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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष्क ७४६ झंझनाना ज्यातिष्क संज्ञा, पु. (सं०) नक्षत्रों, तारा- ज्वरति-वि० यौ० (सं०) बुखार से तंग। गणों और ग्रहों का समूह, मेथी, चितावरी। नरित-वि० (सं०) जिसे बुखार हो । ज्योतिष्टोम-संज्ञा, पु० (सं०) एक यज्ञ। ज्वलंत-वि० (सं०) दीप्तिमान, प्रकाशित, ज्योतिष्पथ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राकाश । बहुत प्रगट, स्पष्ट । ज्योतिष्पुंज-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तारागण। ज्वल-संज्ञा, पु० (सं०) आग की लपट । ज्योतिष्मती - संज्ञा, स्त्री० (सं०) रात्रि, माल ज्वलन- संज्ञा, पु० (सं०) जलने का भाव केंगुनी (औष०)। या क्रिया, जलन, दाह, लपट । " प्रसिद्ध ज्योतिष्मान-वि० (सं०) प्रकाशमान | मूर्धज्वलनंहविर्भुजः "-माध० । संज्ञा, पु० (सं०) सूर्य । ज्वलित-वि० (सं०) जला हुआ, प्रकाशित । ज्वाना-वि० दे० (सं० युवा) जवान । ज्योतीरथ-संज्ञा, पु० (सं०) ध्रुवतारा।। ज्वार-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० यवनाल) ज्योत्स्ना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) चन्द्रमा का प्रकाश, या चाँदनी, उजेली रात । जुनरी, जुवार, जोन्हरी, जोंधरी (ग्रा०) अन्न, समुद्र का बढ़ाव, ( विलो. ) भाटा। ज्योनार-ज्योनार-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० ज्वारभाटा-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समुद्र के जेमन = खाना ) न्योता, ज्यानत, दावत । बढ़ाव-घटाव। ज्योरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० जीवा) रस्सी, ज्वाल-ज्वाला-संज्ञा, पु० स्त्री० (सं०) भाग डोरी, जौरी, जउरो ( ग्रा० )। की लपट । “ सीरी परी जाति है वियोग ज्योहत, ज्योहर - संज्ञा, पु० [सं० जीव+ ज्वाल हुतौ अब"-रत्ना०। हत) .खुदकुशी श्रात्म-हत्या, जौहर। घालादेवी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) काँगड़ा ज्यौतिष-वि० (सं०) ज्योतिष-संबंधी। । की देवी। ज्वर-संज्ञा, पु० (सं०) बुखार, ताप। ज्वालामुखी (पर्वत)- संज्ञा, पु० (सं०) वह ज्वरांकुश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ज्वर की एक पर्वत जिससे धुवाँ, श्राग के गोले, लपट, दवा (रसायन)। | पिघले पदार्थ निकलते हैं। झ झ-संस्कृत हिन्दी की वर्ण माला के चवर्ग| अनु० ) काँटेदार झाड़ी, काँटेदार पौधा, का चौथा व्यंजन, इसका उच्चारण स्थान | बिना पत्तों का पेड़, बेकाम वस्तु-समूह । यौ० झाड़ी-झंखाड़। झंकना-१० कि० दे० (हि. झीखना) पछि झंगा-संज्ञा, पु० दे० (हि. भगा) छोटे ताना, अफसोस करना। बच्चों का अँगरखा, मँगा, मँगवा (ग्रा०)। झंझार-संज्ञा, स्त्री. (सं०) झन झन का शब्द, छोटे २ जन्तुओं के बोलने का शब्द । " सीस पगा न मँगा तन में "-नरो । झंकारना-स० क्रि० दे० (सं० झंकार ) | अंगुली-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. मँगा) झन २ शब्द उत्पन्न करना। __ छोटा मँगवा । अँगुलिया (दे०)। झंखना--अ. क्रि० (हि. झीखना) पश्चा- झंझट-संज्ञा, स्त्री० (अनु०) नाहक झगड़ा, ताप करना, पछिताना। " पान खाय भी लड़ाई, बखेड़ा। कल को झंखै',-क०। झंझनाना-प्र. क्रि० (भनु०) झन २ झंखाड़-संज्ञा, पु० दे० (हि० झाड़ का ) शब्द करना, मंकार होना, अप्रसन्न होना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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