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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चाट ६५२ | चाट - संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० चाटना ) घटपटी वस्तुओं के खाने या चाटने की इच्छा, एक बार किसी वस्तु का श्रानन्द पर फिर उसी के लेने की चाह, चसका, शौक, लालसा, चाह, इच्छा, लोलुपता, लत, यादत, बान, देव, चरपरी और नमकीन खाने की चीजें, चटपटा, गजक | चाटना - स० क्रि० दे० (अनु० चटक ) स्वाद के लिये किसी वस्तु को जीभ से उठाना या खाना, पोंछ कर खा लेना, चट कर जाना, ( प्यार से ) किसी वस्तु पर जीभ फेरना, कीड़ों का किसी वस्तु को खा जाना । यौ० - चाटना - चूमना - प्यार करना | मुहा०-दिमाग ( खोपड़ी ) चाटना- व्यर्थ बकवाद या अधिक बात से उबाना या दिक करना । चाटु-संज्ञा, पु० (सं० ) मीठी या प्रिय बात, खुशामद, चापलूसी । संज्ञा स्त्री० चाटुकारिता । चाटुकार——संज्ञा, पु० (सं० ) खुशामद करने वाला, चापलूस, खुशामदी । । चाटुकारी - - संज्ञा० स्त्री० (सं० चाटुकार + ई - प्रत्य० ) झूठी प्रशंसा या खुशामद | चाड - संज्ञा स्त्री० (दे० ) सहारा, आश्रय, aareकता, प्रयोजन। चोंट, ढेकली, दबाव । चाँडर ( ग्रा० ) चादा* संज्ञा पु० दे० ( हि० चाड ) प्रेमपात्र, प्यारा । स्त्री० चाढ़ी। चाणक --- संज्ञा पु० (सं० ) सुनि विशेष ! गोत्र विशेष, उभाड़ने या क्रोध पैदा करने! वाली बात । चाणक्य - संज्ञा पु० ( सं० ) राजनीति के आचार्य पटना के राजा चन्द्रगुप्त के मंत्रो कौटिल्य । यौ० - वाक्य-नीतिकूटनीति | संज्ञा पु० - राजनीति चतुर । बापूर - संज्ञा पु० (सं० ) कंस का पहलवान जो श्रीकृष्ण जी से मारा गया । चाप चातक- संज्ञा पु० (सं० ) पपीहा पक्षी, चात्रिक, चातृक । स्रो० चातकी, "चातक रटत तृषा श्रतिश्रोही " - रामा० । चातर - वि० (दे०) चातुर । संज्ञा पु० (दे० ) 1 महाजाल, दुष्टों का जमघट, षड्यंत्र । चातुर - वि० (सं० ) नेत्र गोचर, चतुर, खुशामदी, चापलूस | संज्ञा स्त्री० चातुरता चातुरी - संज्ञा स्त्री० (सं० ) चतुरता, चतुराई, व्यवहार-दक्षता, चालाकी । " चातुरी विहीन थातुरीन पै "रना० । चातुर्भद्र चातुर्भद्रक - संज्ञा पु० (सं०) चार पदार्थ, अर्थ, धर्म, काम, मोत, चतुर्वर्ग । चातुर्मासिक - वि० यौ० (सं० ) चार महीने में होने वाला यज्ञ कर्म थादि । चातुर्मास्य - संज्ञा पु० यौ० (सं० ) चार महीने में होने वाला एक वैदिक यज्ञ, वर्षा के चार महीने का एक पौराणिक व्रत । चातुर - संज्ञा, पु० ( सं० ) चतुराई । चातुर्वशर्य - संज्ञा पु० (सं०) चारों वर्णों के धर्म ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । चातुर्वेद्य - संज्ञा पु० यौ० (सं० ) चार वेदों के ज्ञाता चतुर्वेदी ब्राह्मणों का भेद | बारवाल - संज्ञा पु० (सं० ) गर्त, अग्निहोत्र | -- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गढ़ा, चादर (चारा ) - संज्ञा स्त्री० ( फा० ) श्रोढ़ने-बिछाने का कपड़े का लम्बा-चौड़ा टुकड़ा, श्रोदना, चौड़ा दुपट्टा, पिछौरी, किसी धातु का बड़ा चौखूटा पत्तर, चद्दर, पानी की चौड़ी धार जो ऊँचे से गिरती हो, पूज्य पर चढ़ाने की फूलों की राशि | " हा ! हा! एती दूर बिना चादर थाई हैं'"--- रत्ना० । For Private and Personal Use Only यानक - क्रि० वि० (दे० ) अचानक । चाप - संज्ञा पु० (सं०) धनुष, कमान, अर्धवृत्त क्षेत्र ( गणि० ) वृत्त की परिधि का कोई भाग, धनु राशि | संज्ञा स्त्री० (सं० चाप धनुष ) दबाव, पैर की आहट ।
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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