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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चौमंजिला ६८२ चौमंजिला - वि० दे० ( हि० चौ चार + फा० मंजिल ) चौखंडा मकान, चार खंडों वाला, चार महला । चौमासा - संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुर्मास ) थापाद से कुवार तक के चार महीने, वर्षा ऋतु, चौमास । चौमासिया - चौमसिया - वि० दे० ( हि० चौमास) वर्षा के चार महीनों में होने वाला । संज्ञा, पु० ( हि० चार + माशा ) चार माशे का बाट या तौल | == चौमुख - क्रि० वि० ( हि० चौ चार + मुख = ओर) चारों श्रोर, चारों तरफ़, चारों शोर मुख । चौमुखा - वि० यौ० (हि० चा = चार + मुख) चारों धर चार मुहों वाला । स्त्री० चौमुखी । चौमुहानी - संज्ञा, स्त्री० यौ० ( हि० चा = चार + मुहाना फा० ) चौराहा, चतुष्पथ | चौरङ्ग - संज्ञा, पु० यौ० ( हि० चौ = चार + रङ्ग = प्रकार ) तलवार का एक हाथ । वि० तलवार के वार से कटा हुआ । चौरङ्गा -- वि० यौ० ( हि० चौ + रंग) चार रंगों का, जिसमें चार रंग हों । स्त्री० चौरङ्गी चौर - संज्ञा, पु० (सं०) दूसरे की वस्तु चुराने वाला, चोर, एक गंध द्रव्य । चौरस - वि० यौ० ( हि० चौ चार + एक रस = समान ) जो ऊँचा - नीचा न हो, तल बराबर, चापहल, वर्गात्मक, एक प्रकार वर्णवृत्त । । spong सम चौरस्ता - संज्ञा पु० (दे० ) चौराहा । चौरा - संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुर ) ( स्त्री० अल्पा० चौरी) चबूतरा, वेदी, किसी देवता, सती, मृत महात्मा, भूत-प्रेत, आदि का स्थान, जहाँ वेदी या चबूतरा बना हो, चौपार, चौवारा, लोबिया, बोड़ा. अरवा, खाँस, परस्पर बात-चीत, सलाह । चौराई – संज्ञा, स्त्री० (दे०) चौलाई, एकसाग । चौरासी - वि० दे० (सं० चतुराशीति ) अस्सी से चार अधिक | संज्ञा, पु० अस्सी से चाही चार अधिक की संख्या, ८४ । चौरासी लक्ष योनि, नर्क । ' आकर चार लाख चौरासी " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - रामा० । मुहा०- - चौरासी में पड़ना, - निरन्तर बार बार कई प्रकार या भरमना ----- के शरीर धारण करना । संज्ञा, स्त्री० - नाचते समय पैर में बाँधने का घुंघुरू । चौराहा - संज्ञा, पु० ( हि० चौ = चार + राह = रास्ता ) चौरस्ता, चौमुहाना, चौडगरा चौगेला (ग्रा० ) ! चौरी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चौरा) छोटा चबूतरा । चौरीठा - चौरेठा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० चाउर + पीठा ) पानी में पिसा चावल । चौर्य - - संज्ञा, पु० (सं० ) चोरी | चौलाई संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौ + राई = दाने) एक पौधा जिसका साग बनता है । चौलुका - संज्ञा, पु० (दे० ) चालुक्य | चैौवा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० चौ चार ) हाथ की चार अँगुलियों का समूह । अँगूठे को छोड़ कर हाथ की बाकी अँगुलियों की पंक्ति में लपेटा हुआ तागा, चार अंगुल की माप, चार बूटियों वाला ताश का पत्ता । चौसर - संज्ञा, पु० दे० ( स० चतुस्सारि ) संज्ञा, पु० (दे० ) चौपाया । एक खेल जो बिसात पर चार रङ्गों की चार चार गोलियों से खेला जाता है, चौपड़, नर्दबाजी, इस खेल की बिसात | संज्ञा, पु० दे० ( चतुरंसक ) चार लड़ों का हार । चौसठ - चौंसठ वि० ( सं० चतुर्षष्ठि ) साठ और चार की संख्या, नाम कला, योगिनी, चउँसठ | चौहट्टा – संज्ञा, पु० ( दे० ) चौहट्टा | " चौहट्ट हाट बाजार बीथी चारु पुर बहु विधि बना" -- रामा० । -- .. चौहट्टा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० चौ = चार + हाट) वह स्थान जिसके चारों ओर दुकाने हों। चौक, चौमुहानी, चौरस्ता । चौहद्दी - संज्ञा, स्त्री० यौ० ( हि० ची + हदफा० ) चारों ओर की सीमा । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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