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कूपार
कर बाहर न जाने वाला, बहुत थोड़ी जानकारी का व्यक्ति, अल्पज्ञ |
कूपार -- संज्ञा, पु० (सं० ) सागर, समुद्र | कूब, कूबड़, कूबर - संज्ञा, पु० ( सं० कूबर) पीठ का टेढ़ापन, किसी चीज़ की टेढ़ाई । वि० पु० कुबड़ा, कुबरा । स्त्री० कूबरी, कुबरी, कुबड़ी । मंथरा, कुब्जा, बाँस की टेढ़ी छड़ी | क्रूर - वि० दे० (सं० क्रूर ) निर्दय, भयङ्कर, मनहूस, असगुनिया, दुष्ट, बुरा, निकम्मा, मूर्ख, जड़, कायर, मिथ्या, कठोर । क्रूरता ( कूपन ) संज्ञा, स्त्री० ( पु० ) ( सं० ) निर्दयता, कठोरता, जड़ता, कायरता, अरसिकता, डरपोकपन, बुराई, दुष्टता, करता (सं० ) 1 कुरम -- संज्ञा, पु० (दे० ) कूर्म (सं० ) agar, पृथ्वी "कूरम पै कोल कोलहू पै सेस "
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- पद्मा० ।
कूरा - संज्ञा, पु० दे० (सं० कूट ) ढेर, राशि, भाग, हिस्सा । स्त्री० कूरी । वि० कुटिल ।
कूर्च - संज्ञा, पु० (सं० ) भौहों के मध्य का भाग, मयूर-पुच्छ, अँगूठे और तर्जनी का मध्य भाग, मूठ, कूँची, मस्तक । कूचिका - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) कूँची, कली, कुञ्ज, सुई ।
कूर्म -संज्ञा, पु० (सं० ) कच्छप, कछुआ, पृथिवी, प्रजापति का एक अवतार, एक ऋषि, वह वायु जिसके प्रभाव से पलकें खुलती और बंद होती हैं, विष्णु का दूसरा वतार, नाभिचक्र के पास एक नाड़ी। यौ० कूर्मचक्र -- पूजा का एक यन्त्र, कृषि का एक चक्र | कूर्मपुराण - संज्ञा, पु० यौ० (सं० )
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पुराणों में से एक । कूर्म - पृष्ठ – संज्ञा, पु० ० ( सं० ) कछुए की कठोर पीठ । वि० प्रति कठोर पदार्थ । कूर्मराज - संज्ञा, पु० ० (सं० ) विष्णु | कूल - संज्ञा, पु० (सं० ) किनारा, तट, सेना
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कृत
के पीछे का भाग, समीप, बड़ा नाला, नहर, तालाब ।
कूलक संज्ञा, पु० ( सं ० ) कृत्रिम पर्वत । कूलद्रुम - संज्ञा पु० ० (सं० ) नदी आदि के किनारे का पेड़ ।
कूल्हा - संज्ञा, पु० दे० (सं० क्रोड़ ) कमर में पेडू के दोनों पोर की हड्डियाँ, कूल ( दे० ) ।
कृवत-संज्ञा, पु० ( ० ) शक्ति, बल । कुवर - संज्ञा, पु० (सं० ) युगंधर, रथ में
ा बाँधने का स्थान, हरसा (दे० ), रथी के बैठने का स्थान, कूबड़ा । कूष्मांड -संज्ञा, पु० (सं० ) कुम्हड़ा, पेठा, कोहड़ा (दे० ) एक ऋषि (वैदिक काल ) शिव-गण, वाणासुर का मन्त्री । कूष्मांडा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) भगवती । कूह – संज्ञा, स्त्री० ( हि० कूक) चिग्वार, हाथी की चिकार, चिल्लाहट, चीख़ । कृकर कृकल - संज्ञा, पु० ( सं० ) छींक लाने वाली मस्तक की वायु, शिव, चबैना, कनेर - वृक्ष, पक्षी ।
कृकवाक – संज्ञा, पु० ( सं० ) मोर । यौ० संज्ञा, पु० (सं० ) कृकवाक ध्वज - कार्तिकेय, षडानन |
कृकलास - संज्ञा, पु० (सं० ) गिरगिट, गिरदान (दे० ) |
कृकार कृकाटक --- संज्ञा, पु० (सं०) गले में रीढ़ का जोड़ |
कृच्छ्र - संज्ञा, पु० (सं० ) कष्ट, दुःख, पाप, मूत्रकृच्छ्र रोग, पंचगव्य, प्राशन कर दूसरे दिन किया जाने वाला व्रत, तपस्या । वि० कष्टसाध्य, कष्टयुक्त । वि० कृच्छ्रगतपापी, रोगी, दुखी । कृच्छ्रातिकृच्छ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) व्रत विशेष । वि० प्रति कृच्छ्र । कृत - वि० (सं० ) किया हुधा, संपादित, रचित | संज्ञा, पु० (सं० ) ४ युगों में से प्रथम, सत्युग, ४ की संख्या, किसी नियत
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