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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०७ - जटाना जड़िया जटाना-स० कि० दे० (हि० जटना) जटने | "जड़ता विषम तमतोम दहिबो करै"..का काम दूसरे से कराना। अ० कि०- | ऊ. श०। ठगा जाना, ठगवाना। जड़त्व--संज्ञा, पु० (सं० ) अचेतन, स्वयं जटामासी-संज्ञा, स्त्री० (सं० जटामांसी) हिल डोल या कोई चेष्टा न कर सकने का एक सुगंधित पदार्थ जो एक वनस्पति की भाव, अज्ञता, मूर्खता । जड़ है, बालछड़, बालूचर । जड़ना -- स० क्रि० दे० (सं० जटन ) एक जटायु-संज्ञा, पु० ( सं० ) एक प्रसिद्ध गिद्ध वस्तु को दूसरी वस्तु में बैठाना, पञ्ची करना। ( रामा०) जटायु, जटाई (दे०) गुग्गुल । ठोंक कर बैठाना, जैसे नाल जड़ना, प्रहार " जाना जरठ जटायू एहा''--रामा०। करना, चुगली खाना । वि० जड़ाऊ । जटित-वि० ( सं० ) जड़ा हुआ। जड़पेड़ -संज्ञा, पु० यौ० (दे० ) मूल सहित जटिल-वि० (सं० ) जटावाला, जटा- वृक्ष, सम्पूर्ण या समूचा पेड़। यौ०धारी, अति कठिन, दुरूह, दुर्बोध, कर | जड़-पेड़ (मूल ) से उखाड़ना--समूल दुष्ट, उलझा हुआ । संज्ञा, स्त्री० जटिलता। नष्ट करना। जठर-संज्ञा, पु० (सं० ) पेट, कुन्नि, एक जड़बट - संज्ञा, पु० (दे०) बरगद का ढूंठ । उदर-रोग, शरीर । वि०-वृद्ध, बूढ़ा, | जड़भरत-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अंगिरस कठिन जरठ (सं.)। __गोत्रीय एक ब्राह्मण जो जड़वत रहते थे। जठराग्नि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) पेट जड़वाना-स० क्रि० ( हि० जड़ना का प्रे० की वह गरमी जिससे अन्न पचता है। रूप ) जड़ने का काम दूसरे से कराना, जड़-वि० दे० (सं० ) जिसमें चेतनता न जड़ाना (दे० )। संज्ञा स्त्री० जड़वाई। हो, अचेतन, चेष्टा-हीन, स्तब्ध नासमझ, जड़हन-संज्ञा, पु. (हि. जड़+ हनन = मूर्ख, ठिठुरा हुअा, शीतल, ठंढा, गंगा, मूक, गाड़ना) वह धान जिनके पौधे एक ठौर बहिरा, जिसके मन में मोह हो। संज्ञा, से उखाड़ कर दूसरे ठौर पर बैठाये जाते स्त्री० (सं० जटा) वृक्षों और पौधों का! हैं, शालि। पृथ्वी के भीतर दबा भाग जिससे उन्हें जड़ाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. जड़ना ) जल और आहार पहुँचता है, मूल, सोर. जड़ने का काम या भाव या मज़दूरी। नींव, बुनियाद । मुहा० ... जड़ उम्बाड़ना जड़ाऊ-वि• ( हि० जड़ना ) जिस पर नग या खोदना, जड़ काटना-किसी की या रत्न आदि जड़े हों, जडुआ (ग्रा.)। सत्ता को सकारण नष्ट करना, अहित जड़ाना-स० क्रि० (दे०) जड़वाना । करना, ऐसा नष्ट करना कि फिर पूर्व प्र. क्रि० दे० (हि० जाड़ा ) सरदी या स्थिति से न पहुँचे, बुराई या अहित | शीत लगना, ठंढ खाना। करना । जड़जमना ( जमाना ) --स्थिति जडाव-संज्ञा, पु० दे० ( हि० जड़ना ) जड़ने का दृढ़ या स्थायी होना ( करना ) । का काम या भाव, जड़ाऊ काम । जड़ पकड़ना-जमना, दृढ़ होना । हेतु, जड़ावर-संज्ञा, पु० दे० (हि. जाड़ा ) जाड़े कारण, सबब, श्राधार । यो०--जड़- के गरम कपड़े। जंगम-स्थावर-जंगम । जड़ित —वि० दे० (सं० जटित ) जड़ा जड़ता- संज्ञा, स्त्री० (सं० जड़ का भाव ) | हुआ, नग जटित । अचेतना, मूर्खता, स्तब्धता, चेष्टा न करने | जड़िया-संज्ञा, पु० दे० ( हि० जड़ना ) नगों का भाव । एक संचारी भाव (का० शा०)। के जड़ने का काम करने वाला, कुंदन-साज़। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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