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तूफानी ५४७
तृण भी बरसे, महावृष्टि, कोई उत्पात, आँधी, शहतूत, मदार, सेमर का घुवा, " सबको प्राफत, झगड़ा, हुल्लड़, झूठा दोष लगाना।। ढंपन होत है जैसे वन को तूल"-वृन्द। वि. अति वेगवान । मुहा०-तूफ़ान । संज्ञा, पु० दे० ( हि. तून ) लाल रंग का लाना ( उठाना )-भारी आपत्ति खड़ी वस्त्र, लाल रंग। वि० दे० (सं० तुल्य ) करना, आन्दोलन करना, फैला देना। बराबर, तुल्य, समान । तूफानी-वि० ( फा० ) उपद्रवी, बखेड़िया, तूलना-स० कि० दे० (हि. तुलना ) धुरी प्रचंड, झूठा कलंक लगाने वाला
में तेल देना, तौलना, नापना । तूमड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तू वा ) छोटा | तूलनीय-संज्ञा, पु० (सं० तूल) कदम का पेड़।
तु बा, तूंबी, मौहर बाजा, तूमरी (दे०)। तूला-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कपास । " तूला तूमतड़ाक-- संज्ञा, स्त्री० (दे०) शान-शौकत, सब संकट सहति"-सुख। उसक, शेखी, तड़क-भड़क ।
| तूलिका-संज्ञा, स्त्री. ( सं०) चित्र या तसतूमना-स० क्रि० दे० (सं० स्तोम) उधेड़ना, वीर बनाने का क़लम । रेशा रेशा करना, धुनना।
| तूलिनी-संज्ञा, पु० दे० (सं० तूला ) कपास, तूमार-संज्ञा, पु. (अ.) ढेर. व्यर्थ बातों का सेमर । फैलाव या विस्तार, बात का बतंगड़। तूली-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तूला) नील मुहा०—तूमार बाँधना-विस्तार बढ़ाना। का पेड़, तसवीर या चित्र बनाने की कलम तूमिया- संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तोम ) | या बरौंछी। बेहना, रुई धुनने वाला।
तूबर-संज्ञा, पु० दे० ( सं० तोमर ) राजपूतों तूर-संज्ञा, पु० (सं० ) नगाड़ा, तुरही तूरि की जाति । (दे०) । “बजत तूर झाँम चहुँफेरी'-पद। तूष्णीम्-वि० (सं० तूष्णीम् ) चुप, मौन । संज्ञा, पु. (अ०) एक पहाड़।
संज्ञा, स्त्री० (सं०) चुप्पी, मौनता। तूरज-संज्ञा, पु० दे० (सं० तूर) तुरही बाजा! तूस--संज्ञा, पु० दे० (सं० तुष) छिलका,
"इत तूरज सूरज कौं बजाइ'-सुजान। भूपी। संज्ञा, पु. ( तिब्बती-थोश ) पशम, तूरण-तूग्न-कि० वि० दे० (संपूर्ण) तूर्ण, पशमीना, कम्बल, नमदा। शीघ्र, तुरन्त, जल्दी। " इनहीं के तपतेज तूसदान-संज्ञा, पु० दे० यौ० (पुत्त कारदृश तेज बदिहैं तन तूरण ''-राम।
+दान ) तोसदान, कारतूसदान | तूरना-स. क्रि० दे० (हि टूटना) तोड़ना, | तुसना-स० कि० दे० (सं० तुष्ट) तृप्त, संतुष्ट तोरना (दे०)। " पूनिबे काज प्रसूननि __ या प्रसन्न करना । अ० क्रि० (दे०) तृप्त, संतुष्ट तूरति"-दास।
या प्रसन्न होना। तूरान-संज्ञा, पु. (फा०) एक देश । वि० तृख -संज्ञा, पु० (दे०) जायफल । तूरानी-तूरान देश का। संज्ञा, पु० तुरान तृखा-संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० तृषा) प्यास । देश-वासी, तत्रोत्पन्न, वहाँ की भाषा। तिरखा (ग्रा० )। "चातक स्टै तृखा अति तुरी-वि० (दे०) तुल्य, समान । संज्ञा, स्त्री० ओही"-रामा। (दे०) तुरही।
तृजग-वि० दे० (सं० तिर्यक) पशु, पक्षी। तूर्ण-क्रि० वि० (सं०) शीघ्र, तुरन्त, जल्दी। तृण- संज्ञा, पु० (सं०) कुश, काँसा, सरपत, तूर्य-संज्ञा, पु० (सं०) नगाड़ा, भेरी, दुन्दभी। बाँस, गाँडर, घास, तृन, तिन । " तृण वि० तुरीय, चतुर्थ ।
धरि भोट कहति वैदेही "- रामा० । तूल-संज्ञा, पु. ( सं०) भाकाश, कपास, । मुहा०—(दांतों में ) तृण गहना या
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