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अगनू
अख्यायिका
३२ अख्यायिका-संज्ञा स्त्री० दे० (सं० आख्या- | अगण्य-वि० (सं०) न गिनने योग्य, यिका ) कहानी, कथा।
सामान्य, तुच्छ, असंख्य, बे तादाद, अग-संज्ञा पु० (सं० ) न चलने वाला, नगराय। स्थावर, पर्वत, वृक्ष, अचल, टेढा चलने प्रगत*- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अगति ) वाला, सर्प, सूर्य वि०-मूर्ख, अज्ञ। दुर्गति, बुरी गति । अगंड-संज्ञा, पु० सं०) कबंध, रुंड, अगति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्दशा, ख़राबी. हाथ-पैर-रहित धड़।
मृत्यु के बाद की बुरी दशा, नरक, दाहादि अगज-- वि० ( सं० ) पर्वतोत्पन्न, संज्ञा पु० क्रिया, गति का अभाव, स्थिरता । हाथी, शिलाजीत ।
"अफजल की अगति, सासता की अपगति, अगटना --अ० कि० (हि० इकठा ) जमा बहलोल की बिपति सों डरात उमराव होना, इकट्ठा होना। अगड़* --संज्ञा, पु० (हि० अकड़ ) अकड़, अगतिक-वि० (सं० अगत+इक) जिसका ऐंठ, दर्प। अगड़-बगड़-अंड-बंड-"अगड़- कहीं ठिकाना न हो, अशरण, निराश्रय, बगड़ तुम काह पढ़ाओ हम पढ़िबे हरि
असहाय । नाम ।"
अगती- वि० (सं० अगति) बुरी गति वाला, अगड़धत्ता-वि० (सं० अग्रोद्धत ) लंबा
पापी, दुराचारी, “अगतिन को गति तडंगा, ऊँचा, श्रेष्ठ, बढ़ा-चढ़ा, ऊंचा, पूरा, दीन्ही-" सूर । वि० पेशगी, क्रि० वि० बड़ा ।
(सं० अग्रतः) भागे से, पहिले से, अगाऊ । अगड़-बगड़-वि० दे० ( अनु० ) बे सिर- | अगत्या-क्रि० वि० (सं०) आगे चल कर, पैर का, व्यर्थ, क्रमहीन । संज्ञा पु०, असम्बद्ध अंत में, सहसा, अकस्मात, विवश हो, प्रलाप, अनुपयोगी कार्य ।।
भविष्य । अगड़ाई-संज्ञा पु० (दे०) अनाज की | अगद-संज्ञा पु० (सं० अ०+गद-रोग) दाना निकाली हुई बाल, खोखली, अखरा। निरोग, आरोग्य, सुस्थ, दवा, औषधि । अगण-संज्ञा पु० ( सं० ) छंद शास्त्र में चार अर्गान-संज्ञा स्त्री० ( स० अग्नि ) आग, बुरे गण - जगण, रगण, सगण और आगी (दे०) अगनी--- (दे० ) अग्नि । तगण, छंद की आदि में इनका रखना अगनिउ- संज्ञा पु. ( सं० आग्नेय ) उत्तरअशुभ माना गया है-"म न भ, य ये पूर्व का कोना । श्रागनी ( अगनि--- उ-- शुभ जानिये, जर, स, त, अशुभ विचार, . हू-भी ) आग भी। छंद आदि वे दीजिये, ये न दीजिये चार | "अगनि होय हिमवत कहूँ, अगनिउ ॥-२० पि० ।
सीतल होय।" अगणनीय-वि० (सं० ) न गिनने के | अगनित-वि० दे० -( सं० अगणित ) योग्य, सामान्य, अगणित, अनगिनती, असंख्य । असंख्य।
अगनी- संज्ञा स्त्री० (सं० अग्नि ) अगिनीअगणित-वि० (सं० ) जिसकी गणना न अगिनि, आग “अगिनि परी तृन रहित हो सके, बहुत, असंख्य, अपार, अगनित थल, आपुहि ते बुझि जाय । (दे०)।
अगनू-संज्ञा, स्त्री० (सं० आग्नेय ) अग्नि"अगणित कपि-सेना, साथ ले शक्ति | कोण, दे० - प्रथम गर्भाधान का ७ मास केन्द्र-" मैथि।
| पर एक संस्कार विशेष ।
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