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ठसाठस
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ठाकुर-सेवा (गाँसी) जावे, घनी, जैसे बन्दूक का गज़ । ठहरौनी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० ठहराना ) ठसाठस-क्रि० वि० दे० (हि० ठस ) हँस दहेज का करार।। ह्स या ठाँस ठाँस कर भरा हुआ, खचा- ठहाका-संज्ञा, पु० द० ( अनु०) जोर खच या अधिकता से भरा हुआ, अति घना। । की हँसी, अट्टहास, श्राघात | उस्सा -संज्ञा, पु० (दे०) गर्व भरी चेष्टा, ठहियाँ-ठइयो - संज्ञा, स्त्री० (दे०) (सं० घमंड, उसक, शेखी, शान ।
स्थान ) ठौर, स्थान । ठहना-अ० कि० दे० ( अनु० ) घोड़े का । ठा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्थान) ठौर, स्थान । बोलना, घंटा बजना । अ० कि. द० ( सं० ठाँई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. ठाँव ) जगह, संख्या ) बनाना, सँवारना।
ठौर, स्थान, तई, प्रति, निकट । ठहर-ठाहर-संज्ञा, पु० दे० । सं० स्थल) ठाँउ-ठाँऊँ-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० स्थान) स्थान, ठौर, चौका। " ठहर देखि उतरे | ठौर, स्थान, पास, निकट । “पाँडे जी सब लोगू"-रामा०।
यहि बात को को बूझे इहि ठाँउ"--दीन । ठहरना-- अ० क्रि० दे० (सं० स्थैर्य) रुकना । संज्ञा, पु० दे० ( अनु० ) बंदूक का शब्द । स्थिर होना, टिकना, स्थित रहना, डेरा
ठाँठ--वि० दे० ( अनु० ठन ठन ) सूखने से डालना । मुहा०-मन ठहरना -- मन __ रस-रहित पदार्थ, नीरस, दूध न देता पशु । की व्याकुलता मिट जाना, चित्त स्थिर ठायँ- संज्ञा, पु. स्त्री० (सं० स्थान ) ठौर, होना । फिसल न पड़ना, खड़ा रहना, नाश | ठाम (व.), स्थान, पास, निकट । संज्ञा, पु. न होना, कुछ दिनों तक काम देना या द० (अनु०) बंदूक का शब्द । चलना, थिराना, धैर्घ्य धरना, पासरा करना ठाँय-ठाँय-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अनु० ) बंदूक या देखना, पक्का, ठीक या निश्चित होना। या छींकादि का शब्द, झगड़ा, झाँय झायें । मुहा०---किसी बात का ठहरना- ठाँध-- संज्ञा, पु०, स्त्री. द. (सं० स्थान ) किसी बात का संकल्प या निश्चय होना। ठौर, स्थान । म. क्रि० ठहरा है, जैसे-वह अपना ठाँसना-स० कि० द० (सं० स्थास्न) किसी सम्बन्धी ठहरा।
बरतन में कुछ दबा दबा कर भरना, रोकना, ठहराई-संज्ञा, स्त्री. द. (हि. ठहरना) मना करना, घना करना। गाँसना । अ० ठहराना क्रिया का भाव या मज़दूरी, अधि- क्रि० (दे०) ठन ठन शब्द करके खाँसना । कार, दखल, कज़ा।
ठाकुर-संज्ञा, पु० द० (सं० ठक्कर ) देवता, ठहराऊ---वि० ( हि० ठहरना ) टिकाऊ, परमेश्वर, विष्णु, बड़ा प्रादमी, राजा, सररक, मज़बूत ।
दार, स्वामी, नायक, जमीदार, क्षत्रियों या उहराना-~० कि० दे० ( हि० ठहरना) और नाइयों की पदवी । स्त्री० ठकुरानी, किसी को चलने से रोकना, दिकाना, कहीं ठकुराइन । " ठाकुर तिलोक के कहाइ जाने न देना, होते हुये कार्य को रोक करिहैं कहा ''---ऊ० श० । देना, ठीक या पक्का या तै करना। ठाकुरद्वारा---संज्ञा, पु० यौ० ( हि० ठाकुर -- ठहराघ---संज्ञा, पु० दे० (हि. ठहरना) ठह- द्वारा ) विष्णु-मंदिर, देवस्थान, देवालय । रना क्रिया का भाव, स्थिरता, रुकाव, ठाकुरबाड़ी-- संज्ञा, स्त्री० द० यौ० (हि. निश्चय । " हो ठहराव चित्त चंचल का ठाकुर --- बाड़ी ) मंदिर, देवालय ।। वही योग कहलावे "--स्फु०। | ठाकुर-सेवा-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( हि० ठाकुर
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