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कोप ५०५
कौलीन कोप-वि० (सं० ) कूप-सम्बन्धी जल, । (प्रान्ती०) चक्की में एक बार पिसने के कूपोदक ।
लिये डाला जाने वाला अन्न । कौपीन-संज्ञा, पु० (सं० ) ब्रह्मचारियों या कौरना-स० कि० (दे० ) सेंकना, थोड़ा संन्यासियों श्रादि के पहिनने की लँगोटी, । भूनना, (हि. कौड़ा )। चीर, कफ़नी, काछा, कौपीन से ढाँके जाने | कौरव-संज्ञा, पु. ( सं० ) राजा कुरु की वाले शारीरिक अंग, पाप, अनुचित कर्म । | संतान, कुरु-वंशज । वि० (सं० स्त्री० ) " कूपे पतितं योग्यं कौपीनम् ।"
कौरवी-कुरु सम्बन्धी। कौरवेश, कौरवकोम-संज्ञा, स्त्री० (१०) वर्ण, जाति । पति-यौ० संज्ञा, पु० (सं० ) दुर्योधन । कौमार-संज्ञा, पु० (सं०) कुमारावस्था, कौरव्य-संज्ञा, पु० (सं० ) कुरु-वंश, एक जन्म से ५ वर्ष तक की या १६ वर्ष तक मुनि, एक नगर । ( तंत्रशा० ) की अवस्था, कुमार । स्त्री० कौरा-कउरा-संज्ञा, पु० (दे० ) द्वार के कौमारी ! यौ० कौमारतंत्र--कौमार- दोनों ओर का वह भाग जिससे खुलने पर भृत्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) बालकों के किवाड़ सटे रहते हैं, कौड़ा, अलाव, कौर । चिकित्सा, लालन-पालनादि की विद्या, यौ० कौरा-कुरकुटा-खाने से बचा हुआ धातृ-कला।
भोजनांश । स्त्री० कौरी। मुहा०-कोरे कौमारी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) किसी की
लगना-दरवाजे के पास । किसी घात प्रथम स्त्री, ७ मातृकानों में से एक, पार्वती,
में ) छिप कर खड़ा रहना ।
कौरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) अँकवार, गोद, बाराहीकंद, कार्तिक-शक्ति ।
अंक, किवाड़ के पीछे की दीवाल, कौड़ी। कौमी- वि० (अ० ) कौमका, जातीय । |
कोरियाना स०कि० दे०गोद में लेना, भेटना । संज्ञा, स्त्री. कौमियत, जातीयता ।
कौल-संज्ञा, पु. ( सं० ) उत्तम कुल में कौमुदी--संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) ज्योत्स्ना,
| उपन्न, कुलीन, कुलाचार नामक वाम मार्ग चाँदनी, चंद्रिका, 'जुन्हैया, जुन्हाई ( दे.)
का अनुयायी ( तांत्रिक ) "नाना रूप धरा कार्तिकी-पूर्णिमा, आश्विनी पूर्णिमा, दीपो
कौला " - वाममार्गी । संज्ञा, पु० दे० त्सव तिथि, कुमुदिनी, एक व्याकरणग्रंथ
(सं० कवल ) कौर, ग्रास (सं० कमल) "सिद्धान्तकौमुदी" ( भट्टाजकृत ) ।
कमल, कँवल । कौमोदकी-कोमादी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) | कौल-संज्ञा, पु० (अ० ) कथन, उक्ति, विष्णु-गदा।
वाक्य, प्रतिज्ञा, प्रण, वादा । यौ० कौलकार-संज्ञा, पु० दे० । सं० कवल ) एक करार-परस्पर दृढ़ प्रतिज्ञा । " बकौले बार मुँह में डाला जाने वाला भोजन, ग्रास, हसन किसको भाता नहीं"-कौल (दे०) गस्ला, निवाला, ( फा० ) कवर (दे०) ....... कीन्यौ कौल अनेक"-दीन । " पंच कौर करि जेंवन लागे"-रामा० । | कौलव-संज्ञा, पु० (सं० ) ११ करणों में मुहा०—मुंह का कौर छोनना-देखते। से ३रा करण । देखते किसी का अंश (हक) दबा बैठना, रोज़ी कौलिक-वि० (सं० ) कुल-परम्परा प्राप्त, छुटाना । मुँह का कार है-श्रासान या | कुल-परम्परानुयायी । संज्ञा, पु० (सं० ) सरल होना, (काल ) कौर होना- शाक्त, तन्तुवाय, ताँती, पाखंडी। मर जाना, मृत्यु के वश होना " काल-कौर कोलीन-वि० (सं० ) श्रेष्ठ, उत्तम, शिष्ट । ढहै छिन माँही" ---रामा० । कउर ..."अच्छा कर्म ही कौलीन है"-का०गु० । भा० श० को०-६४
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