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कल्माष
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कवरना कल्माष-संज्ञा, पु० (सं० कल् + मष् + | कल्लोल-संज्ञा, पु० (सं० ) लहर, तरंग, घल् ) काला, रंग-विरंगा, चितकबरा, क्रीड़ा, आमोद-प्रमोद, हर्ष, हिलोर, कलमाष (दे०)।
उमंग, कलोल (दे० ) वि० सी० कल्य-संज्ञा, पु० (सं० कल् +य ) सबेरा, | कर नोलिनी-नदी। भोर, प्रत्यूष, प्रातःकाल, कल (दे०) अगला कल्ह ( क )-क्रि० वि० (दे०) कल, या पिछला दिन, मधु, शराब ।
काल्हि (दे० )। कल्यपाल-संज्ञा, पु० (सं०) कलवार। कल्हरना-अ० कि० दे० (हि० कड़ाह+ कल्या-संज्ञा, स्त्री० (सं०) देने योग्य बछिया ना--- प्रत्य०) कड़ाही में तला जाना, भुनना, या कलोर ।
कराहना ( दे० ) अ० कि० (सं० कल्लकल्याण-संज्ञा, पु० (सं०) मंगल, शुभ, ।
शोक करना ) दुःख से चिल्लाना। भलाई, सोना, एक प्रकार का राग ।
कल्हण संज्ञा, पु. (सं० ) काश्मीर का वि० भच्छा, भला । स्त्री० कल्याणी ।
इतिहास राजतरंगिणी के लेखक ( सन् कल्यान*-(दे०) यौ० कल्याणभार्य
११४८ ई. ) एक संस्कृत-कवि । (पु.) वह जिसकी स्त्री मर गई हो। कल्याणवर्मन्-बराह मिहिर के सम
कल्हार--संज्ञा, पु० (सं०) एक पुष्प कमल । कालीन ( सन् १७८ ई. ) एक प्रसिद्ध
कल्हारना—स० क्रि० दे० ( कल्हरना) ज्योतिषी, इनका ग्रंथ साराली है।
कड़ाही में भूनना, तलना। अ० क्रि० (दे०) कल्याणी-वि० (सं०) स्त्री० कल्याण
कराहना, क्रन्दन करना। करने वाली, सुन्दरी।
कवच-संज्ञा, पु० (सं०) आवरण, छाल, कल-वि० (दे०) बहरा, बधिर (सं.)। युद्ध में योद्धाओं के पहिनने का लोहे की कल्लर-संज्ञा, पु० (दे०) देह, नोना
जाली का एक पहिनावा, जिरह-बक़तर, मिट्टी, उसर, बंजर, कल्हर ।
सन्नाह (सं० ) वर्म, झिलम (दे०) कल्लांच-वि० दे० (तु. कल्लाच ) लुच्चा,
शरीरांग-रक्षार्थ मन्त्रों के द्वारा प्रार्थना गुंडा, दरिद्र ।
(तंत्र ) ऐसी रक्षा का मंत्र या मन्त्र युक्त कल्ला- संज्ञा, पु० दे० (सं० करीर ) अंकुर, ताबीज, युद्ध का बड़ा नगाड़ा, पटह, डंका, किल्ला, गोंफा, कोपल, बत्ती रहने वाला वि० कवची। लंप का सिरा, बर्नर (१०) संज्ञा, पु. कवन ( कौन )-सर्व० ( दे० ) कौन (फा० ) जबड़ा, जबड़े के नीचे गले तक (हि.) " कवन हेतु वन विचरहु स्वामी" स्थान । वि० दे० (हि० काला) काला । स्त्री० -रामा०। कल्ली। यौ० वि० कल्लतोड़-मुंहतोड़, कवर (कौर)-संज्ञा, पु० दे० (सं० कवल) प्रबल, जोड़-तोड़ का।
ग्रास, लुकमा, निवाला, ( फा० ) "पंच कल्लुदराज-वि० (फा० ) मुँहज़ोर, बढ़ कवर की जेंवन लागे"-रामा० । संज्ञा, बढ़ कर बातें करने वाला। संज्ञा, स्त्री. पु० (सं०) केश-पाश, गुच्छा । स्त्री० कवरी, कल्लादराजी।
चोटी, जुड़ा । (अं० ) ढकना, प्रावरण । कल्लाना-प्र० क्रि० दे० (सं० कड् या कल्) | कवयी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) एक प्रकार की चमड़े पर जलन लिये हुये कुछ पीड़ा।
__ मछली। कल्लापरवर---संज्ञा, पु० (दे०) एक प्रकार कवरना-स० कि० (दे० ) सेंकना, रंचक का भुना चबैना।
भूनना।
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