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घगनेउ
अगला प्रगनेउ संज्ञा पु० (सं० आग्नेय ) आग्नेय अगरई-वि० ( हि० अगर ) श्यामता लिए दिशा, अग्निकोण, दक्षिण-पूर्व का कोना। हुए सुनहला संदली रंग। अगनेत* संज्ञा पु. ( सं० अग्नेय ) अग्नि- अगरचे-अव्य.-( फा० उ०) गोकि, कोण ।
यद्यपि, बावजूदे कि। अगम-वि० सं० (अ--गम्य ) जहाँ कोई अगरना*-- क्रि० अ० (सं० अग्र ) आगे जा न सके, दुर्गम, दुबोध, कठिन, अवघट, होना, आगे बढ़ना। दुर्लभ, विकट अलभ्य, बहुत, बुद्धि से परे, अगरब- वि० ( सं० अगर्व ) अभिमानअथाह, बहुत गहरा “ अगम सनेह भरत । हीन । रघुबर को-" रामा० सं० पु० दे०- अगरबत्तो--संज्ञा, स्त्री० (सं० अगरबतिका ) प्रागम।
यौ० अगर की बत्ती जिसे सुगंधि के लिये प्रगमन-क्रि० वि० (सं० अग्रवान् ) आगे, ।
जलाते हैं, धूपबत्ती। प्रथम, प्रागे से. पहिले से- अस्ति पाँच अगरवाल-- संज्ञा, पु० (दे० ) दिल्ली से जे अगमन छोय ।"
परिचम अगरोहा ग्रामवासी वैश्यों की एक तिन्ह अंगद धरि सड फिराये" प०। जाति विशेष, अग्रवाल । उठि अकुलाइ अगमन लीन, मिलत नैन अगरपार -- संज्ञा, पु० (दे० ) दो क्षत्रियों भरि आये नीर" सूबे०।
की एक जाति। अगमनीया-वि० स्त्री. (सं०) जिस स्त्री
अगर-बगर-क्रि० वि० (दे० ) अग़लके साथ संभोग करने का निषेध हो ।
बग़ल-“अगर-बगर हाथी घोरन को अगमनीय-वि० पु० - जहाँ जाने के
सोर है" सुदामा० । योग्य न हो।
अगरसार-संज्ञा, पु० (दे०) “अगर " अगमानी -- संज्ञा, पु० (सं० अग्रगामी)
अगरा*-वि० ( सं० अग्र ) अगला, अगुश्रा (दे० ) नायक, सरदार. ( दे.)
प्रथम, श्रेष्ठ, उत्तम, अधिक, ज्यादा। अगवानी-पागे जाकर स्वागत करना।
अगरासन - संज्ञा, पु० (सं० यौ० अग्र+
अशन ) भोजन के पूर्व निकाला गया अगमासी-संज्ञा, स्त्री० (दे० ) "अगवाँसी"
अतिथि या गो-पास। अगम्य-वि० (सं० ) जहाँ कोई न जा
अगरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक प्रकार सके, अगम, अवघट, गहन, कठिन, अत्यंत, ।
की घास (सं० अगल ) व्योंडा, अनुचित् अज्ञेय, दुर्वाध, अथाह।
बात, लकड़ी या लोहे का छोटा इंडा जो अगम्या-वि० स्त्री. ( सं० ) जिस स्त्री के ।
किवाड़ के पल्लों को बंद करने के लिये साथ सम्भोग करना निषिद्ध हो, जैसे गुरु
उनके कोढ़ो में डाला जाता है। घास-फूस पत्री, राजपत्नी आदि।
के छाने का एक विधान या रीति, संज्ञा, अगर-संज्ञा, पु० (सं० अगुरू)-एक सुगं- स्त्री० (सं० अनर्गल ) उट-पटाँग की बात । धित लकड़ीवाला वृक्ष, एक औषधि, अव्य. अगरु--संज्ञा, पु० (सं० ) अगर की लकड़ी, -(फा० उ० ) यदि, जो।
ऊद, चंदन । मुहा०-अगर-मगर करना-हुज्जत अगल-बग़ल-क्रि० वि० (फा०) इधरकरना, सर्क करना, पागा-पीछा करना, उधर, आस-पाप, दोनो ओर । अगर-मगर न होना-शंका, या संदेह अगला--वि० ( सं० अग्र ) ( स्त्रो० अगली) न होना।
आगे का, सामने का, प्रथम का, पहिले का, भा० श० को०-५
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