SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 692
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौदह चौभड़ चौदह वि० दे० ( सं० चतुर्दश ) जो चौपहल-चौपहला-चौपहलू- वि० दे० गिनती में दस और चार हो । संज्ञा, पु० दस (हि० चौ - पहलू-फा० ) जिसके चार पहल और चार के जोड़ की संख्या १४ । या पार्श्व हों, वर्गात्मक, वर्गाकार। चौदांत --संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० चौ चौपाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चतुष्पदी) =चार --- दाँत ) दो हाथियों की लड़ाई या १६ मात्राओं का छंद, चार पाई। मुठभेड़। चौपाया ---संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुष्पद) चार चौधर-वि० ( दे० ) बलवान, बली, पैरों वाला पशु, गाय, भैंस आदि। मोटा ताज़ा । संज्ञा, पु० मुखियापन । चौपार-चौपाल---संज्ञा, पु० दे० (हि. चौधराई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चौधरी) चौवार) बैठने-उठने का वह स्थान जो ऊपर चौधरी का काम, पद। से छाया हो पर चारों ओर खुला हो, बैठक, चौधरी-संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुर । धर ) | दालान, एक पालकी। किसी समाज या मंडली का मुखिया जिस चौपुरा--संज्ञा, पु. (दे०) चार पुरों के का निर्णय उस समाज वाले मानते हैं, चलने के लिये चार घाटों वाला कुआँ । प्रधान, मुखिया। चौरैया-संज्ञा, पु० दे० ( सं० चतुष्पदी ) चौपई-- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चतुष्पदी) एक मात्रिक छंद, चार पाई. खाट । १५ मात्राओं का एक छंद। चौबंदी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौ+ वंद) चौपट-वि० दे० (हि. चौ= चार+पट - एक छोटा चुस्त अंगा, बगलबन्दी ( ग्रा० )। किवाड़) चारों ओर से खुला हुअा, अरक्षित। चौबसा-संज्ञा, पु० (दे० ) एक वर्ण वृत्त । वि० नष्ट-भ्रष्ट, बर्बाद, तबाह, चौपट्ट | चौबगला--संज्ञा, पु० दे० (हि० चौ+ बगल) (ग्रा० )। "तोहिं पटकि महि सेन हति ___ कुरते, अँगे इत्यादि में बग़ल के नीचे और चौपट करि तव गाँव" -- रामा० । कली के ऊपर का भाग, चारों ओर का । चौपटहा-चौपटा-वि० दे० (हि० चौपट) चौबरसी-संज्ञा स्त्री० दे० (हि० चौ+ चौपट या नष्ट-भ्रष्ट करने वाला। बरसी ) चौथे वर्ष का श्राद्ध या उत्सव । चौपड़-संज्ञा, स्त्री० (दे०) चौसर, एक खेल। चौबाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौ+बाई चौपता-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि० चौ - हवा ) चारों ओर से बहने वाली हवा । =चार + परत ) कपड़े की तह या घरी, अफवाह, किंबदन्ती, उड़ती ख़बर। चौपरत। चौबारा-संज्ञा, पु० दे० (हि. बौवार ) चौपताना-स० कि० दे० ( हि० चौपत ) कोठे के ऊपर की खुली कोठरी, बँगला, कपड़े की तह लगाना, चौपरतना (ग्रा०)। वालाखाना, खुली हुई बैठक । चौपार चौपतिया-चौपत्ती --संज्ञा, स्त्री० दे० (ग्रा० ) । क्रि० वि० (हि० चौ - चार-- वार (हि० चौ+ पती ) एक घास, एक साग, =दफा ) चौथी दना, चौथी बार। छोटी पुस्तक या कापी, हाथ-बही, कसीदे चौबीस- वि० दे० (सं० चतुर्विशत् ) चार में चार पत्तियों वाली बुटी, ताश का एक अधिक बीस, चार और बीस. २४ । खेल । चौबे-संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुर्वेदी) ब्राह्मणों चौपथ-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० चतुष्पथ) की एक जाति या शाखा । स्त्री० चौवाइन । चौराहा, चौक। चौबोला-संज्ञा, पु० दे० (हि० चौबोल) एक चौपद -वि० दे० (हि. च-चार - पद प्रकार का मात्रिक छंद।। =पाँव ) चौपाया, चार पाँव के पशु। | चौभड़-संज्ञा, स्त्री० (दे०) चौघड़। मा० श० को०-८६ For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy