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कभी
कमर इसाइयों के मुर्दे गाड़ने का गढ़ा तथा उसके | देवी का एक अभिग्रह-कामरूप, गोहाटी ऊपर का चबूतरा । कबर (दे० )। की एक देवी। मु०-कब में पैर ( पांव ) रखना | कमजोर -वि. (फा०) दुर्बल, अशक्त, ( लटकाना ) मरने के करीब होना। निर्बल । संज्ञा, स्त्री० भा० फ़ा० कमजोरी संज्ञा, पु. ( फ़ा०) कब्रिस्तान मुर्दे गाड़ने नाताक़ती, निर्बलता। का स्थान ।
कमठ-संज्ञा, पु० (सं० ) कछुवा, साधुओं कभी-कि० वि० (हि० कब+ही) किसी
का तुंबा, बाँस । " कमठ पृष्ठ कठोर भी समय पर । कबहूँ ( दे.)। मिदं धनुः-ह. ना० । एक दैत्य, बाजा, म०-कभी का ( के, से) देर से । कभी | सलई वृक्ष । न कभी-किसी समय पागे । कर्भू
गे । कभू कमठा संज्ञा, पु. ( दे० ) धनुष । (दे० ) कबों ( व्र०)।
कमठी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कछुई। संज्ञा, कमंगर--संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० कमानगर )
| पु० (सं० कमठ ) बाँस की पतली लचीली कमान बनाने वाला, उखड़ी हड्डी बैठाने ।
खपाँची, धनुही। वाला, चितेरा । वि०-दक्ष, निपुण ।
निपुण । कमती-संज्ञा, स्त्री(फा० कम+ती-प्रत्य०) कमानगर । संज्ञा, स्त्री०-कमंगरी--
कमी, घटती। वि० कम, थोड़ा। कमंगर का पेशा या काम ।
कमना* - अ. क्रि० (दे०) कम होना, कमंडल-संज्ञा, पु. ( दे० ) कमंडल
घटना। ( सं० ) वि० कमंडली-(सं० कमंडलु+
कमनीय ( कमनी)-वि० (सं०) कामना ई+प्रत्य० ) साधु, पाखंडी।
करने योग्य, सुन्दर । " ऊँचो जामें बँगला कमंडलु-संज्ञा, पु. ( सं० ) सन्यासियों
कमनी सरवर तीर -..." चा. हि० ।...... का जल पात्र, जो धातु, मिट्टी, तूमड़ी या |
"कीरति अति कमनीय --" रामा० । दरियाई नारियल का होता है।
कमनैत-संज्ञा, पु० (फ़ा० कमान + ऐत-प्रत्य० कमंद-संज्ञा, पु० (दे०) कबंध (सं०) हि०) कमान चलाने वाला, तीरंदाज़। संज्ञा, स्त्री० (फा० ) फंदेदार रस्सी जिससे संज्ञा, स्त्री० भा० कमनैती---तीरंदाजी, बनैले पशु फंसाये जाने या चोर मकानों | तीर चलाने का हुनर । “तिय कित कमपर फेंक कर चढ़ते हैं, फंदा ।
नैती सिखी......" वि०। कम-वि० फ़ा० थोड़ा, न्यून, अल्प। कमबख्त-वि० (फ़ा०) भाग्यहीन, अभागा। मु०-कम से कम-अधिक नहीं तो कमबख्ती -संज्ञा, स्त्री० (फा०) बदनइतना अवश्य । बुरा-जैसे कमबख्त । सीबी, अभाग्यता। क्रि० वि०-प्रायः नहीं। वि० यौ० -- कम | कमर-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) पेट और पीठ असत -वर्ण संकर, दोगला।
के नीचे, पेडू तथा चूतड़ के ऊपर की देह कमखाब-संज्ञा, पु० ( फ़ा ) कलाबत्तू के का मध्य भाग, कटि, लंक । करिहाँ (दे०)। बूटेदार रेशमी वस्त्र ।
मु०-कमर कसना ( बांधना ) तैयार कपची-संज्ञा, स्त्री० ( तु० मि०, कंचका )
या उद्यत होना, चलने को तत्पर होना। पतली लचीली टहनी जिससे टोकरी श्रादि
कमर टूटना-निराश होना, हतोत्साह बनती हैं, तीली, खपाँच ।
होना। कमर सीधी करना-- लेट कर कमच्छ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कामाख्या) आराम करना। कमर खोलना-यात्रा
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