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तिलिया
| वरी
तिसरायत तिलिया-संज्ञा, पु० दे० (हि. तिल)| तिलौदन-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० तिल+ एक विष, शंखिया, सरपत ।
__ अोदन ) तिल और चावल मिली खिचड़ी। तिली-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तिल) सफेद तिलौरी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. तिल+ तिल, तिल्ली । तिल्ली-(ग्रा०)। __वरी) तिल मिली बरी या तिल की कचौरी । तिलुवा-संज्ञा, पु० (दे०) तिलों का लड्डू। तिल्ला-संज्ञा, पु० दे० ( अ० तिला ) कलातिलेदानी- संज्ञा, स्त्री० (हि. तिलदानी) वतून के काम का वस्त्र । संज्ञा, स्त्री० एक
दरजियों की थैली जिसमें वे सुई तागे। वर्ण वृत्त, तिलका (पि०)। रखते हैं।
तिल्लाना- एंज्ञा, पु० दे० (फा० तराना ) तिलेगू---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० तेलगू ) तैलंग |
गाने का एक गीत। देश की भाषा, तेलगू।
तिल्ली-संज्ञा. स्त्री० दे० (सं० तिलक) प्लीहा, तिलैहा-संज्ञा, पु० (दे०) एक पक्षी, घुध्धू, |
पिलही । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० तिल) सनद पंडुकी, पंडुक ।
तिल, तिली। तिलोक-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिलोक) तीनों
तिवाड़ी-तिवारी-संज्ञा, पु० दे० (सं० लोक-पृथ्वी, आकाश, पाताल । “ ठाकुर
त्रिपाठी ) ब्राह्मणों की एक जाति । तिलोक के कहाइ करिहैं कहा"--ऊ० श० !
तिवारा- संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि० तीन+
द्वार या वार ) तिदरी, तीन द्वार की दालान, तिलोक-नाथ तिलोक-पति - संज्ञा, पु.
| तिवारी । तीन बार, तीसरी बार, यौ० दे० (सं० त्रिलोकनाथ-त्रिलोक-पति)
तिबारा। तीनों लोंकों के स्वामी, विष्णु, तिलोकी
तिवासा-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० त्रिवासर) नाथ, तिलोकीपति।
तीन दिन, तिबासर । तिलोको-संज्ञा, पु० दे० (सं० त्रिलोकी)
तिबासा-तिबासी-वि० दे० ( हि० ) तीन तीनों लोक, उपजाति छंद (पिं०)।
दिनों का वासी। तिलोचन-संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० त्रिलोचन ) शिव जी ।
तिशना, तिसना*-संज्ञा, पु० दे० ( सं०
तृष्णा ) प्यास, तृष्णा, चाह । संज्ञा, पु० दे० तिलोत्तमा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक अप्सरा ।
(फ़ा० तशनीय) ताना, व्यंग। तिलादक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) तिल और
तिष्ठना*-अ० क्रि० दे० (सं० तिष्ठ) ठहरना। पानी जो प्रेत को दिया जाता है। " श्राजु
तिष्ठित-वि० (सं० तिष्ठ) ठहरा हुआ। तिलोदक देहुँ पिता को "-राम ।
तिष्य-संज्ञा, पु० (सं०) पुष्य नक्षत्र, पूस तिलोरी- संज्ञा, स्त्री० (दे०) तेलिया, मैना।
महीना, कलियुग, कल्याणकारी। संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० तिल-+बरी) तिल तिवन-वि० दे० (सं० तीक्ष्ण) तेज़, पैना, की बरी या कचौरी।
तीखा, तीव्र, प्रचंड, चरपरा, तीछन (दे०)। तिलौचना-स० क्रि० दे० (हि. तेल + | तिसा-सर्व दे० (सं० तस्मिन् ) उस (विलो.
औंछना ) थोड़ा तेल लगा किसी वस्तु को जिस) । मुहा०—तिस पर-इतना होने चिकना करना।
पर या ऐसी दशा या अवस्था में । तिलौंडा-वि० दे० (हि. तेल ---ौंछा) तिसराय-क्रि० वि० दे० (हि. तीसरा ) तेल के से रंग या स्वाद वाला, चिकना, तीसरी बार, तिबारा। तेलयुक्त, स्नेहयुक्त । "जकित चकित द्वैतकि तिसरायत-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. तीसरा) रहे, तकित तिलौंछे नैन"-बि०। । तीसरा पन, पराया।
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