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जड़ी
जड़ी - संज्ञा, स्त्री० (हि० जड़) एक वनस्पति ( औषधि ), विरई । यौ० - जड़ी-बूटी - जंगली औषधि । क्रि० वि० ( जड़ना )
जड़ी हुई।
जड़ीभूत ( कृत ) - संज्ञा, स्तम्भित, चकित |
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पु०
७०८
यौ० (सं० )
जडुआ - वि० (दे० ) जड़ाऊ |
जड़या - संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० जाड़ा + ऐया प्रत्य०) जूड़ी का बुखार | संज्ञा, पु० दे० ( हि० जड़ना + ऐया ) जड़ने वाला, जड़िया ।
यत्न
जत - वि० दे० ( सं० यत् ) जितना, जिस मात्रा का. जेता, जित्ता, जेतो ( ० ) । जतन ( जत्न ) संज्ञा, पु० (दे०) यत्र । " कोटि जतन कोऊ करें ". वृं० । जतनी - संज्ञा, पु० दे० (सं० यत्न ) करने वाला, चतुर, चालाक । जतलाना – स० क्रि० ( दे० ) जताना | जताना - स० क्रि० दे० ( हि० जानना ) ज्ञात कराना, बतलाना, पहले से सूचना देना, श्रागाह करना |..." देत हम सब - हिं जताये " - रत्ना० ।
यती । " जोगी
"
के० ।
जती - संज्ञा, पु० (दे० ) जतीन की छूटी तटी जतु - संज्ञा, पु० (सं०) वृक्ष का गोंद, लाख, लाह, शिलाजीत ।
जतुक - संज्ञा, पु० (सं० ) हींग, लाह, लाख, लच्छना |
पहाड़ी नमक,
जतुका - संज्ञा, स्त्री० ( सं० लता, चिमगादड़ ।
(सं० ) लाह या
जतुगृह संज्ञा, पु० यौ० लाख का बना घर, घास-फूस का बना घर, कुटी । " राति माहिं जतु-गृह जरवाया दुरजोधन स पापी "- - महा० । जतेका ४ -- क्रि० वि० दे० ( हि० जितना + एक ) जितना, जिस मात्रा का, जेतिक, जिते, जितेक, जेते ( व्र० ) ।
जनकौर - जनकौरा
जत्था - संज्ञा, पु० दे० (सं० यूथ) बहुत से जीवों का समूह, कुंड, गरोह, वर्ग, फ़िरका । जथा* - क्रि० वि० (दे० ) यथा । यौ०जथा - तथा, जथाजोग | संज्ञा, पु० (दे० ) जत्था | संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० गथ ) पूंजी, । जद- क्रि० वि० दे० (सं० यदा) जब, जब कभी जदा - अव्य० दे० (सं० यदि ) जब, जब कभी । जदि (दे०) यदि अगर । जदपि - क्रि० वि० (दे० ) यद्यपि | जदवार - संज्ञा, स्त्री० दे० ( ० ) निर्विषी, नीच ।
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जदुनाथ - संज्ञा, पु० ( दे० ) यदुनाथ, यदुपति, जदुपति ।
जदुनायक – संज्ञा, पु० (दे० ) यदुनायक । जदुपति - संज्ञा, पु० (दे० ) यदुपति, कृष्ण । जदुवंसी - संज्ञा पु० (दे० ) यदुवंशी, यादव | जदुराय, जदुराई-- संज्ञा, पु० यौ० (दे० ) यदुराज, श्रीकृष्ण । जदुवर-जदुवीर - संज्ञा, पु० (दे० ) यदुवर, यदुवीर, श्री कृष्ण । जहां वि० दे० ( ० ज्यादा) अधिक, ज़्यादा | वि० प्रचंड प्रबल ।
जदपि - क्रि० वि० (दे० ) यद्यपि, जद्यपि । जद्दबद्द - संज्ञा, पु० (दे० ) अकथनीय बात, दुर्वचन, बुरा-भला ।
जन - संज्ञा पु० (सं० ) लोक, लोग, प्रजा, गँवार, अनुयायी, दास, समूह, भवन, मज़ दूरी, सात लोकों में से पाँचवाँ लोक । जनक - संज्ञा, पु० (सं० ) जन्मदाता, उत्पादक, पिता, मिथिला के प्राचीन राजवंश की उपाधि, सीता के पिता । जनकनंदिनी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सीता जी । जनक- सुता, जनकात्मजा, जनकजा । जनकपुर - संज्ञा, पु० (सं० ) मिथिला की प्राचीन राजधानी ।
जनकौर - जनकौरा - संज्ञा, पु० दे० ( सं० जनक+पुर ) जनकपुर, जनक राजा के कुटुम्बी, या भाई-बन्धु |
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