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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धनिया धनधारी और सम्पति । " जरै धनिक-धन-धाम'' भरा ) धनी, द्रव्यवान । संज्ञा, स्त्री० (सं०) - ०। धनाढ्यता। धनधारी-संज्ञा, पु० (सं०) कुवेर, बड़ा धनी।। धनाधार-संज्ञा, पु. यौ० (सं० धन+ धनन्तर-संज्ञा, पु० दे० (सं० धन्वंतरि ) आधार = स्थान ) धनागार, भाँडार, खज़ान, देववैद्य, धनत्तर (ग्रा०) धन्वंतरि, सामुद्रीय कोष, धन. जैसे बैंक, संदूक, पिटारा, चौदह रत्नों में से एक रत्न, बहुत भारी ! पिटारी । धनाधिकारी-संज्ञा, पु० (सं०) या बड़ा। कोषाध्यक्ष, खजाँची। धनपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कुवेर, बड़ा धनाधिकृत-संज्ञा, पु. यौ० (सं० धन+ धनी, धनवान । अधिकृत = अधिकारी) खजाँची, कोषाध्यक्ष । धनपिशाचिका–संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) धन-धनाधिप-संज्ञा, पु० (सं० धन-+ अधिप = तृष्णा, धनाशा, धन-प्राप्ति की व्यर्थ प्राशा। स्वामी) कुवेर, धनाधिपति, धनेश्वर, 'धनबाहुल्य-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) धन की धनाधिकारी। अधिकता, अर्थाधिक्य, धनाधिक्य । धनाधिपति धनाधीश-संज्ञा, पु. यौ० धनमद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) धनी होने का | (सं० धन+अधिपति, अधीश = स्वामी) घमंड, धनवान होने की उसक। कुवेर, बड़ा धनवान, धनराज, कोषाध्यक्ष । धनलुब्ध-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) धन का | धनाध्यक्ष-धनाधीश्वर-संज्ञा, पु. यौ० लालची, लोभी, अर्थ या धन-लिप्सु। ( सं० धन+अध्यक्ष = स्वामी ) कुवेर, धनवंत-वि० (सं० धनवत् ) धनवान् ।। कोषाध्यक्ष, खजाँची, भाँडारी। धनश्री-संज्ञा, त्री० यौ० (सं०) धन की धनार्जन-संज्ञा, पु० यौ० (सं. धन+ कांति या शोभा। अर्जनकमाना ) धन-कमाना, धन का धनवान् - वि० (सं०) धनी, धनवंत । (स्त्री. उपार्जन, धन-लाभ । “द्वितीये नाजितं धनवती)। धनं "-- भतृ श०। धनांध-वि०, संज्ञा, पु. यौ० (सं० धन+अंध) धनार्थी-संज्ञा, पु० यौ० (सं० धन + अर्थी धन-गर्वित, धन के घमंड से अंधा । संज्ञा, -- चाहने वाला ) धन चाहने वाला, लोभी, स्त्री० धनांधता। लालची. कृपण, धन-याचक ।। धनहीन-वि• यौ० (सं०) कंगाल, दरिद्र, धनाशा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० धन+ निर्धन । “न वन्धुमध्ये धन-हीन जीवनम्"। भर्तृ श०। आशा ) धन-प्राप्ति की प्राशा, तृष्ण या धना-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धनिका, हि. चाह । “ भोजने यत्र संदेहो धनाशा तत्र धनियाँ - जुवती ) युवती, वधू, स्त्रो, एक कीदृशी।"- स्फु० । औषधि, धनिया । संज्ञा, पु. (दे०) एक | धनाश्री-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक रागिनी तेली भक्त । (संगी. ) धनासिरी (दे०)। धनागम-संज्ञा, पु. यौ० (सं० धन+ धनासरो-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक छंद (पिं०)। मागम = आना ) धन की प्राय या प्राप्ति, धनि - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धनी) वधु, आमदनी, धन मिलना। युवती स्त्री । वि० (दे०) धन्य । धनिधनागार-संज्ञा, पु० यौ० (सं० धन+पागार धनि भारत-भूमि हमारी"--स्फु० । =स्थान ) खज़ाना, भाण्डार, धन रखने धनिक-वि० (सं०) धनवान, धनी । संज्ञा, का स्थान, कोषागार । पु० (सं०) धनवान, धनपति । धनाढ्य-वि० यौ० (सं० धन+पाय = ( धनिया-संज्ञा, पु० दे० (सं० धन्याक, मा० श. को.-11 For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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