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धिन
घाम घामा-संज्ञा, पु० दे० (सं० घर्म ) धूप, (लोन ) छिड़कना ( लगाना)-दुःख सूर्य ताप। “ धाम धूम नीर औ समीरन | के समय और दुख देना, शोक पर और ...' ल०सि०।
शोक उत्पन्न करना । घाव पूरना या घामड़-वि० दे० (हि० घाम ) घाम या भरना-घाव का अच्छा होना। “वैद धूप से व्याकुल, ( चौपाया) मूर्ख, सुस्त, | रोगी, ज्वान जोगी, सूर पीठी घाव "। घबड़ाने वाला।
घावपत्ता-संज्ञा, पु. ( हि० घाव+पत्ता ) घाय*-संज्ञा, पु० (दे०) घाव । एक लता जिसके पान जैसे पत्ते घाव या फोड़े घायक-वि० दे० (हि. घाव) विनाशक, पर बाँधे जाते हैं। मारने वाला।
घावरिया - संज्ञा, पु. (हि. घाय--- घायल-वि० दे० ( हि० घाव ) जिसके घाव वार या - चाला---प्रत्य० ) घावों की दवा लगा हो, पाहत, चुटैल, जख्मी। घाइल करने वाला, जर्राह । (ग्रा० ) " घायल गिरहि बान के लागे" घास—संज्ञा, स्त्री. (सं.) तृण, चारा । -रामा०।
घास-भूसा-(यो०)। यौ० घासपात घाये-स० कि० ( दे. ) गहाये, देदिये । या घासफूस-तृण और वनस्पति, खरघाल-संज्ञा, पु० दे० (हि. घलना) घलुश्रा । पतवार, कूड़ा-करकट । मुहा-घास मुहा०—घाल न गिनना · तुच्छ समझना। काटना ( खोदना या छीलना)घालक-संज्ञा, पु० (हि० घालना ) (स्त्री. तुच्छ काम करना, व्यर्थ काम करना। घलिका) मारने या नाश करने वाला, | घासी, घासू-संज्ञा, पु० दे० (सं० घास ) फेंकने वाला।
घास वाला, घसियारा । घास बेचने या घालकता—संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० घालना) लाने वाला। विनाश करने का काम । “बह दुसार राक्षस विभ-घिउ-संज्ञा, पु० दे० (सं० घृत ) घालकता"-रामा।
धी, घिव (ग्रा० ) " औ घिउ तात" घालन-संज्ञा, पु. (हि० घालना) हनन,
-घाघ०। बधन, मारन । ( स्त्री० घालिनी या
घिग्घी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( अनु० ) साँस घालिका)।
लाने में रोने से पड़ने वाली रुकावट, घालना-स० क्रि० दे० (सं० घटन )
हिचकी, हुचकी, बोलने में रुकावट भय से भीतर या ऊपर रखना, डालना, फेंकना.
पड़ने वाली। मुहा०—घिग्घी बँधनाचलाना, छोड़ना, बिगाड़ना, नाश करना,
भयादि से बोल रुक जाना। मार डालना । पू० का० कि० घालि। घालमेल--संज्ञा, पु० दे० (हि० घालना+
घिधियाना-प्र० क्रि० दे० (हि. घिग्घी ) मेल ) भिन्न प्रकार की वस्तुओं की मिलावट,
करुण स्वर से प्रार्थना करना, गिड़गिड़ाना । गडबड्ड. मेलजोल ।
| घिचपिच-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धृष्ट+ घालित-वि० ( दे० ) मारा, नष्ट किया या पिष्ट ) जगह की तंगी, सकरापन, थोड़े उनाड़ा हुश्रा।
स्थान में बहुत सी वस्तुओं का समूह । वि. घाव-संज्ञा, पु० दे० (सं० घात, प्रा० घाव)
अस्पष्ट, गिचपिच । . देह पर काटा या चिरा स्थान, क्षत । घाउ घिन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० घृण ) अरुचि, ( ग्रा० ) जखम ।..... 'घाव करत घृणा, गन्दी वस्तु देख जी मचलाने की सी गम्भीर"। मुहा०-घाव पर नमक अवस्था, जी बिगड़ना । घिना । (दे०)।
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