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ध्यानना
ध्वंसक रखना, न भूलना। ध्यान में आना-- | ध्यान-योग्य-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विचारने अनुमान या कल्पना में भी न पा सकना। के योग्य, समाधि-योग, ध्येय ।। ध्यान लगना (लगाना) बराबर लगातार | ध्याना*- स० कि० दे० (सं० ध्यान ) स्मरण ख्याल या विचार बना रहना ( रखना)। या सुमिरन करना। मन, चित्त। मुहा०-ध्यान में न लाना ध्यानी--वि० ( सं० ध्यानिन ) स्मरण करने ----चिंता, परवाह या बिचार न करना। चेत, वाला, समाधि करने वाला, सुधि में मग्न ख़याल । मुहा०- ध्यान जमना-मन होने वाला, ध्यान-युक्त। या चित्त का एकाग्र होना। ध्यान जाना- ध्यानीय---वि० (सं०) स्मरणीय, ध्यान करने मन का किसी ओर आकृष्ट हो जाना। के योग्य । ध्यान दिलाना-चेताना, सुझाना, जताना, | ध्यापक-संज्ञा, पु० (सं०) चिंतक, विचारक, ख्याल या स्मरण दिलाना । ध्यान देना -- | ध्यान करने वाला, ध्याता। सोचना, विचारना, गौर करना, मन लगानाः ध्यावना-स० क्रि० (दे०) ध्यान करना या ध्यान पर चढ़ना, धंसना, बसना. पैठना, लगाना, भजन करना । "इन्द्र रहैं ध्यावत बैठना-मन में बस जाना, दिल में घर मनावत मुनिन्द्र रहैं " -- रत्ना। कर लेना, जी से न टलना। ध्यान बँटना ध्येय-वि० सं०) ध्यान या स्मरण करने -- चित्त का एकाग्र या स्थिर न रहना, के योग्य, जिसका ध्यान किया जावे। " मैं विचार का इधर-उधर होना । ध्यान बँधना ध्यानीतू ध्येय है, तू स्वामी मैं दास"-मन्ना। (बाँधना)-किसी ओर चित्त का एकाग्र या ध्रपद--संज्ञा, पु० दे० (सं० ध्रुवपद) एक प्रकार स्थिर होना ( करना )। ध्यान लगना का गीत या गाना, धरपद (दे०)। (लगाना)-चित्त एकाग्र होना (करना) । ध्रव-वि० सं०) अचल, स्थिर, नित्य, निश्चित, पमझ, बुद्धि, ज्ञान, धारणा, स्मरण । मुहा० । पक्का. ठीक, दृढ़ । संज्ञा, पु० श्राकाश, कील, -ध्यान पाना-याद या स्मरण होना। पहाड़, खंभा, बरगद ध्रुपद, विष्णु, ध्रुवध्यान में आना-अनुमान कर सकना. तारा, राजा उत्तानपाद के भगवद्भक्त पुत्र । समझना। ध्यान दिलाना (कराना) -- | ध्रुवता-- संज्ञा, स्त्री० : सं०) अटलता, दृढ़ता, याद या स्मरण कराना। ध्यान करना- | स्थिरता, निश्चय ।। स्मरण करना, सोचना, मन में देखना। ध्रवतारा-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ध्रुव + तारक) ध्यान पर चढ़ना-- याद या स्मरण होना। वह तारा जो पृथ्वी की अक्ष के सिरे की या पाना। ध्यान रखना - स्मरण या | सीध में उत्तर की ओर दिखलाई पड़ता है। यादरखना। ध्यान से उतरना----भूल जाना. ध्रव-दर्शक--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कुतुबनुमा, भुला देना । ध्यान छूटना (टूटना उख- कंपास (अं० दिग्दर्शक यंत्र । इना, उचटना ) चित्त या मन का इधर- ध्रध-दर्शन- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विवाह की उधर हो जाना । ध्यान धरना-परमेश्वर एक रीति जिसमें वर-कन्या को ध्रुव दिखकी याद में चित्त एकाग्र करना।
लाया जाता है। ध्यानना ----स० क्रि० दे० (सं० ध्यान) ध्यान ध्रुवलोक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) ध्रुव का या विचार करना।
स्थान । ध्यान-योग - संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह योग ध्वंस-संज्ञा, पु. (सं०) नाश, विनाश ।। जिसमें सब कर्मों में केवल ध्यान ही प्रधान ध्वंसक-वि. ( सं० ) नाश या नष्ट करने या मुख्य अंग माना जावे।
। वाला।
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