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अनगिना
अनडीठ अनगिना-वि० पु० दे० (हि. अन् + रहा हो, जिसका अनुमान भी न किया गिनना ) न गिना हुआ, असंख्यात्, अपार । गया हो, क्रि० वि० अकस्मात, अचानक, स्त्री० अनगिनो।
धोखे में, वि० सी० अनचोती-न सोची शनि- वि० सं० अन् + अग्नि ) श्रुति- हुई अचिंतिता। स्मृति विहित. अग्नि हत्र कर्म हीन, पाचोन्डा--वि० (हि. अन् + चीन्हना) निरग्नि, अग्नि वयन रहित यज्ञ संज्ञा, स्त्री० अपरिचित अज्ञात, वे पहिचान, अनजान । अग्नि का अभाव, अग्नि रहित । अचै-संज्ञा स्त्री० (हि.) अशांति, नगै* -- वि० अ० गैर) गैर परात्रा, बनी। अपरिचित (दे०) अ वि. जो
श्र - वि० दे० (सं० अ क्षत् ) क्षत अपना न हो, सगा न हो, संज्ञा पु० अनजान, । या घाव रहित । बेजान पहिचान का।
अनास-वि० (दे०) बिना इच्छा का, अनगैया - संज्ञा स्त्री० (दे० ) बॅगनाई,
अनिच्छित । आँगन (सं० प्रांगण )-अ यया।
नकाला-वि० ( हि० ) अनछिना अनघ-वि० (सं० अन् । अध) नि पाप,
बिना रिला, छिलका समेत, अनारी। निर्मल, सुकृति, पुण्यवान, पवित्र, शुद्ध,
अनजान-वि० दे० (हि. अन् । जानना) संज्ञा, पु. पुण्य, अनघा, ( स्त्री० ) सुन्दर,
अज्ञानी, नादान, अपरिचित, अज्ञात, ना. अच्छे गान का फल, वि०-धनधी। अनघरी-संज्ञा, स्त्री. (हि० सं० अन्+
समझ, अज्ञातकुलशील, अजान दे० ( यही
शब्द ठीक है, जाने के पागे अन प्रत्यय न घरी) बुरी सायत, कुसमय, बुरी घड़ी।
आन चाहिये थी क्योंकि यह शब्द व्यंजन अनी -वि० ( हि० अन् + घेरना) बिना
से प्रारम्भ होता है) क्रि० वि० बिना बुलाया हुअा, अनिमत्रित । अनघार --संवा, पु. (सं० घोर ) अंधेर,
जाने बुझे, बिना जाने माने, वि०, स्त्री० अत्याचार ज़्यादती अन्याय, अनाचार ।
अनजानी, क्रि० ( अनजानना )। वि०-जो घोर न हो।
अनजानना-अ० कि० (हि.)न जानना, अनघोग-वि० (हि० अनधोर ) अन्यायी,
बिना जाने, “छमहु चुक अनजानत केरी',
रामा० । क्रि वि० चुपचाप, अचानक, "जीति पाइ अनघोरी पाये"-छत्र० ।
अनजामा - वि० (दे०) मरु, बाँझ, बिना अनचहा-'व० दे० (हि० अन् + चाहना )
उगा, उत्पत्ति-शक्ति-विहीन, अफला। अवाँछित, अनभीट, जिस की चाह न हो।
अनजीविन- वि० ( दे०) प्राणहीन, मृत, स्त्री० अनचहा।
मुर्दा. शव, " अनजीवत सम चौदह प्राणी" अनचाहत-वि० पु. ( हि० ) जो प्रेम न | -रामा०। करे, न चाहने वाला, न चाहते हुए, अनट संज्ञा पु० दे० (सं० अमृत ) उपनिर्मोही-संज्ञा, पु. प्रेम न करने वाला, | द्रव, अन्याय, अनीति, अनाचार, अत्याचार, कि० वि० न चाहते हुए।
। दे०) गाँठ, गिरह, ऐंठ, " सो सिर धरि अनचाहा-वि० पु. ( हि० ) अनभीष्ट, धरि करहिं सब, मिटिहि अनट अवरेव" स्त्री० अनचाहो।
-रामा०। अनचाना-वि. पु. ( अन् + चीतना ) अनडीठ* - वि० दे० (सं० अन् + दृष्ट) अविचारित, अचिंचित, जिसका विचार न । बिना देखा, न देखा हुआ।
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