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प्रगोता
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अग्निपरीक्षा चुनना, कि० अ०-रुकना, ठहरना, फँसना। अग्निकोट-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) समंदर " रसखोट भे ते अगोट प्रागरे में सातौ, नाम का कीड़ा जिसका निवास अग्नि में चौकी डांकि श्रानि घर कीन्ही हद्द रेवा माना जाता है।
| अग्निकुंड- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आग " सत्र कोट जो भाइ अगोटी" प० जलाने का गढ़ा। जो गुनही तौ राखिये, आँखिन मांहि अग्निकुमार - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अगोटि "-वि.
कार्तिकेय, दुधावर्धक दवा विशेष । अगोता-क्रि० वि० दे० (सं० अग्रतः) अग्निकीडा--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) आतिआगे, सामने-- संज्ञा स्त्री. अगवानी, । शबाज़ी। अगूता।
अग्निकुल-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) क्षत्रियों अगोरना-नि० स० (सं० अग्र ) राह का एक कुल विशेष । देखना, प्रतीक्षा करना, बाट जोहना, अग्निकोण--संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) दक्षिणचौकसी या रखवारी करना, रोकना, “जो पूर्व का कोना। मैं कोटि जतन करि राखति घंघट श्रोटि अग्नि-क्रिया-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शव अगोर"-सू०
का दाहकर्म, मुर्दा जलाना। अगोरिया-संज्ञा, पु० दे० (हिं. अगोरना) अग्निगर्भ-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) सूर्यरखवाली करने वाला, पहरेदार, संज्ञा पु. कान्तमणि, आतिशी शीशा। दे० अगीरदार, अगारा. रखवाला। अग्निज--संज्ञा, पु० ( सं० ) अग्नि से उत्पन्न, प्रगाढ़ --- संज्ञा, पु. (हिं. आगे ) पेशगी, अग्नि पैदा करने वाला, अग्नि संदीपक, अगाऊ ( दे० )।
पाचक । प्रगौनी*-नि० वि० (सं० अग्र ) श्रागे, अग्निजिह्व--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) देवता। संज्ञा, स्त्री० अगवानी " इंदिरा अगौनी, इंदु अग्निजिह्वा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) आग इन्दीवर अौनी महा, सुन्दर सलौनी, की लपट, ( अग्निदेव की सात जीभे कही गजगौनी गुजरात की "-रवि०। गई हैं-काली, कराली, मनोजवा. लोहिता, प्रगौरा-संज्ञा, पु० (सं० अग्र-ओर ) धूम्रवर्णा, स्फुलिंगिनी, और विश्वरूपी)। ऊख के ऊपर का पतला नीरस भाग, अग्निज्वाला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वि० (अ+ गौर ) जो गौर या गोरा न हो। आग की लपट, आँवला। -साँवला।
अग्निदाह-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) अगों हैं- कि० वि० दे० (सं० अग्रमुख ) जलाना, शवदाह । आगे की ओर।
अग्निदीपक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अग्नि-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) श्राग, ताप, जठराग्नि वर्धक औषधि । प्रकाश, पंच महाभूतों में से एक, वेद के | अग्निदीपन-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) तीन प्रधान देवताओं में से एक, बाग, पाचन शक्ति की वृद्धि, तद्वृद्धि कारी जठराग्नि, पाचन शक्ति, पित्त, तीन की औषधि। संख्या, सोना, चित्रक वृक्ष, अग्निकोण | अग्निपरीक्षा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) का देवता, (दे० ) अगिन, अगनी। जलती हुई भाग पर चल कर या जलता अग्निकर्म-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) अग्नि हुआ कोयला, तेल, पानी या लोहा लेकर होत्र, हवन, शवदाह ।
। झूठ-सच या दोषादोष की परीक्षा करना,
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