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अाज
अजूह
अटकना अजूह*-संज्ञा पु० (सं० युद्ध) युद्ध लड़ाई, | अज्ञानता-संज्ञा, भा० स्त्री० ( सं० ) (हि० अ+ जूह-यूथ-सं० समूह ) समूह, उप. मूर्खता, जड़ता, अविद्या, अविवेक, नासमुदाय ।
समझी। प्रजेइ-अजेय-वि० (सं० ) जिसे जीता न | अज्ञानतः-संज्ञा, क्रि० वि० (सं० अज्ञान जा सके, अजीत ।
तः ) अज्ञान से, अनजाने, मूर्खतावश । मजोग-वि० ( सं० अयोग्य ) बेजोड़, अज्ञानी-वि० (सं० ) मूर्ख, जड़, बेसमझ, अनुपयुक्त, अयुक्त, कुयोग, बुरायोग, या | अनारी। संयोग।
अज्ञेय-वि० (सं० ) जो समझ में न आ जोता*-संज्ञा पु० (सं० अ- हि० ।
सके, जो जाना न जा सके, ज्ञानातीत. जोतना ) चैत्र की पूर्णिमा जब बैल नहीं बोधागम्य, दुरूह । जोते या नाधे जाते ।
अज्यौं * --कि० वि० (हि.) दे. अजों प्रजोरना*—स० कि० (हि० ) बटोरना, | हरण करना, "टोना सी पढ़ि नावत सिर | __“अज्यौं तरयौ ना ही रह्यौ, श्रुति सेवक पर जो चाहत सो लेत अजोरी-सूबे० । ट्रक अड, बिहारी अजौं-क्रि० वि० (सं० अद्य ) ब्र०, अब अझर-वि० (सं० अ+झर ) जो न झरै, भी, अब तक, आज तक।
जो न गिरे न बरसे " अझर बारिद सौं अज्ञ-वि० संज्ञा पु० (सं० ) अज्ञानी, जड़, . जनि जाँचिये" - सरस । मूर्ख, नासमझ, दे० -अग्य ।।
अट-संज्ञा, स्त्री० ( हि० अटक ) शर्त, कैद, प्रज्ञता-संज्ञा भा० स्त्री० ( सं० ) मूर्खता, प्रतिबंध । जड़ता, नादानी, दे० -अग्यता।
अटंबर-संज्ञा, पु० (सं० अट्ट-+-फा० अम्बार) प्रज्ञा-संज्ञा स्त्री० (सं० अाज्ञा ) हुक्म । अटाला, ढेर, शशि, समूह समुदाय । अज्ञात-वि० (सं० ) अविदित, बिना जाना अटक-संज्ञा स्त्री० ( हि० ) बन्धन, रोक, हुश्रा, अप्रगट अपरिचित, जिसे ज्ञात न हो, । विघ्न, रुकावट, अड़चन, बाधा, सङ्कोच कि० वि० बिना जाने, अनजान में। हिचक, सिन्धुनदी. भारत के पश्चिमोत्तर अज्ञातनामा-वि० (सं० ) जिस का नाम | में एक नगर उलझन अकाज हर्ज, गरज़ । ज्ञात न हो, तुच्छ अविख्यात ।
'सकल भूमि गोपाल की यामैं अटक कहाँ, प्रज्ञातवास-संज्ञा पु० (सं० ) ऐसे स्थान अबलों सकुच अटक रही अब प्रगट करौं में निवास जहाँ कोई पता न पासके, छिप अनुराग री "सूबे०। कर गुप्त वास ।
मु०-अपनी अटक पर गधे को मामा अज्ञातयौवना- संज्ञा स्त्री० (सं० ) अपने कहना-अपनी गरज पर मूर्ख और पशु यौवन के आगमन को न जानने वाली- को भी अपनाना। मुग्धा नायिका ( नायिका-भेद ) । अटकन*-संज्ञा पु० ( हि०, दे०) अटक । अज्ञान-- संज्ञा, पु. ( सं० ) ज्ञान का अभाव, अटकनबटकन-संज्ञा, पु० (दे० ) छोटे अबोधता, जड़ता मूर्खता, आत्मा को गुण __ लड़कों का खेल। और गुण-कार्य से अलग न जानने का अटकना-अ. क्रि० (सं० अ+ टिक--- अविवेक, न्याय में एक निग्रह स्थान । चलना) रुकना, ठहरना उलझना, फँसना--- वि० - मूर्ख, जड़, नासमझ अज्ञ, निर्बुद्धि अड़ना, लगा रहना, प्रेम में फंसना, प्रीति अजान, अयान (दे० )।
__ करना विवाद करना, झगड़ना, " फबि
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