नमदा - संज्ञा, पु. (फ़ा०) जमाया हुअा उनी नभाधम--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मेघ, बादल ।। वन । मुहा०-नमदा कसना-रोब या नम-वि० (फा०) आई, गीला, भीगा । सज्ञा, | भातंक जमाना। स्त्री० नमी । सज्ञा, पु० (सं० नमस्) प्रणाम, नमन-संज्ञा, पु. (सं०) नमस्कार, प्रणाम, स्वर्ग, अन्न, वज्र, यज्ञ । झुकाव, नम्रीभाव । वि० नमनीय, नमित। नमक-संज्ञा, पु. (फ़ा०) नोन, नून (ग्रा०), नमना -- अ० कि० दे० (सं० नमन ) लवण, लोन निमक (दे०)। मुहा०-नमक नमस्कार या प्रणाम करना, मुकना,नम्र होना। अदा करना (चुकाना)-अपने स्वामी या नमनि-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० नमन) नम्रता, रक्षक या पालक के उपकारों का बदला देना। झुकाव, प्रणाम, नवनि (दे०) । “ नमनि किसी का नमक खाना-किसी के द्वारा नीच की अति दुखदाई"-रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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