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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोषण ६७८ चौकसाई-चौकसी चोषण -संज्ञा, पु० (सं०) चूसना। वि० चौक-संज्ञा, पु० दे० (सं० चतुष्क, प्रा० चउक्क) चोषणीय चौकोर भूमि , चौखूटी खुली ज़मीन चोष्य - वि० ( सं० ) चूसने के योग्य । घर के बीच में कोठरियों और बरामदों से चौंक-- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौंकना ) घिरा हुआ चौखूटा खुला स्थान, आँगन, चौंकने की क्रिया या भाव । सहन, चौखूटा चबूतरा, बड़ी वेदी, मंगल3 कना-अ० क्रि० दे० (हि. बैंक+ना समय पर पूजन के लिये प्राटे, अबीर आदि ---- प्रत्य० ) एकाएक डरजाने या पीड़ा की रेखाओं से बना हुआ चौखटा क्षेत्र, श्रादि के अनुभव करने पर झट से काँप या । शहर के बीच का बड़ा बाजार, चौराहा, हिल उठना, झिझकना, चौकन्ना या भौ. चौमुहानी, चौपर खेलने का कपड़ा, चक्का होना, भय या अाशंका से हिचकना, बिसात , सामने के चार दाँतों की पंक्ति । भड़कना । “बैल चौकना जोत में", चौकड़ा-संज्ञा, पु० दे० (हि. चौ+कड़ा ) घाघ। दो दो मोतियों वाली कान में पहनने की चौंकाना-स० क्रि० (हि. चौकना) भड़काना। बालियाँ । कवाना-स० कि० दे० (हि० चौकना का | चौकडी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० चौ =चार + प्रे० रूप) भड़काने का काम दूसरे से कराना। कला=अंग सं० ) हिरन की वह दौड़ चैध - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चक - चमकना) जिसमें वह चारों पैर एक साथ फेंकता जाता चकचैांध, तिलमिलाहट । है, चौफाल, कुदाना, फलाँग, कुलाँच । चौंधा*-क्रि. वि. व. (हि० चहुँधा ) | मु०-चौकड़ी भूल जाना—बुद्धि का चारो ओर, चहूधा, चहूँ । काम न करना, सिटपिटा जाना, घबरा चौंधियाना-अ. क्रि० दे० (हि० चौध ) जाना, चार आदमियों का गुट्ट, मंडली । अत्यन्त अधिक चमक या प्रकाश के सामने यौ० - चंडाल चौकटी-उपद्रवियों की दृष्टि का स्थिर न रह सकना, चकाचौंध मंडली, एक प्रकार का गहना, चारयुगों होना, आँखों से दिखाई न पड़ना। का समूह, चतुर्युगी, पलथी। संज्ञा, स्त्री० चौंधी-संज्ञा स्त्रो० (दे.) चकचौध ।। (हि. चौ = चार + घोड़ी ) चार घोड़ों की चौर-संज्ञा, पु० (दे०) चवर । बन्धी। चौंराना*-स० कि० दे० (सं० चार) च वर चौकन्ना-वि० (हि० चौ = चारों ओर + कान) डुलाना, या करना, झाडू. देना।। सावधान, चौकस. सजग, चौंका हुश्रा, चौरी-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चौर ) काठ आशंकित । की डंडी में लगा हुश्रा मक्खियाँ उड़ाने को घोड़े की पंछ के बालों का गुच्छा, चोटी या चौकरना-चौकपूरना-क्रि० अ० (दे० ) वेणी बाँधने की डोरी, सफेद पूंछ वाली विवाह आदि मंगल कार्यो में गेहूँ के श्राटे गाय, विवाह में एक रस्म। से शुद्ध भूमि पर बेल-बूटे बनाना । चौ-वि० दे० (सं० चतुः) चार की संख्या चौकल-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चार मात्राओं ( केवल यौगिक में ) जैसे चैपिहल । संज्ञा, का समूह (पि० )। पु०-मोती तौलने का एक मान । | चौकस - वि० (हि० चौ=चार - कस = कसा चौथा-संज्ञा, पु० (दे० ) चौवा । हुआ ) सावधान, सचेत, ठीक, दुरुस्त, चौघाना *-० क्रि० दे० (हि० चौंकना) । __ पूरा । "राम भजन में चौकस रहना" क० । चकपकाना, चकित या चौकन्ना होना। चौकसाई चौकसी- संज्ञा, स्त्री० दे० For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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