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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायजा कारकदीपक धन, समुदाय । वि० (सं० ) प्रजापति- परमात्मा, एक जाति । स्त्री० कायस्थासम्बन्धी। वि० यौ० कायस्थित --देहस्थ ।। हरीतकी, आँवला, छोटी-बड़ी इलायची, वि० कायक-शरीर-सम्बन्धी, देही, जीव, तुलसी, ककोली। दैहिक । यौ० काय-क्लेश-संज्ञा, पु. काया—संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० काय) शरीर । (सं० ) देह का कष्ट । काय-चिकित्सा- मुहा०—कायापलट होना ( जाना )संज्ञा, स्त्री० (सं० ) ज्वर, कुष्ठादि सींग- रूपान्तर या और से और हो जाना। व्यापी रोगों के उपशयन की व्यवस्था। कायाकल्प-संज्ञा, पु. यो. ( सं० ) कायजा-संज्ञा, पु. (सं० काय जा ) घोड़े | औषधियों से वृद्ध शरीर को पुनः तरुण की लगाम की डोर जिसे पूँछ में बाँधते | और सशक्त करने की क्रिया। हैं । वि० स्त्री० तनुजा, देह से उत्पन्ना। पु. काया-पलट-संज्ञा, स्त्री० यो० (हि. काया कायज - तनुज, देह-जात । +पलटना ) भारी हेर-फेर या परिवर्तन कायथ-संज्ञा, पु० (दे०) कायस्थ । होना, एक शरीर का दूसरे में बदलना, कायदा-संज्ञा, पु० (अ. कायदः ) नियम, रूपान्तर होना। रीति, ढङ्ग, विधि, क्रम, विधान, व्यवस्था। कायिक-वि० ( सं० ) शरीर-सम्बन्धी कायफल (कायफर )-संज्ञा, पु० दे० देह-कृत या उत्पन्न, दैहिक, संघ-सम्बन्धी (सं० कटफल) एक वृक्ष जिसकी छाल (बौद्ध)। दवा के काम में आती है। कायोढज-संज्ञा, पु. ( सं० ) प्राजापत्य कायम-वि० (प.) स्थिर, निर्धारित, . विवाह से उत्पन्न हुआ पुत्र ।। निश्चित, मुकर्रर । वि० यौ० कायममुकाम कारंड ( कारंडव )—संज्ञा, पु. ( सं०) (अ.) स्थानापन्न, एवज़ी। हंस या बतख जाति का पक्षी। कायमनोवाक्य-वि० यौ० (सं० काय+ कारंधमी--संज्ञा, पु. ( सं० ) रसायनी, मनस्+व+ ध्यण् ) मनसा-वाचा-कर्मणा, कीमियागर। देह-मन-वचन से। कार-संज्ञा, पु० (सं० कृ+घज् ) क्रिया, कायर-वि० (सं० कातर ) भीरु, डरपोक । __ कार्य, करने, बनाने या रचने वाला, जैसे संज्ञा, स्त्री० (सं०) कायरता (कातरता) ग्रंथकार, एक शब्द जो वर्णो के आगे लग कादरता-भीरुता, कदराई। कर उनका स्वतंत्र बोध कराता है, जैसे-- कायल–वि. (अ.) जो तर्क-पुष्ट या चकार, एक शब्द जो श्रानुकृत ध्वनि के सिद्ध बात को मान ले, कबूल करने साथ लग कर उसका संज्ञावत बोध कराता वाला लज्जित । संज्ञा, स्त्री० कायली-- है, जैसे-चीत्कार । संज्ञा, पु. ( फा० ) लज्जा, ग्लानि, मथानी, सुस्ती। कार्य, काम, उद्यम, उपाय । वि० (दे०) कायव्यूह-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) बात, काला। पित्त, कत, त्वक्, रक्त, मांस श्रादि के कारक-वि० ( कृ+ ) करने वाला, स्थान और विभाग का क्रम, स्वकर्म- | जैसे-हानिकारक । संज्ञा, पु. ( सं० ) संज्ञा भोगार्थ योगियों की चित्त में एक एक या सर्वनाम की वह अवस्था जिसके द्वारा इन्द्रिय और अङ्ग की कल्पना, सैनिकों वाक्य में क्रिया के साथ उसका सम्बन्ध का घेरा। प्रकट होता है ( व्याक० ), निमित्त ।। कायस्थ-वि० (सं० । काया या देह में कारकदीपक-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) स्थित । संज्ञा, पु. ( सं० ) जीवात्मा, । एक प्रकार का अर्थालङ्कार जिसमें कई For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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