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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३१ चकई चकला वि. भरपूर, अधिक । वि० (सं०) चक- तातार अमीर चकताई खाँ जिसके वंश में पकाया हुआ। " संपति चकई भरत चक" बाबर आदि मुगल बादशाह हुये, चकताई -रामा० । वंश का पुरुष, “ चौंके चकत्ता सुने जाकी चकई--संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० चकवा ) मादा बड़ी घाक है--- भूष। चकवा या सुरखाव, चक्रवाकी, "लखि चकई | चकना* --अ० क्रि० दे० (सं० चक्र =भ्रांत) चकवान"-वि० । संज्ञा, स्त्री० (सं० चक्र) चकित या भौचक्का होना, चकपकाना, एक गोल खिलौना। चौकन्ना, या पाश्चर्यित होना । चकचकाना-अ० कि० दे० (अनु०) किसी चकनाचूर-वि० दे० (हि० चक = भरपूर+ द्रव पदार्थ का सूचम कणों के रूप में किसी | चूर ) टूट-फूट कर बहुत से छोटे छोटे वस्तु के भीतर से निकालना, रस रस कर टुकड़े हो गया हुआ, चूर चूर, खंड खंड, ऊपर पाना, भीग जाना। चूर्णित, बहुत थका हुआ। चकचाना*-अ० कि० ( अनु०) चौंधि- चकपकाना-अ० कि० दे० (सं० चक्र = याना, चका चौंध लगना। भ्रांत ) श्राश्चर्य से इधर उधर ताकना, चकचाल*--संज्ञा, पु. (सं० चक + चाल | भौचक्का या चौकन्ना होना।। हि.) चक्कर, भ्रमण, फेरा। चकफेरी-संज्ञा, स्त्री. यो० (सं० चक्र, हि० चकवाय *-संज्ञा, पु० (अनु०) चकाचौंध।। चक + हि. फेरी) परिक्रमा, भँवरी। चकचून-वि० दे० (सं० चक्र + चूर्ण ) चूर | चकबंदी- संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि० चक+ किया या पिसा हुश्रा, चकनाचूर। फ़ा० बंदी ) भूमि को कई भागों में विभक्त चकचौंध-संज्ञा, स्त्री. ( दे० ) चकाचौंध ।। करना। चकचौंधना- अ. क्रि० दे० (सं० चक्षुष + चकमक-संज्ञा, पु० ( तु०) एक प्रकार का अंध ) आँखों का अधिक प्रकाश के सामने कड़ा पत्थर जिस पर लोहे की चोट पड़ने से ठहर न सकना, चकाचौंध होना। स० क्रि० आग निकलती है। चकाचौंधी उत्पन्न करना। चकमा-संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्र =भ्रांत) चकडोर-संज्ञा, स्त्री० यौ० (हि. चकई -- भुलावा, धोखा, हानि, नुकसान । डोर ) चकई नामी खिलौने में लपेटा सूत । चकरा*-संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्र) चक्रनका _हा.प. ( चकल्लस.झगडा। वाक या चकवा पक्षी, चक्र । चकती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चक्रवत् ) चकरबा-संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्र व्यूह ) चमड़े, कपड़े आदि का गोल या चौकोर छोटा कठिन स्थिति, असमंजस, बखेड़ा। टुकड़ा, पट्टी, टूटे-फूटे स्थान के बंद करने के | चकराना-प्र. क्रि० दे० (सं० चक्र ) लिये लगी हुई पट्टी या धज्जी, पिगली, दिमाग का चक्कर खाना, सिर घूमना, भ्रांत थिगरी (ग्रा.)। महा०-बादल में या चकित होना, चकपकाना, घबराना, चकती लगाना-अनहोनी बात या चकाना (दे०) । स० कि० आश्चर्य में काम के करने का प्रयत्न करना। डालना। चकत्ता-संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्र + वर्त) चकरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० चक्री) चक्की, रक्त-विकार आदि से शरीर पर पड़े गोल चकई खिलौना, एक पातशबाज़ी। वि० चक्की दाग़, खुजलाने आदि से हुई चमड़े के ऊपर सा घूमने वाला, भ्रमित, अस्थिर, चंचल । चिपटी सूजन, दरोरा, दाँतों से काटने का | चकला- संज्ञा, पु० दे० (सं० चक्र हि. चक चिन्ह । संज्ञा, पु. (तु. चकताई) मुगल या | +ला–प्रत्य० ) रोटी बेलने का पत्थर या For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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