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कवर्ग
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कश्मीर-काश्मीर कवर्ग--संज्ञा, पु० (सं० ) कादि पाँच वर्ण, | कविराज-कविराय - संज्ञा, पु० सं० (दे०) क से ङ तक वर्ण-समूह ।
श्रेष्ठ-कवि, कविशेखर, कवीन्द्र, भाट, कवल-संज्ञा, पु० (सं० ) मुख में एक |
बंगाली वैद्यों की उपाधि, “ राघवबार में रखी जाने वाली खाने की वस्तु,
पांडवीय नामक संस्कृत काव्य-ग्रन्थ के कौर, ग्रास गस्सा, कुल्ला। संज्ञा. पु० ।
लेखक एक कवि (ई. १११६)। ( दे० ) एक पक्षी, घोड़े की एक जाति ।। कविलास-संज्ञा, पु० दे० (सं० कैलास ) स्त्री० कवली-एक मत्स्य ।
कैलास, स्वर्ग। कवलित-वि० (सं० कवल+क्त ) ग्रसित, कवेला-संज्ञा, पु० (हि. कौवा+ एलाभुक्त, खाया हुआ । वि० कवलीकृत- प्रत्य० ) कौए का बच्चा । कौर किया हुआ, भक्षित ।
| कव्य-संज्ञा, पु० (सं०) पितृ-यज्ञादि में कवाम (किवाम )-- संज्ञा, पु. ( अ०) | पिंडे का अन्न । यौ० कन्यवाह-संज्ञा, पु० चाशनी, शीरा, पका गाढ़ा रस (तंबाकू | (सं० ) पितृयज्ञ की अग्नि । का अवलेह)।
कश- संज्ञा, पु० (सं०) चाबुक । स्त्री० कशा कवायद-संज्ञा, स्त्री. ( अ ) नियम,
कोड़ा, रस्सी, हुक्के की दम या फक । व्यवस्था, व्याकरण, सेना के युद्ध-नियम,
(कषा) संज्ञा, पु० (फा०) खिंचाव । तथा उनकी अभ्यास-क्रिया। कवि-संज्ञा, पु० (सं०) काव्यकार, कविता
यौ० कशमकश-संज्ञा, स्त्री० ( फा० )
खींचातानी, अागापीछा, धक्कमधक्का, सोचबनाने वाला, ऋषि, वाल्मीकि, व्यास, शुक्रा
विचार, द्विविधा, भीड़भाड़। चार्य, ब्रह्मा, सूर्य, पंडित, ब्रह्म ..... "कविमनीषी परिभूः स्वयंभूः–वेद०।
कशकीर--संज्ञा, पु० (दे० ) कजफील । कविक ( कविका)—संज्ञा, पु. ( स्त्री० ।
कशाघात--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) कोड़े ( सं० कविक+पा ) लगाम, केवड़ा।
की मार, कशाह-वि० यौ० ( कशा+ कवई-मछली।
अर्ह ) चाबुक मारने योग्य, अपराधी। कविता-संज्ञा, स्वी० (सं० ) हृदय पर कशिपु-संज्ञा, पु० ( सं० ) तकिया, प्रभाव डालने वाली सरस, रमणीयार्थ-प्रति- |
बिछौना, अन्न, भात, श्रासन, कपड़ा, पादक पद्य, काव्य । संज्ञा, पु. कवित्व
प्रह्लाद-पिता। कवि-काव्य का भाव, काव्य-रचना की शक्ति,
कशिश--संज्ञा, स्त्री. ( फा० ) श्राकर्षण, काव्य-गुण । संज्ञा, स्त्री० कबिताई ( दे० ) | खिचाव ।। कबिता । ....." बूझहिं केसव की कशीदा ( कसीदा)- संज्ञा, पु० ( फा० ) कविताई"।
कपड़े पर सुई तागे से काढ़े हुए बेलबूटों, कवित्त-संज्ञा, पु० दे० (सं० कवित्व) काव्य, शेरों का एक समूह ( काव्य०)। कविता, दंडकान्तर्गत ३९ वर्णों ( १६+ कश्चित-वि. ( सर्व०) (सं० ) कोई १५) का एक वृत्त, मन हरण, घनाक्षरी एक, कोई व्यक्ति । श्रादि, कबित्त (दे०)। ".....'कबित कश्ती ( किश्ती )-- संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) प्रबन्ध एक नहिं मोरे"-रामा०। । नौका, नाव, बायना या पानादि बाँटने की कविनासा*-संज्ञा, स्त्री० (दे०) कर्म- छिछली तश्तरी, एक मोहरा ( शतरंज )। नाशा नदी।
कश्मीर-काश्मीर-संज्ञा, पु. ( सं० ) कविमाता--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) प्रकृति-सौंदर्य, केसर तथा शालों के लिये शुक्राचार्य की माता, काश्मीर-भूमि । । प्रसिद्ध पक्षाब के उत्तर में एक पहाड़ी प्रांत ।
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