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प्रघाइ
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अचभौन कृपा नहिं कृपा अघाती” रामा० " प्रभु अघ्रानना*- स० क्रि० (सं० आघाण ) बचनामृत सुनि न अघाऊँ " - रामा० संघना, गंध लेना। अघाइ-पू० कि० अधाकर, मन भर कर, अच-संज्ञा, पु. ( सं०) स्वरवर्ण, संज्ञा यथेष्ट रूप से।
विशेष (व्याकरण ) छिपा कर करना । अधारि-संज्ञा, पु० (सं० यौ० अघ - अरि) अचंचल-वि० (सं० ) जो चंचल या पाप का शत्रु, पापनाशक. श्रीकृष्ण । चपल न हो, स्थिर, थीर, गंभीर । अघासुर- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० अघ+ अचंभव-संज्ञा, पु. (सं० प्रसंभव ) मसुर ) बकासुर और पूतना का छोटा अचम्भा। भाई तथा कंस का सेनापति, राक्षस । जो अचमा-संज्ञा, पु० ( सं० असंभव ) आश्चर्य, कृष्ण को मारने के लिये गया था, जिसे अचरज, विस्मय अचरज की बात । अचंभो, कृष्ण ने मारा था।
अचंभौ (दे० ब्र०) अघी- वि० (सं० ) पापी, पातकी। अचंभित*- वि० ( हि अचंभा ) चकित, अघोर-वि० (सं० ) सौम्य, जो घोर न विस्मित, श्रारचर्यान्वित । हो. सुहावना, (सं० आघोर ) अति घोर. अचक-संज्ञा, पु० दे० अचानक,अचानचक बड़ा भयंकर, संज्ञा, पु० शिव का एक रूप, अकस्मात्, हठात्, बिना जाने-बूझे। एक सम्प्रदाय जिलके लोग मद्य-मांस. आदि अचकन-संज्ञा, पु. (सं० कंचुक प्रा० भषयाभक्ष्य का सेवन करते हैं और घृणा अंचुक ) लम्बा अंगा। को जीतना अपना उद्देश्य मानते हैं। अचकाँ-नि. वि. अचानक "पै अचकों अघोरनाथ- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शिव, आये नहि सूरे"-सुजा० महादेव ।
| अचक्का- संज्ञा, पु० ( सं० प्रा+चक्र भ्राँति) अघारपंथ- संज्ञा, पु० (सं० ) यौ० अनजान । (अघोर - पंथ ) अघोरियों का मत या अचगरी-संज्ञा, स्त्री० ( सं० अति+ करण ) सम्प्रदाय ।
नटखटी, शरारत, छेड़-छाड़. बदमाशी । अधारपंथी-संज्ञा, पु० (सं० ) अघोर मत अवगरा - वि०- उत्पाती छेड़-छाड़ का अनुयायी अघोरी, औघड़।
करने वाला, नटखट, · जो तेरो सुत खरो अघोरी-संज्ञा, पु० (सं० ) अघोर पंथी, अचगरो तऊ कोख को जायो".- सूबे०
औघड़, भच्याभक्ष्य का विचार न करने " लरिकाई ते करत अचगरी में जाने गुन वाला, अधोर मत का अनुयायी। वि० तबही" सूबे० घृणित, घिनौना । ' एते पै नहिं तजत अचना-स० कि० (सं० आचमन ) अघोरी कपटी कंस कुचाली"- सूर०। आचमन करना, पीना। दे. अँचवना - अघोष-संज्ञा, पु. (सं०) वर्णमाला के “लै झारी नृप अचवन कीन्हो"। प्रत्येक वर्ग का प्रथम और द्वितीय वर्ण, श, अचपल-वि० (सं.) अचंचल, धीर, प, और स । वि०-नीरव निःशब्द, ग्वालों गंभोर, (सं० आचपल ) बहुत चंचल, से रहित, अघोस-दे०
शोख़ । अघौघ-संज्ञा, पु. ( सं० यौ० अघ-- अचपली-संज्ञा, स्त्री. ( हि० अचपल ओघ ) पापों का समूह ।
अठखेली, किलोल, क्रीड़ा। अघ्रान -संज्ञा, पु० दे० ( सं० आघ्राण) अचभौन* -- संज्ञा. पु. ( हिं० अचम्भा गंधमय, तथा गंधरहित ( सं० अ + घ्राण )। आश्चर्य । अचभौना-विस्मय की बात
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