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तृणधान्य
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तेजमान पकड़ना-गिड़गिड़ाना, हीनता दिखाना। तृषा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) लोभ, प्यास, इच्छा। " दसन गहहु तृण कंठ कुठारी'-रामा। तृषावत्-तृषावान्, तृषावन्त--- वि० (सं०) किसी चीज़ पर तृण टूटना-नज़र से प्यासा, अभिलाषी। बचाने का उपाय करना। तृणवत-बहुत | तृषित-वि. (सं०) प्यासा, अभिलाषी। तुच्छ, नाचीज़ । तृण तोड़ना-नज़र से "तृषित वारि-बिनु जो तनु स्यागा"-रामा। बचाना। तृण सा तोरना- लगाव त्यागना | तृष्णा--संज्ञा, स्त्री. (सं०) लोभ, लालच, या छोड़ना । "देह गेह सब तृण सम तोरे" प्यास । "तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा" - रामा०।
-भो । तृस्ना, तिसना (दे०)। तृणधान्य-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तिनी तृस्ना तरल तरंग राग है ग्राह महाबल"
धान का चावल, तिन्नी धान (दे०)। भा० भतृ ० (कु० वि०)। तृणमय-वि० (सं०) घास-फूस का बना ते*-- प्रत्य० दे० ( सं० तस-प्रत्य० ) से, हुआ।
। द्वारा । " तू तो तजि है नाहिं प्रापही तें तणविन्दु---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्यास जी, तजि जैहैं ,'–भा० भतृ (कुं० वि०)। एक तीर्थ ।
। तेंदुप्रा-तेंदुवा-संज्ञा, पु० (दे०) चीता जैसा तृण-शय्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) साथरी,
। एक हिंसक जन्तु । कास-कुसों या घास-फूस से बनी चटाई। तेंद-संज्ञा, पु० दे० ( सं० तिंदुक ) एक पेड़ "तण-शय्या महि सोवहिं रामा"-रामा।
| जिसकी पक्की लकड़ी आबनूस कही जाती है। तृणारणिन्याय -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) घास
ते*-अव्य दे० (सं० तस्---प्रत्य०) से। फूस और अरणी लकड़ी से भाग प्रगट होने
सर्व० ० ० (७०) वे।। की तरह स्वच्छंद या भिन्न भिन्न कारणों की
तेऊ-सर्व. व. ( हि० वे ) सब के सब, वे व्यवस्था ( न्या० )।
भी । “भेष प्रताप पूजियत तेऊ"-रामा० । तृणावर्त्त-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बवंडर, तेकाला-संज्ञा, पु० (दे०) त्रिशूलाकार एक दैत्य, तिनावर्त (दे०), "तृणावतं मारि के
मारि के हथियार, मछली पकड़ने का यंत्र। पछारि छारि कीन्यो जिन"---कुं० वि० ख ना -अ. क्रि० दे० (हि. तेहा) तृणोदक-संज्ञा, पु० यो० (सं०) घास और | क्रोधित या रुष्ट होना, बिगड़ना। पानी, पशुओं का भोजन, चारा-पानी।
तेग-संज्ञा, स्त्री० ( अ० ) तलवार, खड्ग । तृतीय-वि० (सं०) तीसरा।।
तेगबहादुर-संज्ञा, पु. यो० (फा०) सिक्खों तृतीयांश--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तिहाई,
__ के गुरु। तीसरा भाग। तृतीया-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तीज, करण |
तेगा-संज्ञा, पु० दे० (अ० तेग) छोटीतलवार ।
| तेज-संज्ञा, पु० (सं० तेजस् ) प्रताप, श्राभा, कारक ( व्या०) । “कर्तृ करणयोस्तृतीया" |
लिंगशरीर, एक तत्व। वि० (दे०) पैना, तेज। तृन-तिन-संज्ञा, पु० दे० (सं० तृण ) तजव० ( काल
| तेज़- वि० (फा०) पैना, शीघ्रगामी, घास-फूस, तिनका।
फुरतीला, मैंहगा, प्रभाव, बुद्धिमान । संज्ञा, तृपति-तृपिता-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तृप्ति) |
स्त्रो० तेजी। तृप्ति, संतोष। वि० दे० (सं० तृप्त) तृप्त, संतुष्ट। | तेजपात तेजपत्ता. तेजपत्र-संज्ञा, पु० दे० तृप्त-वि० (सं०) प्रसन्न, संतोषवान, अघाया। (सं० तेजपत्र ) तमाल पेड़ का पत्ता। तृप्ति-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सन्तोष, खुशी, | तेजबल-संज्ञा, पु. ( सं०) एक औषधि । प्रसन्नता, तुष्टि।
तेजमान--वि० (सं० तेजोवान ) प्रतापी।
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