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तारट्रटना ६३०
तारा तारट्रस्ना-अ. क्रि० यौ० दे० (हि.) समाचारों के जाने पाने का स्थान । कारबार नष्ट हो जाना, टिक्का उड़ाना, प्रवेश तारघाट-संज्ञा, पु० यौ० ( हि० ) कार्यबंद होना, सिलसिला बिगड़ना, वशीभूतका सिद्धि का सुभीता, व्यवस्था । छड़क जाना । मुहा०-तार तार करना-- | तारण-संज्ञा, पु० (सं.)तारन (दे०) नदी सूत सूत अलग अलग कर देना । लगातार, श्रादि से पार उतारने का कार्य, उद्धार, परंपरा, सिलसिला, क्रम । मुहा० -तार | निर्वाह, निस्तार, तारने या मुक्ति देने वाला, बँधना-बाँधना-किसी काम का लगातार |
भगवान, विष्णु, शिव । "जगतारण कारण चला जाना, सिलसिला जारी रहना । ब्योंत, भव भंजन धरणी-भार" --रामा० । ढङ्ग, व्यवस्था। मुहा०—तार जमना, बैठना, तारणतरण- संज्ञा, पु० (सं०) नाव से उतारने बँधना-ब्योंत बनना, कार्य-सिद्धि का | वाला । मुक्ति या मोक्ष देने वाला, विष्णु, ढङ्ग या सुभीता होना । युक्ति, ढङ्ग, एक |
शिव, तारने वालों का तारनेवाला। वर्ण वृत्त । मुहा०—तार ढीले पड़ना
तारतम्य-संज्ञा, पु० (सं० ) कमी-वेशी,
कम-ज्यादा, न्यूनाधिक्य, न्यूनाधिक्यानुसार शिथिलता पाना । संज्ञा, पु० दे० (सं० ताल)
क्रम, गुणादि का आपस में मुकाबिला, गुप्त. गाने की ताल, ताड़ पेड़ । संज्ञा, पु० दे० (सं०
भेद का रहस्य । वि० तारतिक। तल) तल,सतह । (संज्ञा, पु० दे० (हि० ताड़)
तारतोड़- संज्ञा, पु० (दे० ) कारचोबी करनफूल, तरौना। वि० दे० (सं.)
का काम। साफ़, स्वच्छ । तारक-संज्ञा, पु० (सं०) तारा, आँख, | तारन-संज्ञा, पु० दे० (सं० तारण ) पार आँख की पुतली, तारकासुर । “ों रामाय
उतारना, उद्धार, निस्तार, निर्वाह । नमः " यह मंत्र । नदी श्रादि या संसार- तारनतरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० तारणतरण) सागर से पार उतारनेवाला, एक वर्ण
तारनेवालों का तारनेवाला, मुक्तिदाताओं वृत्त । "गिरि वेध खड़मुख जीति तारक |
का मुक्तिदाता । "सकृत उर मानत जिन्हें _
नर होत तारन-तरन "- कं० वि०। यौ० तारक-मंडल-तारा-मंडल |
तारना-सं० क्रि० दे० ( स० तारण ) पार तारकश-संज्ञा, पु० यौ० (हि. तार+ |
__ लगाना, मुक्ति देना। कशा फा० ) धातु का तार बनाने वाला।
तारपतार-वि० (दे० ) तितर-बितर,
छिन्न-भिन्न । संज्ञा, स्त्री. तारकशी। तारका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तारा गण,
तारपीन-संज्ञा, पु० दे० ( अं० टारपेंटाइन)
चीड़ का तेल । आँख की पुत्तली, अंगद की माँ, तारा ।
तारबी संज्ञा, स्त्री० (सं० ताड़का) ताड़का । "तुलयति
-संज्ञा. पु० यौ० (हि. तार+का.
वर्क) बिजली का तार । स्म विलोचन तारका"-माघ० ।
तारल्य-- संज्ञा, पु० (सं०) द्रवत्व, तरलता तार-कण-संज्ञा, पु० (सं) षडानन, शिव । चंचलता। तारकात--संज्ञा, पु० यो० (सं० ) तारका- तारा-संज्ञा, पु० (सं० ) सितारा, आँख की सुर का पुत्र ।
पुतली, अंगद की माँ। "तारा बिकल देखि तारकासुर-संज्ञा, पु. यो० (सं०) एक दैत्य
रघुराया"-रामा० । मुहा० तारे गिननाजिसे षडानन ने मारा था।
चिंता या दुख से रात बिताना । तारा तारकेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिवजी । टूटना-उल्कापात होना । तारा डूबनातार-घर-संज्ञा, पु. यो० (हि.) वार से शुक्रास्त होना।
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