________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
घिनाना ६२०
घुइयाँ घिनाना-प्र. क्रि० दे० ( हि० घिन ) घिसघिस-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. घिसना) घृणा करना।
कार्य में शिथिलता, अनुचित विलम्ब, घिनावना-वि० (दे०) घिनौना। अतत्परता, अनिश्चय । घिनौना-वि० दे० (हि. घिन ) ( स्त्री० | घिसना--स० कि० दे० ( सं० घर्षण ) एक घिनौनी ) जिसे देखने से घिन लगे, वस्तु को दूसरी पर खूब दबा कर घुमाना, घृणित, बुरा।
रगड़ना। (ग्रा० ) घसना-अ० क्रि० घिनौरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. घिन-+ (दे० ) रगड़ खा कर कम होना।
औरी-प्रत्य० ) घिनोहरी, एक बरसाती | घिसपिसा--संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु०) घिसकीड़ा।
घिस, सटाबटा, मेल-जोल । घिन्नी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) घिरनी, (दे० ) घिसवाना-स० क्रि० दे० (हि. घिसना गिन्नी।
का प्रे०) घिसने का काम कराना, रगड़वाना। घिय-संज्ञः, पु० दे० (सं० घृत ) घी, घृत । घिसाना। धिया--संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० घी ) एक घिसाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. घिसना )
बेल जिसके फलों की तरकारी होती है, घिसने की क्रिया या मजदूरी। नेनवा ( प्रान्ती०) धियातोरी (तरोई)। घिसाव - संज्ञा, पु० दे० (हि. घिसना ) घियाकश-संज्ञा, पु. ( दे० ) कदृकश ।
रगड़, घर्षण, खियाव । घिसन ( ग्रा० ) । घिरत संज्ञा, पु० दे० (हि. घी) घी,
घिसाघट-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० घिसाना घृत | "घेवर अति घिरत चभोरे"-सू०
__ ---वट--प्रत्य०) रगड़, रगराहट, घिसान। अ० क्रि० सा० भू० (घिरना )। धिरना-प्र. क्रि० (सं० ग्रहण ) सब ओर
घिसियाना-स० क्रि० (दे०) घसीटना, से छेका जाना, आवृत्त होना, घेरे में श्राना, |
घर्षण करना। चारों ओर इकट्ठा होना।
घिस्सा-संज्ञा, पु० दे० (हि. घिसना )
रगड़, धक्का ठोकर, पहलवानों का कुहनी घिरनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० घूर्णन ) | और कलाई से किया हुआ आघात, कुन्दा, गरारी, गराड़ी, चरखी, चक्कर, फेरा, रस्सी |
रद्दा । यौ० घिस्सापट्टी-छल-कपट ।। बटने की चरखी, गिन्नी (दे०)। घिराई --संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. घेरना)
घीच-संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) गरदन, ग्रीवा । घेरने की क्रिया या भाव, पशु चराने का
घी - संज्ञा, पु० दे० (सं० घृत प्रा० घीय ) काम या मज़दूरी।
तपाया हुआ मक्खन, घृत । लो०-"सीधी घिराना–स० क्रि० दे० ( हि० धरना का प्रे० ।
अंगुरी धी जम्यो क्योंहूँ निकसत नाहिं" रूप ) घेरने का काम कराना। घिरवाना। -वृ० । मुहा०-घी के दिये जलाना घिराव-संज्ञा, पु० दे० (हि. घेरना ) घेरने
-कामना या मनोरथ का पूरा या सफल या घिरने का भाव, घेरा।
होना, आनन्द-मंगल या उत्सव होना। घिरावना-स० क्रि० दे० (हि. घेरना ।
(किसी की पाँचों अँगुलियाँ) घी में घेरने का काम दूसरे से कराना। "सिगरे । हाना-खूब पाराम-चैन का मौका मिलना, ग्वाल घिरावत मोसो मेरो पायँ पिरात, खूब लाभ होना।
घी कुवार ( घी गुवाँर )-संज्ञा, स्त्री० दे० घिरीना-स० कि० दे० (अनु० घिर) (सं० घृत कुमारी ) ग्वारपाठा औषधि । घसीटना, गिड़गिड़ाना ।
। घुइयाँ -संज्ञा, स्त्री० (दे० ) अरवी कंद ।
For Private and Personal Use Only