________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अकेले २८
अक्ल अकेले-क्रि० वि० (हिं. अकेला ) एकाकी, मुंह पर फेरना जिससे नज़र या दृष्टि-दोष केवल, सिर्फ । अकेलेदम, एक ही व्यक्ति, दूर हो जावे। अकेले-दुकेले-एक या दो संज्ञा पु० निर्जन | आँखू-मुंखू-वि० (दे० प्रा० ) झूठ-मूठ । स्थान-अकेले में कहना-एकान्त में अक्त-वि० (सं० ) व्याप्त, संयुक्त, एक बताना।
प्रत्यय-जैसे विषाक्त, भीगा, गीला, लिपा। अकोट-वि० (सं० आ+कोटि ) करोड़ों, अक्र*-वि० (सं० अक्रिय) अक बके, अक्रिय । करोड़ तक। वि० (अ-कोटि ) करोड़ अक्रम-वि० ( सं० ) विना क्रम के, बेसिलनहीं, बिना किले का।
सिले, क्रमहीन, उलटा-पुलटा, अंडबंड । संज्ञा, अकोतरसौ*-वि० (सं० एकोत्तर शत ) पु० -- क्रमाभाव, व्यतिक्रम । एक सौ एक।
अक्रमसन्यास-संज्ञा, पु० (सं.) क्रम से अकोर-संज्ञा, स्त्री० (सं० आक्रोड) तोहफ़ा, .
न लिया गया सन्यास, ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, भेंट, घूस, अँकोर-(दे० ) संज्ञा पु० वानप्रस्थ के बाद)। अँकवार, गोद।
अक्रमातिशयोक्ति-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) अकोला-संज्ञा, पु० (सं० अंकोल ) एक अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें प्रकार का वृक्ष, एक नगर।
कारण के साथ ही कार्य कहा जाता है अकोविद --संज्ञा, पु० (सं०) मूर्ख, अदक्ष, (काव्य-शास्त्र)। ऊख का सिरा, स्त्री० अकोविदा- मूर्खा, अक्रान्त- वि० (संज्ञा, अक्रान्त) जो अदक्षा।
ग्रस्त न हो। अकोसना*-स० क्रि० (दे० ) गाली देना, अक्रिय-वि० (सं० ) क्रिया रहित, जो कर्म कोसना भला-बुरा कहना।
न करे, जड़, निश्चेष्ट, स्तब्ध --अक्रियता अकौपाई-(अकौवा) संज्ञा, पु० (सं० अर्क) भा० संज्ञा स्त्री० ( सं० )।
प्राक, मदार, गले का कौश्रा, घंटी। अकर-वि० (सं०) जो क्रूर न हो, सरल, अक्खड़-वि० (हिं० अड़ +खड़ा ) उद्धत, दयालु, कोमल स्वभाव वाला, श्रीकृष्ण के किसी का कहना न माननेवाला, उजडु, चचा, ( संज्ञा पु० ) एक यादव, ये श्वफल्क उच्छखल, झगड़ालू, निर्भय, निडर, असभ्य, | और गान्धिनी के पुत्र थे। इनकी ही राय अशिष्ट, उदंड, जड़, खरा, स्पष्टवक्ता, प्रख- से सत्यभामा के पिता शतधन्वा ने सत्राड़पन संज्ञा भा० (हि.) अक्खड़ता। जित को मार कर स्यमंतक मणि को ली अक्खड़पन-(अक्खड़ता ) संज्ञा, भा० । थी, कृष्ण के डराने पर वह उसे अक्रूर को (हि०) उद्दडतादि, जड़ता, अशिष्टता, देकर भाग गया था, किन्तु पकड़ा जाकर मार उच्छृखलता, असभ्यता, उग्रता।
डाला गया। अक्ख र*-संज्ञा, पु० (सं० अक्षर ) वर्ण, | "ऐसे क्रूर करम अक्रूर है कराये जो" अक्षर, अक्खड़ (ड़ के स्थान में र हो कर ) रत्नाकर प्राखर (दे०)।
अक्ल-संज्ञा, स्त्री. (अ) बुद्धि, समझ, ज्ञान, अक्खा -संज्ञा, पु. ( सं० अक्ष-संग्रह करना) प्रज्ञा । बैलों पर अनाज आदि के लादने का दोहरा मुक-अक्ल का दुशमन-मूर्ख, बेवकूफ, थैला, खुरजी, गोन ( दे०)।
अक्ल का पूरा ( व्यंग्य ) जड़ मूर्ख, अक्ल अक्वोमक्खो -संज्ञा, पु० (सं० अक्ष-+मुख) के पीछे डंडा लेकर दौड़ना-बेवकूफी, दीपक की लौ तक हाथ ले जाकर बच्चे के बेसमझी करना, अक्ल का चरने जाना
For Private and Personal Use Only