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ठाकुरी
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ठिकरा-ठिकड़ा +सेवा ) देवपूजन, मंदिर को अर्पित धन नारि धर्म कुल धर्म बचायो"-स्फु० । या ज़मीदारी श्रादि।
| ठानना-स० क्रि० दे० (सं० अनुष्ठान ) ठाकुरी-संज्ञा, स्त्री० (हि. ठाकुर + ई-प्रत्य०) कोई काम प्रारंभ करना, छेड़ना, पक्का
राजत्व, आधिपत्य, प्रातङ्क, ज़मीदारी। करना, ठहराना। ठाट-संज्ञा, पु० दे० ( सं० स्थातृ ) बाँस ठाना*-स० क्रि० दे० (सं० अनुष्ठान ) की खपाचों का परदा, शरीर, पंजर, खपरों पक्का या स्थापित करना, रखना, ठानना, या फूस के नीचे का बाँसों या लकड़ियों उठाना । स्त्री० ठानी। का टट्टर, ढाँचा, सजावट । अ० क्रि० ठठना ठाम *-संज्ञा, पु० स्त्री० दे० (सं० स्थान ) (दे०), बनाना । यौ० --ठाट-बाट -सजा- ठौर, स्थान, चलने का ढंग, ठवनि, मुद्रा। वट । मुहा०-ठाट बदलना-वेश बद
ठार-संज्ञा, पु० दे० ( सं० स्तब्ध ) अधिक लना, झूठा बड़प्पन था प्रभुत्व-दिखावट,
जाड़ा या सरदी, हिम, पाला। रंग जमाना या बाँधना, दिखावा, आडंबर,
ठाला---संज्ञा, पु० दे० (हि. निठल्ला ) उद्यमबाहरी तड़क-भड़क, ढंग, तर्ज, तैयारी,
हीन, बेकार । यौ-बैठा-ठाला। सामान, युक्ति, उपाय । संज्ञा, पु० दे० (हि.
° ठाली-वि० स्त्री० (हि. निठल्ला ) बेकार, ठाट ) मुंड, समूह, ज़्यादती, अधिकता।
कता। बेरोज़गार, ख़ाली। (स्त्री० ठाटी)।
ठावना-क्रि० वि० (सं० अनुष्ठान ) पक्का ठाटना*-स. क्रि० दे० (हि० ठाट) या ठीक करना, निश्चित करना।
बनाना, सजाना, सँवारना, ठानना, रचना। ठाहर-ठाहरु--संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थान ) ठाट-बाट -संज्ञा, पु० दे० (हि० ठाट) सजा- ठौर, ठाम, स्थान, डेरा । “ तन नाहीं सब
वट, आडंबर, सजधज, तड़क-भड़क । ठाहर डोला"-40। " गिरें तो ठाहरु ठाटर--संज्ञा, पु० दे० (हि० ठाट ) पंजर, नाहिं"- कबी०। ठाट, टट्टर, ठाटबाट, शृङ्गार।
ठिंगना-ठिगिना, ठिंगुना-वि० दे० ( हेठ ठाटी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० ठाट ) मुंड, +अंग ) नाटा पुरुष. वामन, छोटे डील समूह ।
का । (स्रो० ठिंगनी, ठिगिनी, ठिंगुनी)। ठाठा-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थातृ) टट्टर, ठिक-संज्ञा, स्त्री. (दे०) स्थान, अवसर पंजर, सजावट, बनावट, ठाट ।
विशेष, थिगरी (दे०), टीप, चकती। क्रि० ठाढ़ा*--वि० दे० (सं० स्थातृ ) खडा, वि० ठीक। समूचा, पैदा, उत्पन्न । “जामवन्त कह ठिकठैन -संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि० ठीक रहु बल ठाढ़ा ".-रामा० । मुहा०- + ठयना ) ठीक-ठाक, व्यवस्था, प्रबन्ध, ठाढ़ा देना-ठहराना, टिकाना। वि. आयोजन । “ ठये नये ठिकठन "---वि० । हृष्टपुष्ट, दृढ़, हट्टाकट्टा ।
ठिकना-प्र० क्रि० दे० (हि० ठहरना) ठादरी-संज्ञा, पु० (दे०) लड़ाई, झगड़ा, ठहरना, टिकना, रुकना, ठीक होना । मुठभेड़ । “ देव श्रापनी नहीं सँभारत करत ठिकरा ठिकड़ा-संज्ञा, पु० दे० (हि. इन्द्र सों ठगदर"- सूबे।
टुकड़ा) मिट्टी के घड़े आदि का खंड, ठान—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अनुष्ठान) कार्या- पुराना टूटा-फूटा बर्तन, भिक्षा का रंभ, प्रारंभिक कार्य, ह निश्चय या बरतन । वि. तुच्छ । स्त्री० ठिकरी, विश्वास, अंदाज । “ठान जहर व्रत ठीकरी (दे०) ।
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