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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्लमंद २६ अक्षयकुमार समझ का चला जाना, बुद्धि का लोप या में एक बार घूमती हुई मानी गई है । रथ, अभाव होना। यान, मंडल । संज्ञा स्त्री० अक्षाअक्ल मारी जाना-बुद्धि का नष्ट हो जाना। अक्षकुमार-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अक्षयअक्ल से काम लेना-सोच-विचार या कुमार, रावण-सुत । समझ बूझकर बुद्धि से काम करना। अक्षकूट--संज्ञा, पु. (सं.) आँख की अक्ल खर्च करना-समझ को काम में पुतली। अक्षक्रीड़ा-संज्ञा, स्त्री० (सं० यौ० अक्ष+ लाना। __ क्रीड़ा) पांसे का खेल, चौसर । अक्ल खो देना-समझ का लोप होना, | अक्षत-वि० (सं० यौ० अ+क्षत ) साजा, अक्ल गुम होना-बुद्धि का लोप हो जाना, समूचा,बिना टूटा । संज्ञा पु० पूजा के काम अक्ल को बालायताक या दूर करना में आने वाले बिना टूटे चावल, धान का समझ को हटा कर बेसमझी करना । लावा, जौ-अच्छत ( दे० )। अक्ल का मोल लाना-किसी समझदार से अक्षतयोनि-वि० स्त्री० (सं० यौ० अक्षत राय लेना। +योनि ) वह स्त्री जिसका सम्बन्ध पति अक्ल पर परदा पड़ना-बुद्धि का लोप या पुरुष से न हुआ हो, कन्या । होना, समझ का काम न करना, दब या अक्षता-वि० स्त्री. (सं० ) अक्षत योनि ग़ायब होना। स्त्री, कन्यका। "पूछा जो उनसे बी कहो परदा कहाँ गया, अक्षपाद-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) एक बोली जनाब मर्दो की श्रङ्कों पर पड़ गया"।। दार्शनिक ऋषि जिन्हें गौतम भी कहते हैं, अक० । न्यायदर्शन ( शास्त्र) के यही प्रणेता हैं, अक्लमंद-संज्ञा, पु० ( फ़ा ) बुद्धिमान, चतुर, | ६०० से २०० वर्ष पूर्व ईसा के इनका समझदार। होना माना गया है--इनके न्यायदर्शन में अक्लमंदी-संज्ञा स्त्री० बुद्धिमत्ता, समझदारी। ५२८ सूत्र हैं, न्याय (तर्क) से ईश्वर, जीव अक्लान्त-वि. ( सं० अ+क्लान्त ) जो और प्रकृति की सत्ता तथा सम्बन्ध दिखलाते थका या श्रान्त न हो। हुए दुःख की अत्यन्त निवृत्ति या अत्यन्ताअक्लिष्ट-वि० (सं० + क्लिष्ट) सुगम, भाव को मुक्ति कहा गया है इस विद्या को आन्वीक्षिकी या सुनकर अन्वेषण की सहज, आसान। गई विद्या भी कहते हैं । ताकिक, नैयायिक । अक्लेश-वि० (सं० अ+क्लेश ) क्लेश या | अक्षम-वि० ( सं० ) क्षमा-रहित, क्षमताकष्ट-रहित । रहित, अशक्त, असमर्थ, असहिष्णु । संज्ञा, अक्ष-संज्ञा, पु. ( सं० ) खेलने का पाँसा, | भा०-अक्षमता। पाँसों का खेल, चौसर, छकड़ा, गाड़ी, धुरी, | अक्षमता--संज्ञा, भा० स्त्री. ( सं० ) क्षमा पहिया, गाड़ी का जुश्रा, रुद्राक्ष, माशों की | का अभाव , ईर्ष्या असहिष्णुता, असामर्थ्य, तौल, आत्मा, सर्प, गरुड, तराजू की डाँडी | डाह। मामला, मुकदमा, इंद्रिय, आँख, पृथ्वी के अक्षय-वि० ( सं० ) क्षय-हीन, अविनाशी, भीतर केन्द्र से होती हुई रेखा (कल्पित) जो | अनश्वर कल्पान्त स्थायी, अमर, चिरंजीवी, पारपार जाकर दोनों ध्रुवों तक पहुँचती अक्षयकुमार-संज्ञा, यौ० पु० (सं० अक्षय+ हई मानी गई है ( भूगोल ) और जिसपर कुमार ) हनुमान जी से मारा जाने वाला पृथ्वी पूरब से पश्चिम की ओर २४ घंटों | रावण-पुत्र, बहेरा । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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