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चापना
चारदीवारी चापना-स० क्रि० दे० (सं० चाप = धनुष )। जिन्होंने शुंभनिशुंभ के चंड मुंड नामक दबाना।
दो दैत्य सेनापतियों का वध किया था। चापलता-संज्ञा स्त्री० (दे० ) चपलता। | चाम्पेय-- संज्ञा. पु. ( सं० ) चम्पा का फूल, चापलूस-वि० (फा० ) खुशामदी। संज्ञा | नाग केसर (ो०)। स्त्री० चापलूसी।
चाय-संज्ञा, स्त्री० (चीनी-चा ) एक पहाड़ी चापल्य- संज्ञा पु० (सं०) चपलता, अधीरता पौधा जिसकी पत्तियों का काढा पीते हैं। चाफंद-संज्ञा पु० (दे० ) मछली मारने यौ० चाय-पानी-जल-पान । *संज्ञा, पु. का जाल ।
( दे० ) चाव, चाह । चाब-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चव्य) गज- | चायक -- संज्ञा, पु० (हि. चाय) चाहनेवाला। पिप्पली की जाति का एक पौधा जिसकी चार-वि० दे० (सं० चतुर ) दो का लकड़ी और जड़ औषधि के काम में पाती | दूना, तीन से एक अधिक । मुहा०है, चव्य, इसका फल । संज्ञा, स्त्री० (हि. चार आँख होना-नज़र से नज़र चाबना ) खाना कुचलने के चौखूटे दाँत, मिलना, देखा देखी या साक्षात्कार होना। डाढ़, चौभड़, चाभ (ग्रा०) बच्चे के | "जब आँखें चार होती हैं"। बुद्धिमत्ता जन्मोत्सव की एक रीति ।।
होना-“विद्या पढ़े आँखें चार-चार चाबना ( चामना)-स० कि० दे० (सं० चाँद लगना-चौगुनी प्रतिष्ठा या शोभा चवण ) चबाना, खाना।
होना, सौंदरय बढ़ना । चार की कहीचाबी ( चाभी)- संज्ञा, स्त्री० (हि० चाप) पंचों या लोगों का कहना। चारों फूटनाकुंजी, ताली।
चारों आँखें ( भीतर-बाहर की ) फूटना । चाबुक-संज्ञा, पु० (फा० ) कोड़ा, हन्टर, चारो खाने चित्त-पूरा फैल कर चित्त (अं०)।
गिरना, कई एक, बहुत से, थोड़ा-बहुत, चाबुकसवार-संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा०) घोड़े कुछ । संज्ञा, पु० चार का अंक ४ । संज्ञा,
का सिखानेवाला । संहा. चाबुक सवारी। पु. (सं० ) वि. चारित, चारी, गति, चाम--संज्ञा, पु० दे० (सं० चर्म ) चमड़ा, चाल, बन्धन, कारागार, गुप्तदूत, चर,
खाल, "मुई खाल सों चाम कटावैघाघ, | जासूस, दास, चिरौंजी का पेड़, पियार, ..."चाम ही को चोला है"- पद्मा ।। अचार, प्राचार। मुहा० चाम के दाम चलाना--अन्याय चार आइना - संज्ञा, पु० यौ० (फा० ) एक करना।
कवच या बख़्तर। चामर-संज्ञा, पु० (सं० ) चौर, चवर, चार काने- संज्ञा, पु. यौ० (हि. चार-+
चौंरी, मोरछल, एक वर्णावृत्त, (पंचचामर)। काना = मात्रा) चौंसर या पाँसे का एक दाँव । चामरी- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) सुरागाय ।। चारालाना--संज्ञा, पु० यौ० (फ़ा०) रंगीन चामर पाटना-स० कि० (दे० ) दाँतों से धारियों के चौकोर खाने वाला कपड़ा। होंठ काटना, दाँत कट कटाना ।
चारजामा--- संज्ञा, पु० (फ़ा०) जीन, पलान । वामीकर-संज्ञा, पु. ( सं० ) सोना, स्वर्ण, चारण-संज्ञा, पु० (सं० ) वंश की कीर्ति धतूरा । वि० स्वर्णमय, सुनहरा।
या यश गाने वाला, बंदीजन, भाट, राजचामंडराय-संज्ञा, पु. ( दे० ) पृथ्वीराज पूताने की एक जाति, भ्रमणकारी। के एक सामन्त राजा।
चारदीवारी-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) घेरा, चामंडा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) एक देवी | हाता, शहर पनाह, प्राचीर, परिखा।
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