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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चोपना चोपना - प्र० क्रि० दे० ( हि० चाप ) किसी वस्तु पर मोहित या मुग्ध होना । चोपो - वि० ( हि० चाप ) इच्छा रखने वाला, उत्साही | ६७७ बाब - संज्ञा स्त्री० (फ़ा० ) शामियाना खड़ा करने का बड़ा खम्भा नगाड़ा या ताशा बजाने की लकड़ी, सोने या चाँदी से मदा हुथा डंडा, छड़ी, सोंटा । चोबकारी - संज्ञा स्त्री० ( फा० ) कलाबत्तू का काम । चोबचीनी - संज्ञा, स्त्री० यौ० ( फ़ा० ) एक काष्टौषधि जो एक पौधे की जड़ है । चोबदार - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) हाथ में चाब या श्रासा लेने वाला दास । चोभा - संज्ञा, पु० (दे०) खोंच, खोल, कीला । स्त्री० या अल्पा० चोभी । 1 चोया -संज्ञा, पु० (दे०) चाश्रा, चोवा (दे० ) । चोर - संज्ञा, पु० (सं० ) चुराने या चोरी करने वाला, तस्कर, चोरटा (दे०) चोट्टा ( ग्रा० ) । मुहा० - मन में चोर पैठनामन में किसी प्रकार का खटका या संदेह होना। ऊपर से अच्छे हुये घाव में वह दूषित या विकृत अंश जो भीतर ही भीतर पकता और बढ़ता है, वह छोटी संधि या छेद जिस में से होकर कोई पदार्थ वह या निकल जाय या जिसके कारण कोई त्रुटि रह जाय, खेल में वह लड़का जिससे दूसरे लड़के दाँव लेते हैं, चोरक ( गंधद्रव्य ) । वि० जिसके वास्ताविक स्वरूप का ऊपर से देखने पर पता न चले। कट = चोरकर - संज्ञा, पु० यौ० दे० (हि० चोर + = काटने वाला) चोर, उचक्का । चोरटा - संज्ञा, पु० (दे० ) चाहा, चोर । बोरदंत - संज्ञा, पु० यौ० ( हि० चोर + दंत) बत्तीस दाँतों के अतिरिक्त कष्ट से निकलने वाला दाँत । चोर दरवाज़ा - संज्ञा, पु० यौ० ( हि० चोली चोर + दरवाज़ा फा० ) मकान के पीछे की र का गुप्त द्वार । चोर-पुष्पी - संज्ञा० स्त्री० यौ० ( सं० ) धाहुली। चोर-महल - संज्ञा, पु० यौ० ( हि० चोर + महल ) वह महल जहाँ राजा और रईस लोग अपनी अविवाहिता प्रिया रखते हैं । चोरमिहोचनी -संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० चोर + मीचना बंद करना ) आँख मिचौली का खेल । " खेलन चोरमिहीचनी आजु ” - मति० । चोराचोरी - क्रि० वि० यौ० ( हि० चोर + चेरी) छिपे छिपे, चुपके चुपके। चोरी - संज्ञा, स्त्री० ( हि० चोर ) छिपकर किसी दूसरे की वस्तु लेने का काम, चुराने की क्रिया या भाव । " चोरी छोड़ कन्हाई - सूर० । " चोल - संज्ञा पु० ( सं० ) दक्षिण का एक प्राचीन प्रदेश, उक्त देश का निवासी, स्त्रियों के पहनने की चोली, कुरते के ढंग का एक पहनावा, मजीठ । " फीको परै न बरु घटे, रँगो चोल रँग चीर "वि० । बोलना - संज्ञा, पु० ( दे० ) चोला । चोला - संज्ञा, पु० (सं० चाल ) साधु फकीरों का एक बहुत लंबा और ढीलाढाला कुरता, नये जन्मे हुये बालक को पहले पहल कपड़े पहनाने की रस्म, शरीर, तन, देह, दक्षिण का एक प्राचीन प्रदेश ( राज्य ) . तन चाम ही को चोला है " - पद्मा० । मुहा० - चोला छोड़ना मरना, प्राण त्यागना, चोला बदलना - एक शरीर परित्याग करके दूसरा ग्रहण करना, साधु । चोली - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चाल) अँगिया कासा स्त्रियों का एक पहिनावा, श्राँगी । मुहा० - चोली-दामन का साथ - बहुत अधिक साथ या घनिष्टता । " चोली रतन जड़ाय की प्रति सोहै गौरांग । " - सू० । " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोला, कवच, जिरह-बख़्तर For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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