________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कतवाना
३६३
कथंचन कतवाना–स० क्रि० (हि० कातना का प्रे० | कतिक-वि० दे० (सं० कति+एक ) रूप ) दूसरे से कातने का काम कराना। कितना, किस कदर, बहुत, अनेक, कितेक वि० कतवेया।
| (ब्र०) कैसे, थोड़ा, केतो।। कतवार-संज्ञा, पु० दे० (हि. पतवार = | कतिपय–वि० (सं० ) कितने ही, कई पताई ) कूड़ा-करकट, बेकाम घास-फूस । एक, कुछ थोड़े से । यौ० खर-कतवार—घास-फूस ! संज्ञा, पु. कतीरा-संज्ञा, पु० (दे०) गुलू नामक (हि. कातना ) कातने वाला। यो०- वृक्ष का गोंद जो दवा के काम में प्राता कतवारखाना—कूड़ा फेंकने की जगह । है, निर्यास। कतहुँ-कत*-क्रि०वि० श्रव्य० (दे० कत कतुवा–संज्ञा, पु० (दे० ) तकुवा, सुवा,
+हूँ ) कहीं, किसी स्थान पर, कभी, किसी तक्ली, टेकुवा ( दे०)। समय, किसी जगह । कहूँ, कहुँ (दे.)। कतेक*—वि० (दे० ) कितने कितेक " कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोपू-" रामा० । (७०) कुछ, थोड़े बहुत, अनेक । कता-संज्ञा, स्त्री. (अ. कतया ) बनावट, कतोनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० कताना)
आकार, ढंग, श्रेणी, वज़ा, कपड़े की काट- कातने का काम या मज़दूरी, किसी काम छाँट । यौ० वज़ा-कता । यौ०-कता- | के लिये देर तक बैठे रहना। कलाम-( अ० कता = काटना ) बात | | कत्त-अव्य० (दे०) कहाँ, क्यों कर । काटना।
कत्तल-संज्ञा, पु० (दे०) कटा हुआ, टुकड़ा, कताई-संज्ञा, स्त्री० (हि. कातना) कातने पत्थर के टुकड़े, चट्टान ।।
को क्रिया, कातने की मजदूरी। कतवाई। कत्ता-संज्ञा, पु० दे० (सं० कर्तरी) बाँस कतान---संज्ञा, पु० (फा० ) अलसी की चीड़ने का औज़ार, बांका, बाँसा, छोटी छाल का बना हुआ एक बढ़िया चमकीला टेढी तलवार, छुरी । कत्तान (दे०)। कपड़ा, बढ़िया बुनावट का एक रेशमी कत्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० कर्तरी ) चाल, कपड़ा।
छुरी, छोटी तलवार, कटारी, पेशकब्ज़, कताना-स० क्रि० (हि. कातना का प्रे० सोनारों की कतरनी, बत्ती के समान बट कर रूप ) किसी से कातने का काम कराना, | बाँधी जाने वाली पगड़ी। कतवाना।
कत्थई-वि० (हि० कत्था ) खैर के रंग का, कतार-संज्ञा, स्त्री० ( ० ) पंक्ति, श्रेणी, __ कत्था का सा। पांति, समूह, झंड।
कत्थक-संज्ञा, पु० दे० (सं० कथक ) एक कतारा-संज्ञा, पु० दे० (सं कांतार ) लाल गाने-बजाने और नाचने वाली जाति । रंग का मोटा गन्ना । संज्ञा, स्त्री० अव्य.- कथिक (दे० )। “ नौ कथिक नचावै कतारी । कतारा जाति की छोटी और | तीन चोर"-ला. सी. रा० । पतली ईख । संज्ञा, स्त्री० (अ० कतार)पंक्ति । कत्था—संज्ञा, पु० दे० (सं० क्वाथ ) खैर कताव--संज्ञा, पु० दे० (हि. कातना) की लकड़ियों का सुखाया और जमाया कातने का काम।
हुश्रा काढा जो पान में खाया जाता है, कति*---वि० (सं०) (गिनती में) कितने, खैर का वृक्ष, खैर, खदिर (सं.)। किस क़दर ( तौल या माप में ) कौन, कथम्-अव्य० ( सं० ) क्यों, कैसे, बहुत से, अगणित । केतिक (व.) किते, क्यों कर । यौ० कथमयि-कैसे ही। कितेक, कितो, केते, केतो। (ब्र०) कथंचन–अव्य० (सं०) किस प्रकार । भा० श० को०-५०
For Private and Personal Use Only